सूखे के कारण साल 2050 तक 21.6 करोड़ लोगों को छोड़ना पड़ सकता है अपना घर, इन राज्‍यों पर संकट ज्‍यादा

संयुक्त राष्ट्र ने अपनी एक रिपोर्ट में आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन के कारण सूखे की घटनाओं में वृद्धि होने की आशंका जताई है। इस रिपोर्ट के अनुसार, साल 2000 से 2019 के बीच एक अरब से अधिक लोग सूखे से प्रभावित हुए हैं। सूखे से प्रभावित होने वाले देशों में सबसे अधिक अल्पविकसित और विकासशील देश शामिल हैं और उनमें भी सबसे अधिक प्रभावित महिलाएं और लड़कियां हैं। भारत भी अपवाद नहीं है। भारतीय कृषि क्षेत्र मुख्य रूप से मानसूनी वर्षा पर निर्भर है।

जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार, देश का लगभग 68 प्रतिशत हिस्सा अलग-अलग स्तरों पर सूखे से ग्रस्त है। मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि भारत के 35 प्रतिशत क्षेत्रों में 750 मिलीमीटर से 1125 मिलीमीटर तक वर्षा होती है। जबकि 33 प्रतिशत क्षेत्रों में 750 मिलीमीटर से भी कम वर्षा होती है, ये क्षेत्र ही सूखे से ज्यादा प्रभावित रहते हैं। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, जब किसी क्षेत्र में होने वाली वर्षा सामान्य स्तर से 26 प्रतिशत कम होती है तो वह क्षेत्र सूखे से ग्रस्त माना जाता है। सूखे के दो स्तर होते हैं, एक सामान्य सूखा और दूसरा गंभीर सूखा। जब किसी क्षेत्र में वर्षा की कमी 26 से 50 प्रतिशत के बीच होती है तो उसे सामान्य सूखा माना जाता है, लेकिन अगर वर्षा की कमी 50 प्रतिशत से अधिक हो जाती है तो इसे गंभीर सूखे की श्रेणी में रखा जाता है।

भारत में सूखे से सबसे अधिक प्रभावित राज्य राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक और मध्य प्रदेश हैं। इसके अलावा गुजरात, उत्तर प्रदेश का कुछ क्षेत्र, झारखंड और ओडिशा का आंतरिक हिस्सा तथा तमिलनाडु का दक्षिणी भाग भी इससे प्रभावित रहता है। भारत में सूखे का मुख्य कारण मानसून के दौरान कम वर्षा का होना है। देखा गया है कि अगर मानसून 10 से 20 दिनों की देरी से आता है, तब भी सूखा पड़ता है। भारत में पड़ने वाले सूखे का एक प्रमुख कारण, यहां होने वाली वर्षा का असमान वितरण भी है। यानी कुछ क्षेत्रों में तो वर्षा काफी ज्यादा हो जाती है, लेकिन कई क्षेत्रों में वर्षा काफी कम होती है। इसके अलावा भारत में 80 प्रतिशत वर्षा 100 दिनों से कम दिनों में हो जाती है, जबकि शेष दिनों में केवल 20 प्रतिशत वर्षा होती है।

विश्व बैंक का अनुमान है कि सूखे की वजह से वर्ष 2050 तक करीब 21.6 करोड़ लोगों को पलायन करने के लिए विवश होना पड़ सकता है। शुष्क तथा अनावृष्टि वाले क्षेत्रों में जल की आपूर्ति के लिए देश की प्रमुख नदियों के बेसिन आपस में जोड़कर नदियों का एक ग्रिड बना देना चाहिए। जल संचयन के लिए अधिक से अधिक कुओं और तालाबों आदि का निर्माण करना चाहिए। जल संग्रहण से लिए छोटे बांधों का निर्माण किया जाना चाहिए। सूखा पड़ने वाले क्षेत्रों में आर्गेनिक फार्मिंग भी जीवनदायी सिद्ध हो सकती है।