कांग्रेस को भाजपा से मुकाबला करने लायक बनाने के लिए प्रयोग जारी हैं। उसी क्रम में उनके परवान नहीं चढ़ने की घटनाएं भी हो रही हैं। ताजा मामला प्रशांत किशोर के प्रोजेक्ट के फेल होने का है। हालांकि पार्टी पहले भी मुश्किलों में फंसी है। नेहरू की मृत्यु के बाद और आपातकाल के जमाने में, लेकिन वह उन संकटों से आसानी से निकल आई, क्योंकि उसके सामने कोई तगड़ा विपक्ष नहीं था। वर्ष 2014 में भारतीय जनता पार्टी ने उसे जो झटका दिया है, पार्टी को उससे उबरने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है। राजस्थान के उदयपुर में मई के दूसरे सप्ताह में होने जा रहे पार्टी के चिंतन शिविर से भी कोई खास उम्मीद नहीं है।
इसकी वजह स्पष्ट है। पार्टी अपनी पिछली गतलियों से सीखने को तैयार नहीं है। राजस्थान में करौली के दंगे हों या शुक्रवार को सड़क पर नमाज पढ़ने का मामला, वहां की अशोक गहलोत सरकार ने निष्पक्षता से काम नहीं किया। इसकी तुलना में सांप्रदायिक दृष्टि से ऐसे ही संवेदनशील मामलों में उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार ने बिना किसी भेदभाव के नियम और कानून का चाबुक चलाया। सबसे पहले गोरखनाथ और मथुरा के मंदिरों के लाउडस्पीकर उतारे गए, उसके बाद मस्जिदों से अपील की गई और नतीजा देखिए। अयोध्या में जब बहुसंख्यक समुदाय के कुछ लोगों ने माहौल बिगाड़ने की कोशिश की तो उत्तर प्रदेश पुलिस ने तत्काल उन्हें गिरफ्तार करके दिखाया।
राजस्थान की राजनीति में अल्पसंख्यकों के पक्ष में खुलेआम उतर कर पार्टी अपने पैरों पर ही कुल्हाड़ी चला रही है। पूरे देश के बहुसंख्यक समुदाय में इसका गलत संदेश गया है। इससे भले ही पार्टी राज्य में आगामी विधानसभा चुनाव जीत जाए, लेकिन इससे वह राष्ट्रीय स्तर पर उभरने की अपनी संभावनाओं को खत्म कर रही है। वामपंथियों, अंबेडकरवादियों और कतिपय विदेशी विद्वानों के दुष्प्रचार के बावजूद सनातन हिंदू जनमानस की एकजुटता बढ़ रही है। भाजपा को संसद से लेकर विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनावों में लगातार मिल रही सफलता इसका प्रमाण है। समाज में बंटवारा करने की तमाम कोशिशें जारी हैं, लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिलने जा रही है। हिंदू अब अपना अपमान सहने को तैयार नहीं है। वह इस बात को समझ गया है कि दुनिया के हर धर्म में पाखंड है, अंधविश्वास है, लेकिन उंगली केवल सनातनियों पर ही क्यों उठाई जाती है।