राजू श्रीवास्तव बेहद साधारण परिवार से थे। उनके परिवार के जीवन में एक दौर ऐसा भी आया जब 1990 में पिता बलई काका को अपना पैतृक मकान बेचना पड़ गया। ये मकान किदवईनगर नयापुरवा में था। राजू यहीं पैदा हुए थे। राजू को अपने पैतृक मकान से बड़ा प्यार था। राजू ने ही इस घर का नाम काका कोठी रखा था।
पिता को दोबारा उसी घर में लेकर गए
राजू के दोस्त मुकेश श्रीवास्तव ने बताया कि वर्ष 1990 में राजू के पिता रमेश चंद्र श्रीवास्तव (बलई काका) ने किसी मजबूरी में इस मकान को सुरेश सिंह चौहान को साढ़े तीन लाख रुपये में बेच दिया था। मकान बिकने के बाद राजू बेहद दुखी थे। उन्होंने परिवार को दोबारा पैतृक घर में लाने की कसम खाई थी।
किराये के मकान में रहा परिवार
मकान बिकने के बाद पूरा परिवार कुछ दिन बारादेवी तो कुछ दिन यशोदा नगर में किराये के मकान में रहा। उस समय राजू श्रीवास्तव मुंबई में ही रहते थे। राजू ने मकान को वापस खरीदने के लिए मुंबई में जीतोड़ मेहनत की। इस दौरान करीब 10 साल तक सुरेश से मकान को वापस खरीदने की पेशकश करते रहे। लेकिन सुरेश बेचने को तैयार नहीं था।
उनके पिता और राजू पड़ोसी शिवेंद्र पांडेय के पास भी गए और कहा कि सुरेश सिंह से बात करें। कई सालों तक मकान मालिक को मनाने का दौर चला। सन 2000 में राजू ने इस मकान को 8 गुना जायदा कीमत देकर 24 लाख रुपये में खरीद लिया। मकान खरीदने के बाद राजू के पिता बलई काका फिर से परिवार के साथ यहां आ गए।
राजू के छोटे भाई काजू की पत्नी श्रेया ने बताया कि राजू भइआ को इस घर से बेहद लगाव था। वो कहते थे यहां रहकर बड़ा सुकून मिलता है। कोविड काल में लॉकडाउन के दौरान इसी घर में रहे। यहां रहकर पूरे मोहल्ले के लोगों, पुराने दोस्तों और बच्चों से सबसे मिलते थे।