विकास में ड्रोन की बढ़ती भूमिका, खेतों से लेकर सरहदों की कर रहे निगरानी

Bharat Drone Mahotsav 2022 दुनिया भर में हो रहे तकनीकी विकास के बल पर दावे किए जा रहे हैं कि भविष्य में बड़े युद्ध रोबोट, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, ड्रोन आदि के दम पर लड़े जाएंगे। यही नहीं आतंक से मुकाबले में भी यही तकनीकी विकास हमारे काम आएगा। खास तौर से ड्रोन को इसी नजरिये से देखा जा रहा है। इधर देश की राजधानी दिल्ली में आयोजित दो दिवसीय ‘भारत ड्रोन महोत्सव 2022’ में ड्रोन तकनीक के कई और पहलू नजर आए। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ऐसे कई क्षेत्र गिना गए जिनमें देश ड्रोन का इस्तेमाल कर रहा है। गांवों में संपत्तियों की डिजिटल मैपिंग, केदारनाथ धाम के पुनर्निर्माण कार्य की निगरानी और सुशासन कायम रखने से लेकर देश में नए रोजगार पैदा करने में ड्रोन तकनीक को नए नजरिये से देखा जा रहा है। ये उदाहरण देश के विकास में ड्रोन तकनीक की बढ़ती भूमिका का संकेत देते हैं। अगर सच में ड्रोन इस भूमिका में खरा उतरे तो कंप्यूटर क्रांति की तर्ज पर हम जल्द ही एक नई क्रांति ड्रोन के रूप में घटित होते हुए देख सकते हैं। हालांकि यह काम आसान नहीं होगा, क्योंकि कोई भी तकनीक दोधारी तलवार की तरह होती है।

साकार होने को है ड्रोन क्रांति : फिलहाल यह एक बड़ा सपना है कि हमारा देश जल्द ही ड्रोन के इस्तेमाल से लेकर उत्पादन तक की धुरी बन सकता है। जिस तरह कंप्यूटर हमारे प्रत्येक कामकाज के जरूरी अंग बन गए हैं, उसी तरह आने वाले समय में ड्रोन कामकाज और रोजगार का परिदृश्य क्रांतिकारी ढंग से बदल सकते हैं। ऐसे कई क्षेत्र उभरकर सामने आने लगे हैं, जहां ड्रोन प्रयोग में लाए जा रहे हैं। हालांकि यह सही है कि इन मानवरहित स्वचालित छोटे विमानों यानी ड्रोन के सबसे पहले जंगी इस्तेमाल की बात उठी थी। हाल के वर्षो दहशतगर्द भी आतंक फैलाने के लिए इनके प्रयोग की छिटपुट कोशिशें करते रहे हैं। इसके बावजूद ड्रोन के इस्तेमाल के ज्यादातर संदर्भो का पहलू सकारात्मक ही रहा है। अपराधियों की धरपकड़ से लेकर समस्याग्रस्त इलाकों में ड्रोन से निगरानी कई देशों की पुलिस की कार्यशैली में शामिल हो चुकी है। हमारे देश में भी पुलिस को कुछ इलाकों में ड्रोन से निगरानी की सुविधा मिल चुकी है। ड्रोन मरीजों की जान भी बचा रहे हैं। लिवर या हार्ट ट्रांसप्लांट के लिए आनन-फानन में एक जगह से दूसरी जगह अंग पहुंचाने में ड्रोन की मदद ली जा रही है। पिज्जा और दूसरे सामानों की होम डिलीवरी के किस्से अभी हमारे देश में बहुत आम न हुए हों, लेकिन विदेश में यह आम बात हो गई है। इसी तरह शादियों और क्रिकेट जैसे खेलों में ड्रोन कैमरे का इस्तेमाल हमारे देश में भी आम हो चुका है।

खेतों से लेकर सरहदों की निगरानी कर रहे ड्रोन : आज पुलिस और सेना के लिए निगरानी, गोदामों में सामानों की गिनती या टैगिंग, जमीनों के अतिक्रमण का पता लगाने एवं सर्वेक्षण संबंधी जानकारी जुटाने, गहरी सुरंगों या ऊंचे टावरों के भीतर जाकर हालात का मुआयना करने, यूट्यूब के लिए वीडियो या फिल्म की शूटिंग करने से लेकर शौकिया इस्तेमाल के लिए भी बाजार में अलग-अलग किस्म के ड्रोन हाजिर हैं। हमारे देश में वन्यजीव अभयारण्यों में शिकारियों पर नजर रखने के लिए सबसे पहले काजीरंगा नेशनल पार्क के सुरक्षा अधिकारियों ने वर्ष 2013 में ड्रोन के उपयोग की घोषणा की थी। 480 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैले इस नेशनल पार्क के संरक्षित वन पर नजर रखनी इसलिए भी जरूरी हो गया है, क्योंकि गैंडे के सींगों के बढ़ते अवैध बाजार की वजह से उनके शिकार की समस्या एशिया में ही नहीं, बल्कि अफ्रीकी देशों में भी तेजी से बढ़ रही है। खेती बचाने में ड्रोन कैसे उपयोगी साबित हो सकते हैं, इसकी मिसाल फ्रांस में सबसे पहले देखने को मिली थी।

खेतों से लेकर सरहदों की निगरानी कर रहे ड्रोन : आज पुलिस और सेना के लिए निगरानी, गोदामों में सामानों की गिनती या टैगिंग, जमीनों के अतिक्रमण का पता लगाने एवं सर्वेक्षण संबंधी जानकारी जुटाने, गहरी सुरंगों या ऊंचे टावरों के भीतर जाकर हालात का मुआयना करने, यूट्यूब के लिए वीडियो या फिल्म की शूटिंग करने से लेकर शौकिया इस्तेमाल के लिए भी बाजार में अलग-अलग किस्म के ड्रोन हाजिर हैं। हमारे देश में वन्यजीव अभयारण्यों में शिकारियों पर नजर रखने के लिए सबसे पहले काजीरंगा नेशनल पार्क के सुरक्षा अधिकारियों ने वर्ष 2013 में ड्रोन के उपयोग की घोषणा की थी। 480 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैले इस नेशनल पार्क के संरक्षित वन पर नजर रखनी इसलिए भी जरूरी हो गया है, क्योंकि गैंडे के सींगों के बढ़ते अवैध बाजार की वजह से उनके शिकार की समस्या एशिया में ही नहीं, बल्कि अफ्रीकी देशों में भी तेजी से बढ़ रही है। खेती बचाने में ड्रोन कैसे उपयोगी साबित हो सकते हैं, इसकी मिसाल फ्रांस में सबसे पहले देखने को मिली थी।

बताते हैं कि फ्रांस के शहर बोर्डेक्स में शराब बनाने वाली एक कंपनी ने अंगूरों को संक्रमण से बचाने के लिए कैमरे लगे ड्रोन का इस्तेमाल किया था। ये ड्रोन अपनी उड़ान के दौरान अंगूरों की काफी करीब से तस्वीरें खींचते हैं, जिससे पता लग जाता है कि कहीं फसलें सड़ने तो नहीं लगी हैं। आठ साल पहले 2014 में पेट्रोलियम कंपनी बीपी ने अलास्का में एक ड्रोन का इस्तेमाल यह पता लगाने के लिए किया था कि सुदूर सुनसान इलाकों में फैली पाइपलाइनों में किसी किस्म की खराबी तो नहीं आई है। कड़कड़ाती ठंड और तेज हवाओं में पाइपलाइनों पर सतत नजर नहीं रखी जा सकती है। इन स्थितियों में ड्रोन काफी काम आते हैं। ड्रोन को प्राकृतिक आपदाओं में भी बखूबी इस्तेमाल किया जाता रहा है। नौ साल पहले 2013 में उत्तराखंड (केदारनाथ) में विनाशकारी बाढ़ के बाद ड्रोन की मदद से ही पहाड़ों, जंगलों और सुनसान जगहों पर फंसे लोगों की तलाश की गई थी। ये ड्रोन उन इलाकों में भी जाने में सक्षम थे, जहां हेलीकाप्टरों को उड़ान भरने में दिक्कत का सामना करना पड़ा था। कई और क्षेत्र हैं, जहां ड्रोन के इस्तेमाल ने आज नजारा ही बदल दिया है। अब इन हवाई मशीनों के इस्तेमाल से लोगों को अपने मनपसंद खेल को उस एंगल से देखने का भी मौका मिल रहा है, जिससे अभी तक वे वंचित थे, लेकिन जिस क्षेत्र में ड्रोन तकनीक को सबसे उल्लेखनीय भूमिका निभाने का मौका मिल रहा है, वह युद्ध ही है।

जंगी हथियार के रूप में ड्रोन : रूस-यूक्रेन के बीच जारी जंग के दौरान ऐसे कई दावे किए गए हैं कि वहां दोनों देशों की सेनाएं लड़ाकू ड्रोन का इस्तेमाल कर रही हैं। असल में इधर कुछ समय से हथियारों की सूची में ड्रोन एक अनिवार्यता बनने लगे हैं। जैसे भारत का ही उदाहरण लें तो हजारों किलोमीटर लंबी और भौगोलिक रूप से कई मुल्कों के साथ जमीनी सरहद साझा करने वाले हमारे देश के लिए सीमाओं और शत्रु देशों की हरकतों की सतत निगरानी के दृष्टिकोण से ड्रोन एक महती जरूरत बन गए हैं। सुदूर रेगिस्तानी और दुर्गम बर्फीली वादियों-पहाड़ियों में आतंकवादियों की घुसपैठ के अलावा विस्तारवादी चीन जैसे पड़ोसी देशों की हरकतों के मद्देनजर भी इनकी आवश्यकता है। ये ऐसी जगहों पर उस दौरान भी काम आ सकते हैं, जब मौसम की कठिनाइयों के कारण वहां सैनिकों की सतत तैनाती संभव नहीं होती है।

युद्धक ड्रोन चूंकि वास्तविक जंग में लड़ाकू विमानों के समान ही हमले कर सकते हैं, इसलिए इनके इस्तेमाल में पायलटों की जान और बेहद महंगे लड़ाकू विमानों के नुकसान की आशंकाएं भी नहीं रहती हैं। हालांकि इस मामले में भी स्वदेशीकरण की योजनाएं गंभीरता से लागू करना ज्यादा अच्छा है, क्योंकि उम्दा जंगी ड्रोनों की कीमतें भी लड़ाकू विमानों की तरह अरबों डालर में पहुंच गई हैं। कोशिश हो कि भारत युद्धक-सशस्त्र ड्रोन बनाने में ऐसी महारत हासिल करे जिससे वह इनका निर्यात करने की हैसियत में आ जाए। दुनिया में निगरानी करने वाले और जंगी ड्रोन की बढ़ती मांग को देखते हुए ऐसे ड्रोन का विकास करने का यह एक अच्छा अवसर है, जिसका फायदा भारत को उठाना चाहिए।

सवाल स्वदेशी ड्रोन के निर्माण का : जहां तक स्वदेशी युद्धक ड्रोन के निर्माण का प्रश्न है तो नोएडा में स्थित कुछ निजी कंपनियां मध्यम रेंज के निगरानी ड्रोन विकसित करने की प्रक्रिया में हैं, लेकिन वे सशस्त्र ड्रोन निर्माण करने की क्षमता से अभी दूर हैं। हालांकि देश के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की योजना है कि वह इस साल के अंत तक जंगी ड्रोन के प्रोटोटाइप बना ले, जिनमें जरूरतों के मुताबिक फेरबदल कर देश में ही युद्धक ड्रोन का उत्पादन किया जा सके।

हालांकि पिछले कुछ वर्षो में आतंकियों और कुछ गलत लोगों द्वारा भी ड्रोन के इस्तेमाल के मामले सामने आए हैं। इसका प्रयोग वे आतंकी हमला करने और मादक पदार्थो एवं हथियारों की तस्करी में कर रहे हैं। पिछले साल जम्मू एयरफोर्स एयरपोर्ट पर ड्रोन के जरिये आतंकियों ने एक हमला किया था। हालांकि आतंकियों के उस हमले में ज्यादा नुकसान नहीं हुआ था, लेकिन उससे यह तो साबित हुआ ही था कि अगर कोई तकनीक सर्वसुलभ हो जाती है तो सुरक्षा और निगरानी के काम में दिक्कतें पैदा हो सकती हैं। इन समस्याओं की भी कोई तोड़ हमारी सरकार और सुरक्षा एजेंसियों को जरूर निकालना होगा।

सामान्य तौर पर ड्रोन एक मानवरहित विमान होता है। इसमें एक पायलट भी होता है, पर वह ड्रोन में नहीं बैठता, बल्कि वह रिमोट कंट्रोल के जरिये उसपर नियंत्रण रखता है। दूसरा व्यक्ति आपरेटर की भूमिका में होता है, जो इस पर नजर रखता है कि ड्रोन किस दिशा में जा रहा है। ऐसी व्यवस्था आम तौर पर असैनिक उद्देश्यों के लिए काम में लाए जा रहे ड्रोन के लिए होती है। सैन्य और पुलिस भूमिका में काम आने वाले ड्रोन ज्यादा स्मार्ट होते हैं। वे कंप्यूटर से मिले निर्देश के अनुसार निगरानी या जासूसी करने के साथ-साथ तय की गई जगह पर बम अथवा मिसाइल दागने का भी काम करते हैं। सैनिक उपयोग में आने वाले ड्रोन सामान्य ड्रोन के मुकाबले कई गुना ज्यादा लंबी उड़ान भर सकते हैं। इनकी भुजाओं में बैटरी के अलावा कैमरे एवं सेंसर लगे होते हैं। इनमें कई और भी इंतजाम होते हैं। जैसे ब्रिटेन द्वारा बनाए गए ड्रोन-प्रिडेटर में 32 उपकरण हैं, जो इसे संचालित करने के साथ-साथ सूचनाएं बटोरने से लेकर हमला करने में सहयोग करते हैं।

यह दुश्मन के इलाके में लगातार 24 घंटे तक निगरानी कर सकता है। ब्रिटेन का ही एक अन्य ड्रोन-जेफर 82 घंटे की लगातार उड़ान भर सकता है। वैसे ड्रोन तकनीक की शुरुआत 18वीं सदी से मानी जाती है। दावा किया जाता है कि 18वीं सदी में आस्टिया ने जब वेनिस पर बम से भरे गुब्बारों के जरिये हमला बोला था तो उसमें ड्रोन तकनीक का ही इस्तेमाल किया था, लेकिन आधुनिक ड्रोन का लड़ाकू चेहरा पहली बार वर्ष 1912-13 में हुए बाल्कान युद्ध में सामने आया था। बाद के वर्षो में ब्रिटेन, रूस और अमेरिकी सेनाओं ने अफगानिस्तान, इराक और पाकिस्तान में इन्हें आसमानी हमलावरों की तरह खूब प्रयोग किया। अमेरिकी एयरफोर्स और खुफिया एजेंसी सीआइए के पास तो अपने-अपने सशस्त्र ड्रोनों की स्वतंत्र स्क्वाड्रन (सैन्य टुकड़ियां) भी हैं। इनका इस्तेमाल वे पाकिस्तान, अफगानिस्तान और दूसरे देशों में आतंकवादियों को मारने के लिए करती रही हैं।