हाल ही में फिरोजाबाद पुलिस लाइन में तैनात रहे सिपाही मनोज कुमार के दो वीडियो वायरल हुए। पहले वीडियो में वह रोते हुए पुलिस लाइन मेस में मिलने वाले खाने की खराबी बता रहे हैं। दूसरे वीडियो में वह बताते हैं, “मुझे आगरा ले जाकर मेंटल घोषित करने का प्रयास किया जा रहा।”
इस वीडियो के बाद दैनिक भास्कर की टीम ने पुलिसवालों को मिलने वाले खाने और बाकी सुविधाओं को लेकर पुलिसकर्मियों से बात की। उन्होंने जो बताया वह हैरान करने वाला है। आइए बारी-बारी यूपी के अलग अलग हिस्सों की स्थिति देखते हैं। सबसे पहले बात वाराणसी की।
सारनाथ थाने में 1 व्यक्ति के जिम्मे 100 सिपाहियों का खाना
वाराणसी जिले के सारनाथ थाने का स्टॉफ 170 लोगों का है। करीब 70 लोग बाहर रहते और खाते हैं। बाकी के लोग थाने की मेस में बना खाना ही खाते हैं। खाना बनाने का जिम्मा एक व्यक्ति पर है। उनकी सहायता के लिए एक सहायक रखा गया है, जिसे पुलिसवाले ही पैसा देते हैं। मेस में कभी चाय-कॉफी या नाश्ता नहीं बनता। स्पेशल के नाम पर महीने में एक बार पनीर की सब्जी-कचौड़ी बनती है। यहां थानाध्यक्ष धरमपाल सिंह हैं।
सिपाही बोले- खाने के नाम पर खानापूर्ति
वाराणसी के ही कोतवाली थाने का स्टॉफ करीब 150 लोगों का है। यहां दो मेस चलती है, ज्ञानवापी में प्राइवेट और थाने में सरकारी मेस। सरकारी मेस में करीब 80 लोग खाना खाते हैं। बनाने वाले एक व्यक्ति ही हैं। सिपाही बताते हैं कि सीजनल सब्जी के नाम पर एक ही सब्जी को रोज बना दिया जाता है। स्पेशल खाने के लिए त्योहारों का इंतजार करना होता है। यहां के थाना इंचार्ज भरत उपाध्याय हैं।
मऊ जिले में तो हालत और भी खराब मिली।
गैस नहीं लकड़ी के चूल्हे पर बनता है खाना
मऊ जिले में कोपागंज थाने के अंतर्गत बलिया रोड पर अदरी पुलिस चौकी है। यहां खाना बनाने के लिए कोई सरकारी नियुक्ति नहीं है। एक बाहरी व्यक्ति 6 हजार रुपए की सैलरी में खाना बनाता है। यहां कोई गैस सिलेंडर और चूल्हा नहीं है। सारा खाना लकड़ी के जरिए पकाया जाता है। कोपागंज थाने के एक सिपाही ने बताया, एक व्यक्ति का महीने का खाने का खर्च 2,300-2,400 रुपए आता है। सरकार की तरफ से 1,875 रुपए मिलते हैं।
फतेहपुर के बाकरगंज में थर्ड क्वालिटी दाल
फतेहपुर जिले के बाकरगंज थाने में करीब 95 लोग हैं। 60-65 लोगों का खाना थाने में बनता है। एक व्यक्ति इसके लिए नियुक्त है, बाकी के सिपाही भी मदद कर देते हैं। एक सिपाही बताते हैं, “दाल की क्वालिटी एकदम थर्ड क्लास होती है। ऐसा लगता है जैसे बस खानापूर्ति हो रही है। कभी कोई नाश्ता नहीं बनता। थाने में चाय भी बाहर से आती है।”
बाकरगंज थाने के सिपाही बताते हैं कि यहां रहने की सबसे ज्यादा दिक्कत है कि बैरक जर्जर हो गया है। बरसात होने पर पानी बैरक में आ जाता है। हमने कहा, वीडियो भेजिए। जवाब मिला, ऐसा करने पर कार्रवाई हो जाएगी।
बाहर ड्यूटी लगी तो खाने के 62 रुपए मिलेंगे
यूपी पुलिस के सिपाही विनोद मिश्रा (बदला हुआ नाम) ने बताया, अगर कोई सिपाही किसी कैदी को कोर्ट या कचेहरी लेकर जाता है तो उसे दिनभर खाने के लिए 62 रुपए मिलते हैं। इसी पैसे में उसे नाश्ता और खाने का इंतजाम करना पड़ता है। किसी सिपाही की ड्यूटी अगर रैली या फिर दंगे वाले स्थान पर लगा दी गई तब भी उसे इतने ही पैसे मिलते हैं, खाने का इंतजाम उसे ही करना पड़ता है।
यहां तक हमने खाने की बात की। अब खाना बनने के लिए तय सिस्टम की बात करते हैं।
थाने के ही सिपाही बनते हैं मेस मैनेजर
पुलिसकर्मियों के खाने के दो सिस्टम हैं। पुलिस लाइन में सरकारी मेस होती है। जिसकी देखभाल रिजर्व पुलिस इंस्पेक्टर करता है। हर शुक्रवार जिले के एसपी को खाने की क्वालिटी और साफ-सफाई को लेकर दौरा करना होता है लेकिन ऐसा हो नहीं पाता। वहीं थाने में कोई सिपाही ही मेस मैनेजर होता है। वह महीने भर खाना बनवाता है फिर महीने में आए खर्च को जोड़ता है। जिनके हिस्से में जितना आया वह उतना दे देते हैं।
अब हम पुलिसकर्मियों को मिलने वाली और सुविधाओं को जानते हैं।
200 रुपए साइकिल अलाउंस
अन्य भत्तों की जानकारी के लिए हम एडीजी कार्यालय पहुंचे। वहां से हमें जानकारी मिली कि हेड कांस्टेबल और कांस्टेबल को महीने का 200 रुपए साइकिल भत्ता मिलता है। हैरानी की बात यह कि कहीं भी कांस्टेबल साइकिल से घटना स्थल पर नहीं जाते। मतलब यह कि वह अपने पैसे से पेट्रोल डलवाकर क्षेत्र में जा रहे हैं। दूसरी तरफ दरोगा को बाइक के लिए 700 रुपए भत्ता मिलता है। जबकि इससे कई गुना अधिक का पेट्रोल खर्च होता है।
वर्दी के लिए साल में 3 हजार रुपए
यूपी पुलिस के सिपाहियों को वर्दी के लिए साल में एकबार 3 हजार रुपए मिलते हैं। बाराबंकी में तैनात सिपाही राकेश तिवारी बताते हैं, “एक ही वर्दी बनवाने में 3 हजार रुपए खर्च हो जाते हैं। साल में 4 वर्दी की जरूरत होती है। सबकुछ अपने से ही मैनेज करना पड़ता है।” वहीं दूसरी तरफ एसपी को वर्दी के लिए हर पांच साल में एक बार 20 हजार रुपए मिलता है।
थाने से बाहर रहने पर 2400 रुपए होम अलाउंस
अगर किसी थाने में सभी सिपाहियों के रहने की व्यवस्था नहीं है या फिर वह सिपाही बाहर रहना चाहता है तब उसे इसके लिए 2400 रुपए होम अलाउंस मिलता है। तीन साल पहले यह ए, बी-1, बी-2 के जरिए तय होती थी। यदि किसी पुलिसकर्मी का घर उसी नगर के शहरी क्षेत्र में है तो उसे 913 रुपए मिलते थे।
सुविधाओं के बाद ड्यूटी की बात करते हैं
पुलिसवालों के कपड़े उतारकर देख लीजिए, बनियान फटी मिलेगी
दैनिक भास्कर ने यूपी पुलिस के एक एडीजी रैंक के अधिकारी से बात की। अधिकारी ने बताया, “पुलिसवाले हर दिन कम से कम 12 घंटे ड्यूटी करते हैं। उनके लिए हफ्ते में कोई छुट्टी नहीं होती। वह लोगों के सामने आदर्श बनने की कोशिश करता है। कभी इनकी यूनिफॉर्म उतरवाकर देखिए 10 में से 4 की बनियान फटी होगी, मोजे फटे हुए होंगे।”
आखिर में पुलिस सुधार के लिए अब तक बनी कमेटियों के बारे में जान लीजिए।