एक शरीर में रहते हैं कई लोग:यह भूत-प्रेत का साया नहीं, बल्कि डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर; एक्सपर्ट से जानें सब कुछ

आपने एक ही इंसान के अंदर कई लोगों के रहने के बारे में सुना होगा। भारत में अक्सर इसे भूत-प्रेत का वास समझकर तंत्र-मंत्र जैसी विद्याओं का सहारा लिया जाता है। मगर आपको यह जानकर हैरानी होगी कि किसी व्यक्ति के साथ ऐसा एक मानसिक बीमारी के चलते हो सकता है, जिसका नाम डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर (DID) है। पहले इसे मल्टिपल पर्सनालिटी डिसऑर्डर भी कहा जाता था।

DID के बारे में विस्तार से जानने के लिए हमने अपोलो हॉस्पिटल अहमदाबाद में वयस्क और बाल मनोचिकित्सक डॉ. जिनेश शाह से बात की।

सवाल: DID क्या है और क्यों होता है?

जवाब: डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर एक ऐसी मानसिक बीमारी है, जिसमें एक इंसान के दो या उससे ज्यादा व्यक्तित्व रहते हैं। इसमें होने वाली परेशानी को डिसोसिएशन कहा जाता है। इसका मतलब है अपनी मानसिक प्रक्रियाएं जैसे सचेत होना, धारणा और याददाश्त से खुद को अलग कर लेना।

DID होने की कई वजहें हो सकती हैं, लेकिन इसका सबसे बड़ा कारण है ट्रॉमा। इसका मतलब किसी भी तरह का शारीरिक या मानसिक शॉक। आमतौर पर यह बचपन में हुए शारीरिक, मानसिक या सेक्शुअल शोषण से आता है।

3 मामलों से समझिए DID…

केस 1: ऋषभ (बदला हुआ नाम) को बचपन से ही उसके पिता डांटते-मारते थे। शांत स्वभाव होने के चलते वह सब कुछ चुपचाप सहन कर लेता था। पर 18-19 साल की उम्र में उससे यह ट्रॉमा हैंडल नहीं हुआ। उसकी एक दूसरी पर्सनालिटी विकसित हो गई। यह पर्सनालिटी पिता के डांटने-मारने पर उनसे लड़ जाती थी। इस दौरान ऋषभ अपने पिता पर हाथ उठाता था, उन्हें गालियां देता था। यह देख पिता भी हैरान रह जाते थे।

केस 2: शहनाज (बदला हुआ नाम) बहुत ही रूढ़िवादी मुस्लिम परिवार का हिस्सा है। उसके घर में बचपन में ही मामा-चाचा के बच्चों से शादी तय हो जाती है। इन परेशानियों की वजह से शहनाज की दूसरी पर्सनालिटी बन गई। जब-जब यह बाहर आती, तब-तब शहनाज हिंसक बर्ताव करती। उसे और परिवार वालों को लगने लगा कि उसके अंदर कुछ देर के लिए जिन आ जाता है। डॉक्टर से संपर्क करने पर पता चला कि शहनाज को DID है।

केस 3: डेनियल (बदला हुआ नाम) ब्रिटेन का रहने वाला है। उसे स्कूल में बहुत बुली किया जाता था। वह दूसरे बच्चों के सामने कभी खड़ा नहीं हो पाता। इसके कारण डेनियल में 5 पर्सनालिटी विकसित हो गईं। एक पर्सनालिटी डेनियल को बुली करने वाले बच्चों से बचाती थी, तो दूसरी एक बुजुर्ग जैसे उसे जिंदगी जीने की सीख देती थी

सवाल: क्या फिल्मों में DID को सही तरह से प्रेजेंट किया जाता है?

जवाब: फिल्मों में इस डिसऑर्डर को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है क्योंकि यह टॉपिक काफी रोचक है। फिल्मों में DID के मरीज की एक पर्सनालिटी अच्छी तो एक राक्षस जैसी होती है। लेकिन असलियत में ऐसा नहीं होता। पर्सनालिटी केवल उस ट्रॉमा को हैंडल करने के लिए विकसित होती है, इसलिए जरूरी नहीं कि वो बुरी हो।

इसी तरह यह धारणा भी बनी हुई है कि DID के मरीजों को यह याद नहीं रहता कि उनकी किस पर्सनालिटी ने क्या किया। वास्तव में ऐसा नहीं होता। मरीजों को धुंधली याद से लेकर सब कुछ याद रह सकता है।

सवाल: भारत में DID के मरीजों की क्या स्थिति है?

जवाब: हमारे देश में DID के मरीजों को पागल माना जाता है। यहां इस बीमारी के प्रति बिल्कुल जागरूकता नहीं है। इसके अलावा DID के सबसे ज्यादा मरीज ग्रामीण इलाकों में ही होते हैं, क्योंकि वे किसी न किसी तरह का ट्रॉमा झेल रहे होते हैं। अवेयरनेस न होने के कारण ये मरीज कभी सामने नहीं आते। इन तक मेंटल हेल्थ सर्विस की पहुंच भी नहीं होती।

सवाल: DID का क्या इलाज है?

जवाब: DID के लिए डीप साइकोथेरेपी की जरूरत पड़ती है। इसमें मानसिक थेरेपी, फैमिली थेरेपी, रिलैक्सेशन टेक्नीक और मेडिटेशन जैसी चीजें शामिल हैं। इसमें दवाओं का प्रयोग भी किया जाता है। मरीज को ट्रॉमा से ट्रिगर न होने की ट्रेनिंग दी जाती है। अमेरिका की नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के अनुसार एक मरीज इलाज से पहले 5 से 12.5 साल DID से जूझता है।