काशी हिंदू विश्वविद्यालय में एडमिशन के 3 महीने बाद भी PhD का सिलेबस तय नहीं हो पाया है। यह खस्ता हाल हिंदी विभाग का है। सिलेबस न बन पाने से विभाग में प्रयोजन मूलक हिंदी पत्रकारिता के छात्रों को हिंदी साहित्य का सिलेबस पढ़ाया जा रहा है। विभाग में दो छात्रों ने इस विषय में एडमिशन लिया है। एडमिशन लिए छात्रों के प्री-PhD कोर्स का संचालन भी शुरू हो गया है। छात्रों का कहना है, ”यहां पर हमे पत्रकारिता के इतिहास और मास कम्युनिकेशन रिसर्च के बजाय ‘भक्तिकाल’ और ‘छायावाद’ पढ़ाया जा रहा है।” छात्रों का कहना है कि साल 2009 के बाद इसका सिलेबस ही नहीं बना।
छात्रों ने बताया कि साहित्य और प्रयोजनमूलक हिंदी पत्रकारिता का सिलेबस पूरी तरह से अलग है। प्रयोजन मूलक पत्रकारिता में हम वह हिंदी पढ़ते हैं, जो रोजमर्रा से जुड़ी होती हैं। जहां, हिंदी साहित्य में लिट्रेचर्स रिसर्च पर जोर होता है, वहीं प्रयोजनमूलक हिंदी पत्रकारिता में जनसंचार शोध पर। यहां तक कि पीजी में भी दोनों की क्लासेज अलग-अलग चलती हैं।
कंप्लेन करने वाले PhD छात्र नील दुबे ने कहा कि विभागाध्यक्ष कार्यालय में पत्र दिया, रिसीविंग नहीं मिली, तब HOD प्रो. विजय बहादुर सिंह को मेल किया है। इसमें सिलेबस और प्री-PhD कोर्सवर्क के संचालन की मांग की। मगर, अब तक कोई कार्यवाही नहीं हो सकी है। नील ने कहा, ”बीते 11 मई को उन्हें RET एग्जंप्टेड के द्वारा PhD में प्रवेश मिला था। अब तीन महीने होने वाले हैं।”
इस विषय के 2 प्रोफेसर भी हैं नियुक्त
छात्र का कहना है कि जब आपको परीक्षा प्रयोजमूलक हिंदी पत्रकारिता की देनी है, तो साहित्य की पढ़ाई क्यों कराई जा रही है। इसका क्या औचित्य है। ऐसा भी नहीं कि विश्वविद्यालय के पास इस विषय के प्रोफेसर नहीं हैं। कई साल से खाली चल रहे प्रयोजमूलक हिंदी पत्रकारिता में एक असिस्टेंट प्रोफेसर और एक प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति भी हुई है। छात्रों ने बताया वे विभाग के कई दूसरे प्रोफेसरों से भी मिले, मगर कोई ठोस जवाब नहीं मिल सका।
छात्र ने बताया- 2009 में आखिरी बार बना था सिलेबस
छात्र ने बताया कि आखिरी बार प्रयोजन मूलक के सिलेबस पर 2009 में पढ़ाई शुरू हुई थी। उसके बाद प्रयोजन मूलक पढ़ाने वाला न तो कोई प्राेफेसर था और न ही कोई छात्र आएं। अब 2022 में इस विषय में एडमिशन हुआ तो पता चला कि सिलेबस ही नहीं है।
क्या होता है प्री-PhD कोर्स
PhD करने छात्र आते हैं तो सबसे पहले पढ़ाया जाता है कि इसकी शुरुआत कैसे करें। इसी को प्री- PhD कोर्स कहा जाता है। यह 6 महीने चलता है। इसके बाद एग्जाम होता है।
नहीं मिली कंप्लेन की रिसीविंग
छात्र जब शिकायत दर्ज कराने विभाग के कार्यालय पहुंचे, तो उन्हें रिसीविंग भी नहीं दी गई। छात्र नील ने बताया कि वरिष्ठ सहायक कुमार शैलेंद्र ने यह कहते हुए इन्कार किया कि रिसीविंग और डायरी नंबर कुछ भी इस टेबल से नहीं मिलता।