करिअर फंडालीडर्स की साइंटिफिक सोच का नतीजा है विकास:एटॉमिक एनर्जी कमीशन से कर्त्तव्य पथ के नामकरण में भी साइंस

समय की राह पर विज्ञान तकनीक का गतिमान होना, अभी शेष है,
वैज्ञानिक सोच का श्वासों की तरह आना-जाना, अभी शेष है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण का युवा होना अभी शेष है,
आम जन में हमारी विज्ञान नीतियों का रमण और अनुकरण,अभी शेष है।

– सूर्यकांत शर्मा

जो सवाल पूछे, बिन पूछे कुछ न माने, अंधविश्वासों से दूर रहे और लॉजिक तथा तर्कों से अपने प्रोफेशन और लाइफ को संवारे, वो है एक ‘साइंटिफिक सोच’ वाला प्रोफेशनल।

करिअर फंडा में स्वागत!

साइंटिफिक सोच

क्या होती है आखिर ये साइंटिफिक सोच? ये तो जीवन जीने का एक कॉन्फिडेंट तरीका है, जो वैज्ञानिक पद्धति का इस्तेमाल करता है और जिसमें होता है पूछताछ (इन्वेस्टिगेशन), फिजिकल रियलिटी को समझना (ऑब्ज़र्वेशन), परीक्षण (टेस्टिंग), परिकल्पना (इमेजिनेशन), विश्लेषण (एनालिसिस), और संचार (कम्युनिकेशन)।

वैज्ञानिक सोच रखने वाला प्रोफेशनल (किसी भी फील्ड का) (1) कभी आसानी से राह नहीं भटकता, (2) मूर्ख नहीं बनाया जा सकता, और (3) अपनी बुद्धि का उपयोग नहीं छोड़ता।

भारत के तमाम बड़े कॉरपोरेट अपनी डिसिजन-मेकिंग बेहद तर्कशील, वैज्ञानिक और एविडेंस-बेस्ड करते हैं।

नेहरू का जबरदस्त साइंटिफिक विजन

‘वैज्ञानिक स्वभाव’ एक दृष्टिकोण हैं जिसमें तर्क (लॉजिक) का उपयोग शामिल होता है। चर्चा (डिस्कशन), तर्क (लॉजिक) और विश्लेषण (एनालिसिस) वैज्ञानिक स्वभाव के महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। निष्पक्षता, समानता और लोकतंत्र के तत्व इसमें निर्मित हैं। भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू 1946 में इस वाक्यांश का उपयोग करने वाले पहले व्यक्ति थे।

चमत्कारी सोच दिखाते हुए नेहरू ने 1948 में इंडियन एटॉमिक एनर्जी कमीशन बनवाया, और 1954 में डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी आया। इस दूरंदेशी वैज्ञानिक सोच का परिणाम है भारत का परमाणु बम कार्यक्रम, और पूरा इसरो। कहां होते हम इनके बिना?

संविधान में विज्ञान

प्रधानमंत्री मोदी ने ‘कर्त्तव्य पथ’ नामकरण कर हम भारतीयों को बड़ा सन्देश दिया है। क्या सन्देश है? कि हमें हमारे मूल कर्तव्यों का पालन करना होगा।

तो मूल कर्तव्य (फंडामेंटल ड्यूटी) क्या हैं?

1976 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने 42वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान में फंडामेंटल ड्यूटीज़ (अर्थात मौलिक कर्तव्यों) को आर्टिकल 51A द्वारा जोड़ा। इसकी धारा 51-ए (एच) के मुताबिक़ ‘वैज्ञानिक प्रवृत्ति, मानवता और सवाल व सुधार की भावना का विकास करना’ हर नागरिक का दायित्व है।

विज्ञान और विकास

उसके बाद के वर्षों में अनेकों वैज्ञानिक विकास हुए जैसे राजीव गांधी सरकार के दौरान कम्पूटराइजेशन, टेलिकॉम रिवॉल्यूशन, नवोदय विद्यालयों का गठन। राव सरकार के दौरान अर्थव्यवस्था का राव-मनमोहन मॉडल इत्यादि सभी इसी सोच की देन था।

वैज्ञानिक सोच के साथ कॉमन सेंस आवश्यक

कहते हैं सिर्फ विज्ञान की समझ आपको चतुर या वैज्ञानिक सोच नहीं देती, बल्कि कॉमन सेंस साथ में चाहिए। एक बढ़िया कहानी सुनिए!

1) एक शहर में चार दोस्त रहते थे। तीन बड़े वैज्ञानिक किन्तु बुद्धिरहित, तथा चौथा वैज्ञानिक नहीं, किन्तु बुद्धिमान। चारों ने विदेश जाकर पैसा कमाने की सोची और निकल पड़े।

2) थोड़ी दूर जाकर उन्हें जंगल में एक शेर का मृत-शरीर मिला। तीनों घमंडी वैज्ञानिकों युवकों ने कहा, ‘आओ, हम अपनी विज्ञान की शिक्षा की परीक्षा करें। विज्ञान के प्रभाव से हम इस मृत-शरीर में नया जीवन डाल सकते हैं।’ यह कह कर तीनों उसकी हड्डियां बटोरने और बिखरे हुए अंगों को मिलाने में लग गए।

3) इतने में विज्ञान-शिक्षा से रहित, किन्तु बुद्धिमान् मित्र ने उन्हें सावधान करते हुए कहा – ‘जरा ठहरो। तुम लोग अपनी विद्या के प्रभाव से शेर को जीवित कर रहे हो। वह जीवित होते ही तुम्हें मारकर खा जाएगा।’

4) वैज्ञानिक मित्रों ने उसकी बात को अनसुना कर दिया । तब वह बुद्धिमान् बोला, ‘यदि तुम्हें अपनी विद्या का चमत्कार दिखाना ही है तो दिखाओ। लेकिन ठहर जाओ, मैं पेड़ पर चढ़ जाऊं।’ यह कहकर वह पेड़ पर चढ़ गया। इतने में तीनों वैज्ञानिकों ने शेर को जीवित कर दिया। जीवित होते ही शेर ने तीनों पर हमला कर दिया। तीनों मारे गए।

आप भी डेवलप करें वैज्ञानिक सोच

वैज्ञानिक सोच किसी फॉर्मल शिक्षा की गुलाम नहीं है। इलेक्ट्रिसिटी के महत्वपूर्ण सिद्धांत देने वाले माइकल फैराडे को विज्ञान की फॉर्मल शिक्षा नहीं मिली थी, फिर भी वे महान वैज्ञानिकों में गिने जाते हैं। वैज्ञानिक सोच के लिए जो जरूरी बात है, वह यह है कि, किसी भी बात पर अंधविश्वास ना करें।

अंधविश्वास इंसान की सबसे बुरी आदतों जैसे नशा करना, जुआ खेलना आदि से भी बुरा है। किसी वस्तु पर अंधविश्वास ना करके उसे अपने लॉजिक की कसौटी पर कसना ही वैज्ञानिक सोच है।

तो आज का करिअर फंडा यही है कि अपने दिमाग पर भरोसा रखें, खूब सोचें, सवाल करें, तथ्यों से तर्कों को जांचें, और तभी कोई निर्णय लें।

कर के दिखाएंगे!