NIA को देश में आतंक के एक नए हाईटेक नेटवर्क का पता चला है। NIA के सूत्रों ने बताया कि आतंकी संगठन ISIS और अलकायदा ने मिलकर भारत में स्लीपर सेल का जाल बिछा लिया है।
इस नेटवर्क से जुड़े लोग जब भी आपस में बात करते हैं तो उसके लिए पहले एक मोबाइल ऐप डेवलप करते हैं। बातचीत खत्म होते ही उस ऐप को डिलीट कर दिया जाता है, इसलिए इन्हें ट्रेस करना बड़ी चुनौती बन गई है।
देश के अलग-अलग राज्यों में पहले से सक्रिय है ग्रुप
ये दोनों बड़े आतंकी संगठन भारत में छोटे-छोटे आतंकी संगठनों को पैसा भेजकर उन्हें अपने नेटवर्क में शामिल कर रहे हैं। ये ग्रुप अलग-अलग राज्यों में पहले से सक्रिय रहे हैं, इसलिए ISIS और अलकायदा तेजी से स्लीपर सेल तैयार करने में सफल हो चुके हैं।
NIA ने हाल ही में एक संदिग्ध आतंकी को ट्रेस करने का प्रयास किया था। इसके लिए आतंकी गुटों की सोशल मीडिया चैट को इंटरसेप्ट किया गया। इससे पता चला कि नेटवर्क से जुड़े लोग बात करने के कुछ ही मिनटों में सारे डिजिटल फुटप्रिंट मिटा देते हैं। अगली बातचीत के लिए एक नया ऐप डेवलप करते हैं।
अन-इंस्टॉल कर दिया जाता है ऐप
NIA ने पिछले दिनों कुछ संदिग्धों के बीच एक सीक्रेट चैटिंग ऐप के जरिए हुई बातचीत को इंटरसेप्ट करने की कोशिश की थी। सूत्रों ने बताया कि आतंकी संगठनों से जुड़े 100 से अधिक संदिग्धों ने आपस में बातचीत के लिए इस ऐप का इस्तेमाल किया।
बातचीत के तुरंत बाद सभी लोगों ने ऐप काे मोबाइल से अन-इंस्टॉल कर दिया। उसके बाद उनके ऐप डेवलपर ने उस ऐप को ही नष्ट कर दिया। ये लोग 10 अलग-अलग राज्यों में सक्रिय हैं। NIA ने इन्हें ट्रेस करने के लिए ही पिछले दिनों 7 राज्यों के 14 शहरों में छापमारी भी की थी, लेकिन कोई खास कामयाबी नहीं मिल पाई।
फॉलो करने वालों को ही बना देते हैं स्लीपर सेल
ISIS और अलकायदा से जुड़े कुछ लोग देश के बाहर रहकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए मुस्लिम युवाओं को बरगलाने के लिए बार-बार वीडियो संदेश जारी करते हैं। इन वीडियो के जरिए देश और समाज के प्रति नफरत पैदा की जाती है। फिर धीरे-धीरे कट्टरता बढ़ाने वाले वीडियो-संदेश भेजे जाते हैं।
इनसे प्रभावित होकर जो युवा कट्टरपंथी बन जाता है, उसे अलग ग्रुप में रखा जाता है। उसके बाद ब्रेनवॉश किया जाता है। जब आतंकी संगठनों को लगता है कि युवा उनके नेटवर्क में जुड़ने के लिए तैयार है तो वे उसे स्लीपर सेल बना लेते हैं। बीते दिनों NIA को बिहार में जांच के दौरान गजवा-ए-हिंद नाम से ऐसे ही कई सोशल मीडिया चैट ग्रुप मिले थे। इनका इस्तेमाल युवाओं को जोड़ने के लिए किया गया था।