रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव और जयशंकर के बीच होने वाली वार्ता से पहले जानें- अमेरिका ने क्‍या कहा

यूक्रेन संकट के बीच आज होने वाली भारत और रूस की अहम वार्ता पर यूं तो पूरी दुनिया की निगाहें लगी हैं लेकिन इस पर अमेरिका की खास निगाह है। इस वार्ता को लेकर अमेरिका की तरफ से बयान भी आ गया है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्‍ता नेड प्राइस ने कहा है कि हर देश का मास्‍को के साथ संबंध है और अमेरिका इन संबंधों को बदलना भी नहीं चाहता है। प्राइस ने प्रेस ब्रीफिंग के दौरान कहा कि ये एक इतिहास है और एक भूगोल की सच्‍चाई भी है। यही वजह है कि अमेरिका इसको बदलने का प्रयास नहीं करने वाला है। हम जो करना चाहते हैं, चाहे वह भारत के संदर्भ में हो या दुनिया भर के अन्य भागीदारों और सहयोगियों के संदर्भ में हो, हम यह देखने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय एक स्वर में बोल रहा है।

अमेरिका ने की रूस की आलोचना 

प्राइस ने रूस की यूक्रेन पर हमले को लेकर कड़ी आलोचना भी की। उन्‍होंने कहा कि सभी को इस अन्‍याय के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए और यूक्रेन पर रूस के हमले का कड़े शब्‍दों में विरोध करना चाहिए। अमेरिका की तरफ से ये भी कहा गया है कि रूस को तत्‍काल प्रभाव से इन हमलों को रोकना चाहिए और भारत को भी इसके लिए प्रयास करना चाहिए।

अपने प्रभाव का इस्‍तेमाल करे भारत

प्राइस के मुताबिक भारत को इस मुद्दे पर अपने प्रभाव का इस्‍तेमाल करना चाहिए। प्राइस ने लावरोव और जयशंकर के बीच होने वाली वार्ता को लेकर उम्‍मीद भी जताई है। उन्‍होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि हम जानते हैं कि किस बारे में बात कर रहे हैं। प्राइस ने कहा कि हम जिस चीज की मांग कर रहे हैं उस संदेश को रूस के राष्‍ट्रपति व्‍लादिमीर पुतिन तक कड़े और स्‍पष्‍ट शब्‍दों में पहुंचाने की जरूरत है।

भारत और रूस के बीच व्‍यापार 

भारत और रूस के बीच व्‍यापार और भुगतान के लिए रूस की मुद्रा रूबल का इस्‍तेमाल करने के बाबत एक सवाल के जवाब में प्राइस ने कहा कि भारतीय रुपये के रूबल में बदलने को लेकर अमेरिका ने अपने सहयोगी भारत को बता दिया है। यदि ऐसा कुछ होता है तो इस बारे में विचार विमर्श किया जाएगा। क्‍वाड के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में प्राइस ने कहा कि इस संगठन का सिद्धांत है कि हिंद प्रशात क्षेत्र को सभी के लिए खोला जाना चाहिए। हर किसी को इस क्षेत्र का लाभ मिलना ही चाहिए। इससे केवल अमेरिका या जापान या फिर आस्‍ट्रेलिया को ही फायदा नहीं होगा बल्कि सभी देशों का फायदा होगा। ये सभी के हित में है।