इंसान खुश हो, तनाव में हो, हर परिस्थिति में खुद से बात करता है। अपने आप से बात करने का तरीका महत्वपूर्ण है। आप जिस तरीके से खुद से बात करते हैं उसकाे बेहतर कर अपनी मानसिक सेहत और व्यक्तित्व के विकास में बड़ा बदलाव ला सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि खुद से बातचीत (सेल्फ टाॅक) काे प्रैक्टिस से कंट्रोल कर अच्छे नतीजे लाने में मदद मिलती है।
यूनिवर्सिटी ऑफ मिशीगन के सायकाेलाॅजिस्ट प्राे. ईथन क्राॅस का कहना है कि अपने से बातचीत का काेई नियम नहीं है। यह आलाेचना भी हाे सकती है। खुद से स्वस्थ संवाद काम मेें फाेकस बढ़ाने, कठिन हालात का सामना करने और बेहतर समझ बनाकर हमारे विकास में अहम भूमिका निभाता है। अगर आपकी सेल्फ टाॅक नकारात्मक है और आप इसे बदलना चाहते हैं तो लगन और अनुशासन से बदल सकते हैं।
इसे नए सिरे से विकसित कर सकते हैं। अमेरिका के काेलाेराडाे की मनाेवैज्ञानिक मेलिंडा फाउट्स के अनुसार लक्ष्य नकारात्मक सेल्फ टाॅक काे बदल कर इस विचार काे मजबूत बनाना है कि आप अच्छे, काबिल और सक्षम हैं। इसका अर्थ गलतियाें काे अनदेखा करना नहीं है।
सूत्र वाक्य बनाकर शुरुआत करें
फाउट्स कहती हैं कि अपने लिए एक सूत्र वाक्य बना लें जाे दिमाग में जड़ें जमाए और नकारात्मक साेच का विराेध करें। मैं अच्छे से भी बेहतर हूं या मैं बहुत काबिल हूं। इसे दाेहराएं। दबाव, तनाव, थकान में इसे याद रखना कठिन हाेगा। अपने कमरे, घर में कई जगह लिखें, दाेहराएं जिससे नकारात्मक विचार दूर हों।
अपना नाम लेकर खुद से बात करें
किसी समस्या पर दूसरे काे सलाह देना आसान हाेता है। ऐसे में अपना नाम लेकर या खुद को “आप” कहकर खुद से बातचीत करें। इससे आप उस विषय से मानसिक रूप से दूर होंगे। बेहतर सलाह दे पाएंगे। ऐसा सोचना भी कारगर हो सकता है कि उस समस्या पर एक महीने या साल भर बाद आप क्या साेचेंगे।
प्रकृति के करीब जाएं, चिंताएं छोटी होंगी
प्रकृति के नजदीक जाएं। इससे चिंता, समस्याओं से ध्यान हटकर आसपास के माहाैल पर जाएगा। ऐसी जगह पर जाएं जहां प्रकृति के सामने हम बाैने लगें, नकारात्मक विचार छाेटे लगेंगे। नकारात्मक विचाराें काे दूर रखने की फिजिकल स्पेस मिलेगी। सकारात्मक आवाज काे बल मिलेगा।
ऐसे लोगों से बात करें, जो आपको सुनें
सेल्फ टाॅक के प्रबंधन में ऐसे लाेग बेहतर हाे सकते हैं जाे आपकी बात काे सुनें और समाधान तक पहुंचने में आपकी मदद करें। समस्या के बारे में दूसरों से बात करने में अच्छा महसूस हो सकता है, लेकिन भीतरी संवाद बेहतर हो जरूरी नहीं है। यह विचार करना हाेगा कि किससे बात करना मददगार होगा।