भारतीय फौज की आर्टिलरी रेजिमेंट ने पाकिस्तानी फौज की टेंशन बढ़ा दी थी। 59 फील्ड रेजिमेंट में तैनात राम बिलास सिंह यादव द्रास सेक्टर में दुश्मनों पर गोला बनकर बरस रहे थे। दोनों ओर से तोपें गरज रहीं थीं। हमले में 20 से ज्यादा पाकिस्तानी सैनिक मारे जा चुके थे।
राम बिलास दुश्मन को पीछे धकेलते हुए आगे बढ़ रहे थे। अंधेरा भी होने लगा था। तभी एक गोली राम बिलास के सीने में लगी। उन्हें लगा जैसे कोई नुकीला पत्थर आके लगा हो। वह लगातार आगे बढ़ रहे थे। पूरी वर्दी खून से लथपथ थी। धीरे-धीरे दम उखड़ने लगा और वीरगति को प्राप्त हो गए।
यह कहानी उनके साथ लड़ाई में शामिल दोस्तों ने पत्नी पुष्पा को बताई थी।
कारगिल युद्ध 26 जुलाई 1999 को खत्म हुआ था। 3 महीने तक चले इस युद्ध में 527 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे। कारगिल वॉर हीरोज की कहानी के तीसरे पार्ट में गाजीपुर के बहादुर फौजी राम बिलास सिंह यादव की बात करेंगे।
पत्नी पुष्पा ने बताया, ” 22 सितंबर 1999 को रोजमर्रा के काम कर रही थी। शाम के वक्त टेलीफोन की घंटी बजी तो बेहद्द उत्सुकता में फोन उठाया। मुझे लगा लाइन पर राम बिलास हैं। लेकिन तभी एक अनजान की आवाज मेरे कानों तक पहुंची और उन्होंने कहा, ‘राम बिलास मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए हैं’।
जिस उत्सुकता से फोन उठायी थी ठीक उसके उलट एकदम सुन्न पड़ चुकी थी। एक ही झटके में सबकुछ खत्म हो गया। 15 साल का साथ 15 सेकंड में किसी फिल्म के सीन की तरह गुजर रहा था। दूसरी तरफ 3 बच्चों के मासूम चेहरे एकटक निगाहों से मेरे मन के दुःख को पढ़ने की कोशिश कर रहे थे। पूरे परिवार में मातम पसर चुका था।”
दोस्त को भर्ती में लेकर गए, जॉइनिंग लेटर लेकर आए
यादों को ताजा करते हुए पुष्पा ने बताया, “राम बिलास गांव के ही अपने दोस्त गोपाल यादव को आर्मी में भर्ती के लिए रिक्रूटमेंट सेंटर वाराणसी लेकर गए थे। दोस्त कपड़ा और झोला देकर दौड़ने के लिए चला गया। राम बिलास ग्राउंड के किनारे बैठे थे और एकटक सैकड़ों की भीड़ में दोस्त को दौड़ते हुए देख रहे थे।
तभी बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर की नजर राम बिलास पर पड़ी। उन्होंने एक सैनिक से उन्हें बुलवाया, ऑफिसर के पास जाकर राम बिलास सावधान मुद्रा में खड़े हो गए। ऑफिसर ने राम बिलास की कद काठी को देखा फिर पूछा- आर्मी में भर्ती होना चाहते हो बेटा? कुछ सेकंड के लिए राम बिलास को कुछ समझ ही नहीं आया कि क्या जवाब दूं। फिर उन्होंने हां में सिर हिलाते हुए धीमे स्वर में कहा, यस सर।
CO ने कहा दो दिन बाद दौड़ लगाने के लिए आ जाना। राम बिलास गए, दौड़े और पास हो गए। अगले दिन डाक्यूमेंट्स वेरिफिकेशन के बाद उनको जॉइनिंग लेटर दे दिया गया।
आर्मी में भर्ती होने की जानकारी मिलेते ही रोने लगा परिवार
पत्नी पुष्पा ने बताया, “आर्मी में भर्ती होने की खबर राम बिलास ने घर लौटते ही सबसे पहले मां को बताई। इस पर मां ने रोना शुरू कर दिया। वह भी रोने लगी थीं। उनके पिता भी आर्मी में थे। उन्होंने घर आकर सबको समझाया कि लड़का देश सेवा के लिए जा रहा है, इससे बड़ा पुण्य का काम क्या होगा। आप सभी उसको आशीर्वाद दें। तब जाकर घर वाले माने, फिर वो जॉइनिंग के लिए हैदराबाद गए।
पहली पोस्टिंग सिक्किम में हुई
पत्नी ने बताया, “रेडियो ऑपरेटर के पोस्ट पर 59 फील्ड रेजिमेंट, आर्टिलरी में तैनाती मिली। पहली पोस्टिंग सिक्किम के गंगटोक में हुई थी। कुछ समय बाद तैनाती लेह क्षेत्र में कर दी गई। इनके सर्विस का अधिकतर टेन्योर लेह के कई हजार फीट ऊंचे बर्फीली चोटियों पर बीता। वहां इनकी बेहतरीन सर्विस के लिए सेना ने उनको सियाचिन ग्लेशियर मेडल से सम्मानित किया था।
युद्ध शुरू हुआ तो यूनिट को कारगिल भेजा गया
पुष्पा देवी ने बताया, “कारगिल युद्ध जब शुरू हुआ तब उनकी तैनाती हरियाणा के पंचकूला डिस्ट्रिक्ट में चंडीमंदिर कैंटोनमेंट में थी। फिर उनकी यूनिट को कारगिल के द्रास सेक्टर में तैनात कर दिया गया।”
पुष्पा देवी ने पति से आखिरी बार मुलाकात को याद करते हुए बताया, “उनकी शहादत से पहले गाजीपुर के जवान अश्वनी कुमार शहीद हो गए थे। उनके पार्थिव शरीर को उनके घर पहुंचाने के लिए उनकी ड्यूटी लगी थी। वापसी के टाइम एक घंटे के लिए घर आए थे। जाते समय पूरा परिवार भावुक था। हमें देखकर वो भी इमोशनल हो गए थे।”
पुष्पा देवी कहती हैं, “उनको खोने का दर्द पूरी जिंदगी सालता रहेगा। लेकिन उनकी शहादत पर मुझे गर्व है। मरता तो हर कोई है, लेकिन शहीद सभी नहीं होते। सामान्य मृत्यु और इस मृत्यु में फर्क है। तिरंगे में लिपटा हुआ शरीर मातृभूमि पर सर्वोच्च बलिदान का उदाहरण है।”
26 सितम्बर 1999 को पति का पार्थिव शरीर घर पहुंचा, उस दिन पूरा क्षेत्र बंद था, वो धन्य हो गए, उस दिन उनको सम्मान देने के लिए पूरा इलाका ऐसे तैनात था जैसे उनका ही बेटा घर आ रहा हो।
बेटी टीचर बनना चाहती है, एक बेटा है डॉक्टर
राम बिलास अपने पीछे 2 बेटे और एक बेटी को छोड़ गए। बड़ा बेटा रवि कुमार यादव लखनऊ में डॉक्टर है। वह अपना क्लिनिक चलाते हैं। वहीं दूसरा बेटे राहुल कुमार यादव इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहा है। बेटी स्नेहलता यादव टीचर बनना चाहती है, वह तैयारियों में जुटी हैं।
बूढ़ी मां ने बेटे की प्रतिमा लगाने से मना कर दिया
गुलाबी देवी शहीद राम बिलास यादव की मां हैं। उनकी उम्र 85 साल को पार कर गयी है। गुलाबी देवी कहती हैं, “बेटे की शहादत के बाद जिला प्रशासन घर के सामने मूर्ति लगाना चाहता था। लेकिन मना कर दिया। अधिकारियों से कहा, “लाल को देखकर रोज आंसू बहते रहेंगे।”