51 शक्तिपीठों में से एक मां विशालाक्षी मंदिर की कहानी:नवरात्रि में दर्शन का है विशेष महत्व; काशी विश्वनाथ यहां करते हैं रात्रि विश्राम

शारदीय नवरात्रि का आगाज हो गया है। नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप माता ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। इस मौके पर आज हम आपको बताएंगे 51 शक्तिपीठों में से एक मां भगवती विशालाक्षी शक्ति पीठ के बारे में…। काशी में शिव और शक्ति दोनों ही विराजते हैं। एक ओर यहां द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक बाबा विश्वनाथ का धाम है। दूसरी ओर बाबा विश्वनाथ के धाम से चंद कदम की दूरी पर गंगा किनारे मीर घाट में माता विशालाक्षी का मंदिर है।

पौराणिक मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ रोजाना रात्रि विश्राम मां विशालाक्षी मंदिर में करते हैं। दक्षिण भारतीय शैली में स्थापित मां विशालाक्षी का मंदिर 5 हजार साल पुराना बताया जाता है। मौजूदा समय में जो मंदिर है उसका जीर्णोद्धार 7 फरवरी 1908 को किया गया था। इस मंदिर में शारदीय और वासंतिक नवरात्रि की पंचमी तिथि को श्रद्धालु विशेष रूप से माता विशालाक्षी का दर्शन-पूजन कर उनका आशीर्वाद लेते हैं।

आइए, आपको पढ़ाते और दिखाते हैं विशालाक्षी शक्तिपीठ…

विशालाक्षी शक्तिपीठ की धार्मिक मान्यता

पुराणों के अनुसार जहां-जहां देवी सती के अंग के टुकड़े,वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आए। देवी भागवत में कहा गया है कि ”वाराणस्यां विशालाक्षी गौरीमुख निवासिनी… यानी वाराणसी में विशालाक्षी देवी गोरीमुख में निवास करती हैं।

अविमुक्ते विशालाक्षी महाभागा महालये… यानी जहां सती का मुख गिरा था।” देवी के सिद्ध स्थानों में काशी में मात्र विशालाक्षी का वर्णन मिलता है और एकमात्र विशालाक्षी पीठ का उल्लेख काशी में किया गया है।

 

“विशालाक्ष्या महासौधे मम विश्रामभूमिका… तत्र संसृतिखिन्नानां विश्रामं श्राणयाम्यहम्… यानी विशालाक्षी शक्तिपीठ में विशालाक्षेश्वर महादेव का शिवलिंग भी है। यहां बाबा विश्वनाथ विश्राम करते हैं। साथ ही सांसारिक कष्टों से दुखी मनुष्यों को कष्ट हरते हैं।” पुराणों के अनुसार, विशालाक्षी माता को गंगा स्नान के बाद धूप, दीप, सुगंधित हार व मोतियों के आभूषण, नए वस्त्र आदि चढ़ाएं।

देवी विशालाक्षी की पूजा से सौंदर्य और धन की प्राप्ति होती है। यहां दान, जप और यज्ञ करने पर मुक्ति प्राप्त होती है। मान्यता है कि यहां 41 मंगलवार कुमकुम का प्रसाद चढ़ाने वाले की झोली माता विशालाक्षी भर देती हैं। विशाल नेत्रों वाली मां विशालाक्षी कांची की मां (कृपा दृष्टा) कामाक्षी और मदुरै की (मत्स्य नेत्री) मीनाक्षी के समान है।

स्कंद पुराण के अनुसार ऋषि व्यास को काशी में कोई भोजन नहीं दे रहा था। उस समय देवी विशालाक्षी एक गृहिणी के रूप में प्रकट हुईं और उन्हें भोजन दी थीं।

रोजाना आते हैं 8-9 हजार श्रद्धालु
विशालाक्षी शक्तिपीठ के महंत पं. राजनाथ तिवारी ने बताया कि विशालाक्षी शब्द का अर्थ बड़ी आंखें हैं। मां विशालाक्षी की आंखें बड़ी थीं। उनकी आंखों के आधार पर ही उनका नामकरण हुआ। माता के दरबार में रोजाना 8-9 हजार श्रद्धालु आते हैं। बीते दो वर्षों की शारदीय नवरात्रि में कोरोना महामारी का साया था। इस नवरात्रि में यहां रोजाना 10 से 15 हजार श्रद्धालुओं के आने की संभावना है।

नवरात्रि में भक्तों को रोजाना रात में माता की आरती के बाद प्रसाद वितरित कराया जाएगा। पूरा प्रयास रहेगा कि भक्तों को किसी तरह की असुविधा न होने पाए। स्थानीय लोगों ने कहा कि माता विशालाक्षी का मंदिर देश के सिद्ध शक्तिपीठों में से एक है। मंदिर के ट्रस्ट को इसकी देखरेख पर ध्यान देना चाहिए। ट्रस्ट ध्यान दे तो मंदिर की हालत और बेहतर हो जाएगी।

विशालाक्षी कॉरिडोर बनवाए सरकार
महंत पं. राजनाथ तिवारी ने कहा कि बाबा विश्वनाथ का दर्शन-पूजन करने के बाद श्रद्धालु माता विशालाक्षी के दरबार में आते हैं। विश्वनाथ कॉरिडोर और विंध्य धाम कॉरिडोर की तरह विशालाक्षी कॉरिडोर भी सरकार को बनवाना चाहिए। तंग गलियों से आने वाले बुजुर्ग, अशक्त और महिला श्रद्धालुओं को आने-जाने में तमाम तरीके की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

केंद्र और प्रदेश की मौजूदा सरकार हिंदू धर्म स्थलों पर गंभीरता से ध्यान दे रही है। उसी तरह से भक्तों की सहूलियत को देखते हुए विशालाक्षी शक्तिपीठ में भी सुविधाएं विकसित करने की जरूरत हैं।