5 महीने के निचले स्तर पर महंगाई:जुलाई में थोक महंगाई दर 15.18% घटकर 13.93% पर आई, खाने-पीने का सामान हुआ सस्ता

जुलाई महीने में थोक मूल्य सूचकांक आधारित (WPI) महंगाई में गिरावट देखने को मिली है। इसी के चलते ये 13.93% पर आ गई है। इससे पहले जून में ये 15.18% पर थी। खाद्य महंगाई दर 12.41% से 9.41% पर आ गई है। हालांकि थोक महंगाई लगातार 16वें महीने डबल डिजिट में बनी हुई है। इससे पहले जुलाई में रिटेल महंगाई में भी कमी आई थी। जुलाई में थोक महंगाई 5 महीने के निचले स्तर पर आ गई है।

  • जुलाई 9.41 में खाद्य महंगाई दर पर पहुंच गई जो जून में 12.41% थी।
  • सब्जियों की महंगाई 56.75% से घटकर 18.25 रह गई।
  • आलू की महंगाई 39.38% से बढ़क 53.50%र हो गई।
  • अंडे, मीट और मछली की महंगाई 7.24% से घटकर 5.55% रह गई।
  • प्याज की महंगाई बढ़ी है। ये -31.54% से बढ़कर -25.93 हो गई।
  • मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स की महंगाई 9.19% से घटकर 8.16 रही।
  • फ्यूल और पावर इंडेक्स जिसमें LPG, पेट्रोलियम और डीजल जैसे आइटम शामिल हैं, ये 40.38% से बढ़कर 43.75% हो गई।

WPI का आम आदमी पर असर
थोक महंगाई के लंबे समय तक बढ़े रहना चिंता का विषय है। ये ज्यादातर प्रोडक्टिव सेक्टर को प्रभावित करती है। यदि थोक मूल्य बहुत ज्यादा समय तक उच्च रहता है, तो प्रड्यूसर इसे कंज्यूमर्स को पास कर देते हैं। सरकार केवल टैक्स के जरिए WPI को कंट्रोल कर सकती है।

जैसे कच्चे तेल में तेज बढ़ोतरी की स्थिति में सरकार ने ईंधन पर एक्साइज ड्यूटी कटौती की थी। हालांकि, सरकार टैक्स कटौती एक सीमा में ही कर सकती है, क्योंकि उसे भी सैलरी देना होता है। WPI में ज्यादा वेटेज मेटल, केमिकल, प्लास्टिक, रबर जैसे फैक्ट्री से जुड़े सामानों का होता है।

रिटेल मंहगाई 7.01% से घटकर 6.70% पर आई
खाने पीने का सामान खास तौर पर खाने का तेल और सब्जियों की कीमतों के घटने की वजह से रिटेल महंगाई दर कम हुई है। शनिवार को जारी किए सरकारी आंकड़ों के मुताबिक कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) आधारित रिटेल महंगाई दर जून में घटकर 6.70% हो गई। मई में ये 7.01% पर थी। हालांकि, यह लगातार पांचवां महीना है जब महंगाई दर RBI की 6% की ऊपरी लिमिट के पार रही है।

महंगाई कैसे मापी जाती है?
भारत में दो तरह की महंगाई होती है। एक रिटेल, यानी खुदरा और दूसरी थोक महंगाई होती है। रिटेल महंगाई दर आम ग्राहकों की तरफ से दी जाने वाली कीमतों पर आधारित होती है। इसको कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) भी कहते हैं। वहीं, होलसेल प्राइस इंडेक्स (WPI) का अर्थ उन कीमतों से होता है, जो थोक बाजार में एक कारोबारी दूसरे कारोबारी से वसूलता है। ये कीमतें थोक में किए गए सौदों से जुड़ी होती हैं।

दोनों तरह की महंगाई को मापने के लिए अलग-अलग आइटम को शामिल किया जाता है। जैसे थोक महंगाई में मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स की हिस्सेदारी 63.75%, प्राइमरी आर्टिकल जैसे फूड 20.02% और फ्यूल एंड पावर 14.23% होती है। वहीं, रिटेल महंगाई में फूड और प्रोडक्ट की भागीदारी 45.86%, हाउसिंग की 10.07%, कपड़े की 6.53% और फ्यूल सहित अन्य आइटम की भी भागीदारी होती है।