उच्च शिक्षण संस्थानों में पनपता कट्टरवाद, शिक्षण संस्थानों के दुरुपयोग के घातक परिणाम

इस आम धारणा के बावजूद कि शिक्षा किसी व्यक्ति को रूढ़ियों से मुक्त करके उसे प्रगतिशील बनाती है, शिक्षा और कट्टरता के बीच के संबंध को लेकर हमेशा से एक बहस कायम रही है। इसके पीछे कारण यह है कि जहां एक तरफ शिक्षा, विशेष तौर आधुनिक शिक्षा व्यक्ति को उदार बनाने का एक माध्यम है, वहीं इसका दूसरा पक्ष यह है कि अगर शिक्षा किसी विशेष विचारधारा को मजबूत बनाने के उद्देश्य से हो तो फिर यह कट्टरता को और भी ज्यादा बढ़ाती है। शिक्षा के प्रसार के संदर्भ में यदि व्यापकता में देखें तो कई बार ऐसे प्रश्न उठते रहे हैं, जो इसी अवधारणा को मजबूत करते दिखते हैं।

हाल के दिनों में घटित कई घटनाओं से यह सामने भी आया है। परंतु पाठ्यक्रम से जुड़े इस सोच को समय समय पर चुनौती मिलती रही है, क्योंकि कई बार ऐसा पाया गया है कि अच्छी शिक्षा पाने वाले लोग भी कट्टर गतिविधियों में संलिप्त रहे हैं। जैसा कि एक मामला अभी गोरखपुर में सामने आया है। वर्ष 2020 में गोरखपुर में बसने से पहले मुर्तजा अब्बासी अपने परिवार के साथ मुंबई में ही रहता था। मुंबई में एक पेट्रो केमिकल कंपनी में कुछ समय तक काम करने के बाद उसने नौकरी छोड़ कर एप डेवलपर के रूप में कार्य किया।

अभी तक की जांच में मुर्तजा के लैपटाप से जाकिर नाइक और आइएस के कट्टरता के वीडियो भी साक्ष्य के तौर पर मिले हैं, जिसे उसकी धार्मिक कट्टरता की पुष्टि के रूप में देखा जा सकता है। इसके साथ ही एटीएस (एंटी-टेररिज्म स्क्वाड) यानी आतंकवाद विरोधी दस्ते द्वारा आरोपी मुर्तजा के घर पर डाले गए छापे के दौरान जो फोन बरामद किया गया है उसमें कुछ संदिग्ध लोगों के नंबरों के साथ आइएसआइएस (इस्लामिक स्टेट आफइराक एंड सीरिया) के यूरोप और अमेरिका में स्थित विभिन्न आतंकियों के खातों में लाखों रुपये भी भेजे जाने के प्रमाण मिले हैं।