आज 5 सितंबर यानी शिक्षक दिवस है। झांसी से एकमात्र सहायक अध्यापक माधुरी पौराणिक को राज्य अध्यापक पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। ये पुरस्कार मिलने के 3 कारण हैं। पहला उन्होंने ज्वाइंनिंग के बाद अपने प्राइमरी स्कूल की सूरत बदल दी।
दूसरा बच्चों में पढ़ने की ललक जगाकर स्कूल में स्टूडेंट की संख्या बढ़ाई और तीसरा सबसे खास उनका पढ़ाने का स्पेशल तरीका। जिसे देखकर बच्चे में पढ़ने की ललक जगी। स्टूडेंट्स को अलग अंदाज में पढ़ाने वाली टीचर माधुरी की जिंदगी में दुख-दर्द साये की तरह मंडराते रहे। आइये हम आपको उनकी पूरी कहानी बताते हैं…
पति की नौकरी के बाद अनुकंपा नौकरी मिली
ग्वालियर की रहने वाली माधुरी की शादी प्रयागराज के बिलास से हुई थी। बिलास प्रयागराज में सरकारी टीचर थे। शादी के बाद उनके एक बेटा विशाल हुआ। सबकुछ ठीक चल रहा था। लेकिन 2009 में एक दिन पति की बीमारी से मौत हो गई। तब बेटा 7 साल का था। पति की मौत ने माधुरी को झकझोर दिया।
वो गुमसुम रहने लगी और खाना पीना छोड़ दिया। अकेलापन उसे खाए जा रहा था। वह बेटे को लेकर मायके आ गई। माधुरी को परिवार और उसकी जुड़वा बहन कामिनी ने समझाया। धीरे धीरे वे सदमे से बाहर निकली। बाद में उनको पति की नौकरी की जगह सरकारी टीचर की नौकरी मिल गई। बाद में उनका प्रयागराज से झांसी ट्रांसफर हो गया।
सबसे पहले स्कूल की सूरत बदली
माधुरी बताती हैं कि “2013 में मेरी पोस्टिंग बड़ागांव ब्लॉक के कम्पोजिट विद्यालय हस्तिनापुर के प्राथमिक सेक्शन में सहायक अध्यापक के तौर पर हुई। जब स्कूल पहुंची तो हालत ठीक नहीं थी। मैं सबसे पहले स्कूल को हरा-भरा करना चाहती थी। मुझे सिर्फ फूलों के पौधे लगाने की इजाजत मिली। मैंने खुद मिट्टी खोदी, क्यारी बनाई और फूल लगाए। बाद में सरकार ने पौधे लगाने के आदेश दिए। अब पूरा स्कूल हरा-भरा है और चारों ओर पेड़ ही पेड़ लगे हैं।”
एडमिशन के बाद स्कूल नहीं आते थे बच्चे
माधुरी बताती हैं कि “2013 में लगभग 135 एडमिशन थे। जिसमें से लगभग आधे बच्चे स्कूल नहीं आते थे। तब घर-घर जाकर बच्चों को स्कूल से जोड़ने का सोचा। जब घर जाते थे तो बच्चे घर के बाहर खेल रहे होते थे या काम करते मिलते थे। स्कूल भेजने की बोलते थे तो माता-पिता कहते थे कि बेटा दिनभर में 10 रुपए की मूंगफली तोड़ लेता है। या अन्य काम कर लेता है। गांव वाले भी डांटते थे कि काम करने दो, पढ़कर डीएम थोड़ी बन जाएगा। लेकिन मैंने हार नहीं मानी। मेरी मेहनत रंग लाई और आज लगभग 250 बच्चे स्कूल में पढ़ने आते हैं।”
बच्चों को व्यवहार के हिसाब से पढ़ाती हूं
माधुरी बताती है कि “मेरा पढ़ाने का तरीका बिल्कुल अलग है। पहले मैं बच्चे के व्यवहार को देखती हूं कि वो किस तरीके से पढ़ता है। मसलन प्यार से, डांटने से, खेलकूद से या कोई अन्य तरीका। पढ़ाई को आसान बनाने के लिए मैंने खुद कहानियां लिखी। कॉमिक्स लिखकर बच्चों को पढ़ाया। शून्य नवाचार यानी बगैर खर्च के बनाए गए मॉडल के माध्यम से बच्चों को टॉपिक्स समझाए। इसके तहत बच्चों से ऐतिहासिक भवन के मॉडल, चिड़ियाघर तथा पाठ्यक्रम में दिए गए पाठ को कॉमिक्स बनाकर खिलौने आदि बनाकर पढ़़ाई कराई। इससे बच्चों को पढ़ने में सरलता मिली और वे मन लगाकर पढ़ने लगे।”
यह सम्मान पहले मिल चुके हैं
माधुरी को 2019 में राज्य स्तरीय कॉमिक्स सम्मान, शैक्षणिक सत्र 2020 व 2021 में राज्य स्तरीय पाठ योजना सम्मान दिया गया। मध्य प्रदेश की उड़ान संस्था द्वारा 2018 में कविता लेखन के लिए मेजर ध्यानचंद खेल कवियत्री सम्मान दिया। 2021 में राज्य स्तरीय गढ़ो कहानी तथा द यूनाइटेड स्टेटस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट की रूम टू रीड स्टोरी कार्ड के लिए टॉप-20 में चयन हुआ था। माधुरी को आज सबसे बड़ा पुरस्कार मिलने जा रहा है।