हर साल 21 सितंबर को ‘विश्व अल्जाइमर दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। आसान शब्दों में समझें तो यह ‘भूलने की बीमारी’ है, जो मस्तिष्क की तंत्रिका को प्रभावित करती है। इसे डिमेंशिया का भी रूप माना जाता है। आमतौर पर उम्रदराज (65 की उम्र के बाद) लोग इस बीमारी से पीड़ित पाए जाते हैं, लेकिन पिछले कुछ समय में कम उम्र के लोग भी अल्जाइमर का शिकार हो रहे हैं।
‘डिमेंशिया को जानें, अल्जाइमर को जानें’
इस वर्ष की थीम ‘डिमेंशिया को जानें, अल्जाइमर को जानें’ रखी गई हैं। एम्स जोधपुर के न्यूरोलॉजी विभाग की अध्यक्ष डॉ. समिता पांडा ने बताया कि जल्द ही चीन की तरह भारत में भी वृद्धावस्था जनसंख्या तेजी से बढ़ेगी। उस समय डिमेंशिया व अल्जाइमर जैसे रोग बुजुर्गों के लिए खतरा हो सकते हैं और इसका असर स्वास्थ्य बजट पर भी पड़ेगा।
धीरे-धीरे अपने रोजमर्रा के काम भूल जाना इस बीमारी का मुख्य लक्षण है। पीड़ित को पुरानी बातें याद रहती हैं, लेकिन नई बातें याद नहीं रख पाता। उम्र बढ़ने के साथ रोगी याददाश्त तक खो देता है। एम्स में प्रत्येक माह डिमेंशिया के 10 मरीज आ रहे हैं।
उन्होंने बताया कि इससे पीड़ित लोगों की देखभाल करना चुनौतीपूर्ण होता है। रोगी कई बार वह बहुत उत्तेजित और कई बार बहुत शांत हो जाता है। उसके आसपास स्टीकर लगाकर उसे याद दिलाएं कि कौनसी चीज कहां है। उसके कमरे हमेशा उजाला रखें, रात में भी लाइट जलाकर सोएं।
रिटायरमेंट के बाद भी फिजिकली-सोशली एक्टिव रहना जरूरी
डॉ. पांडा ने बताया कि हर व्यक्ति पढ़ाई के बाद कोई नौकरी या बिजनेस करता है। वृद्धावस्था तक वह एक ही काम करता रहता है। रिटायर होने के बाद वह अपने आपको अकेला मानता है और कोई काम नहीं करने से उसके मस्तिष्क का कुछ भाग काम करना बंद कर देता है।
ऐसे में इससे बचाव के लिए 60 की उम्र के बाद भी फिजिकली व सोशली एक्टिव रहें। ऐसे काम करें जो मस्तिष्क के लिए चुनौती हो। इसके अलावा पेंटिंग करें, म्यूजिक सुनें, सुडूको जैसे गेम खेलें या नई हॉबी डवलप करें। इससे दिमाग की नसें सिकुड़ेगी नहीं और गतिशील रहेगी।