महिलाओं में हार्ट अटैक के मामले बढ़ रहे हैं, लेकिन बड़ी समस्या समय पर इसका पता न चल पाना है। पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में हार्ट अटैक के 50% मामले शुरू मेंं डॉक्टरों की पकड़ में ही नहीं आते। हार्ट अटैक से होने वाली 70% मौतें ऐसी हैं, जिनमें शुरू में हार्ट अटैक का पता नहीं चल सका।
लंदन के इम्पीरियल कॉलेज में कार्डिएक फार्मालॉजी के प्रोफेसर स्यान हार्डिंग कहते हैं- साल 2002 से 2013 तक इंग्लैंड और वेल्स में ही 8,200 महिलाओं की मौत सिर्फ इसलिए हो गई, क्योंकि शुरुआती इलाज के दौरान हार्ट अटैक का पता नहीं चल पाया। उन्होंने लंबे समय तक अपनी टीम के साथ महिलाओं और पुरुषों में हार्ट अटैक के मामलों पर शोध किया। उन्होंने फ्लोरिडा के अस्पतालों में हार्ट अटैक के आए 13 लाख मामलों की स्टडी की।
महिला डॉक्टर हार्ट अटैक का पता जल्दी लगाती हैं
रिसर्च में बताया गया कि महिलाओं में हार्ट अटैक का पता महिला डॉक्टरों ने पुरुष डॉक्टरों के मुकाबले तीन गुना पहले लगा लिया। ऐसा इसिलए क्योंकि पुरुष डॉक्टरों के मन में यह बात होती है कि महिलाओं में हार्ट अटैक की आशंका कम है। युवा अवस्था में तो और भी कम। पुरुष डॉक्टर महिलाओं में होने वाले दर्द की दूसरी वजहें पहले ढूंढ़ते हैं, जबकि महिला डॉक्टर के ध्यान में पहले हार्ट अटैक की आशंका आती है।
ज्यादातर पुरुष डॉक्टर पेन किलर यानी दर्द निवारक दवा देकर घर भेज देते हैं, जबकि महिला डॉक्टर हॉर्ट अटैक की आशंका होते ही गाइडलांइस और तय स्टैंडर्ड फॉलो करती हैं। पुरुष डॉक्टर महिलाओं में होने वाले मानसिक तनाव को हल्के में लेते हैं, जबकि महिला डॉक्टर उसे गंभीरता से लेती हैं। हालांकि लंबी प्रैक्टिस के बाद पुरुष डॉक्टर भी महिलाओं में हार्ट अटैक को शुरुआत में ही पहचानने लगे। लेकिन महिला डॉक्टरों ने ज्यादा महिला मरीजों की जान बचाई।
औरतों में हार्ट अटैक की दर पुरुषों के मुकाबले आधी
पुरुषों में हार्ट अटैक से 24% तो महिलाओं में 21% मौतें हो रही हैं। औरतों में हार्ट अटैक की दर पुरुषों के मुकाबले लगभग आधी है। प्रोफेसर हार्डिंग कहते हैं कि डॉक्टरों की टीम में महिला डॉक्टरों का अनुपात बढ़ाना चाहिए। अमेरिका की फिजिशियन एलिशन मैकग्रेगर कहती हैं- अमेरिका में सिर्फ 4.5% ही महिला कॉर्डियोलॉजिस्ट हैं।