मशहूर गजल गायक भूपिन्दर सिंह का सोमवार को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। वे 82 साल के थे। उन्हें पेट की बीमारी थी। उनका अंतिम संस्कार मंगलवार रात करीब 12:30 बजे मुंबई के ओशिवारा क्रिमेटोरियम हुआ। गायकी की दुनिया में अलग मुकाम रखने वाले भूपिन्दर असल में गायक बनना ही नहीं चाहते थे। इस बात का जिक्र उन्होंने 2016 में दिए एक इंटरव्यू में किया था। उन्होंने कहा था कि घर में इतना संगीत था कि मुझे डर था कि मैं क्या अलग कर पाऊंगा और मुझे इज्जत नहीं मिलेगी।
घर में संगीत ही संगीत था, मैं करियर को लेकर डर गया
एक मीडिया हाउस को दिए इंटरव्यू में उन्होंने बताया था- ‘मेरे घर में इतना संगीत था, कि मैं कभी भी म्यूजिक से जुड़ना नहीं चाहता था। मेरे पिता नाथा सिंह अमृतसर में म्यूजिक के प्रोफेसर थे। मेरे बड़े भाई छोटी उम्र से ही इंस्ट्रुमेंट्स बजाते थे। मुझे ऐसा लगता था कि अगर मैं म्यूजिक से जुड़ा तो कभी भी इज्जत नहीं मिलेगी।
उन्होंने आगे कहा- ‘इसी कारण मैं म्यूजिक में अपना करियर नहीं बनाना चाहता था। एक वक्त आया मैंने गाना छोड़ दिया। इसके बाद मैंने हवाइन गिटार सीखना शुरू किया और बहुत मुश्किल गाने उसमें बजाने लगा। इसमें मैंने क्लासिकल म्यूजिक भी प्ले करना शुरू किया। गिटार बजाते-बजाते मेरे अंदर संगीत की रुचि एक बार फिर जागी और मैं दोबारा गाना गाने लगा। गिटार मुझे फिर गायकी में ले आया।’
पंचम दा के नवरत्न थे भूपिन्दर
भूपिन्दर ने फिल्म दम मारो दम के गाने हरे राम हरे कृष्णा से गिटारिस्ट के रूप में बॉलीवुड डेब्यू किया था। इस गाने को आर डी बर्मन ने कंपोज किया था। इसके बाद उन्होंने आर डी बर्मन के लगभग सभी बेहतरीन गानों में गिटार प्ले किया। इसमें यादों की बारात फिल्म का चुरा लिया है तुमने…, अमर प्रेम फिल्म का चिंगारी कोई भड़के…, चलते चलते का टाइटल ट्रैक और शोले का महबूबा ओ महबूबा गाना शामिल है। कई मौकों पर आर डी बर्मन यानी पंचम दा ने भूपिन्दर को अपने नवरत्न में से एक रत्न बताया था।
भूपिन्दर सिंह के गायक के तौर पर फेमस गाने
- आने से उसके आए बहार, फिल्म- जीने की राह (1996)
- किसी नजर को तेरा इंतजार आज भी है, फिल्म- ऐतबार (1985)
- थोड़ी सी जमीन थोड़ा आसमान, फिल्म- सितारा (1980)
- बीती न बिताई रैना, फिल्म- परिचय (1972)
- दिल ढूंढ़ता है, फिल्म- मौसम (1975)
- नाम गुम जाएगा, फिल्म- किनारा (1977)
- एक अकेला इस शहर में, फिल्म- घरौंदा (1977)
- हुजूर इस कदर भी न इतरा कर चलिए, फिल्म- मासूम (1983)
- करोगे याद तो हर बात याद आएगी, फिल्म- बाजार (1982)
- कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, फिल्म- आहिस्ता आहिस्ता (1981)