यूपी में मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी का 2 दिवसीय अधिवेशन बुधवार से शुरू हो रहा है। ये अधिवेशन सुबह 11 बजे से लखनऊ के रमाबाई मैदान में शुरु होगा। इस अधिवेशन के पहले दिन प्रांतीय अधिवेशन, जबकि दूसरे दिन राष्ट्रीय अधिवेशन होगा। इसमें करीब 25 हजार सपा के प्रतिनिधियों के हिस्सा लेने की उम्मीद है। राष्ट्रीय अधिवेशन के दिन पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का भी चुनाव होगा।
प्रदेश अध्यक्ष के लिए उत्तम और स्वामी प्रसाद की चर्चा
सपा का बुधवार से लखनऊ में शुरू होने वाला अधिवेशन आगामी चुनावों के ध्यान में रखते हुए काफी अहम माना जा रहा है। राज्य में जल्द ही स्थानीय निकाय चुनाव होने वाले हैं। इसके अलावा 2024 के लोकसभा चुनाव की रणनीति के लिहाज से ये अधिवेशन महत्वपूर्ण होने वाला है।
इस अधिवेशन में अखिलेश को फिर एक बार पार्टी अध्यक्ष चुना जाएगा। ये लगातार तीसरी बार होगा, जब अखिलेश यादव पार्टी प्रमुख बनेंगे। जबकि प्रदेश अध्यक्ष के रूप में नरेश उत्तम पटेल के साथ ही स्वामी प्रसाद मौर्य का भी नाम चर्चा में है।
पार्टी 3 दशक पुरानी, कई उतार-चढ़ाव हुए
समाजवादी पार्टी 3 दशक पुरानी हो गई है। पार्टी आज ‘नई पीढ़ी और नये दौर’ में है। पिता मुलायम की बनाई पार्टी अब बेटे अखिलेश के कमांड में है। 2 पीढ़ियों के बीच सपा ने राजनीति के कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। 5 नवंबर 1992 को मुलायम सिंह यादव ने लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में पार्टी बनाई थी।
राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद अक्टूबर 1992 में गठित हुआ। अखिलेश से पहले मुलायम सिंह यादव ही पार्टी के अध्यक्ष रहे। गुरुवार को होने वाले राष्ट्रीय अधिवेशन में अखिलेश यादव को लगातार तीसरी बार पार्टी अध्यक्ष चुने जाना तकरीबन तय है।
मुलायम ने अयोध्या मुद्दे के बीच बनाई थी सरकार
सपा के गठन के समय यूपी में भाजपा सरकार थी। कल्याण सिंह उसके मुखिया थे। इसे संयोग ही कहेंगे कि एक महीने बाद 6 दिसंबर 1992 को राज्य में भाजपा सरकार बर्खास्त हो गई। एक साल तक राष्ट्रपति शासन रहा। ऐसे समय मुलायम ने बसपा संस्थापक कांशीराम से समझौता कर पिछड़ों के साथ दलितों का गठजोड़ बनाया। चुनाव के नतीजे अनुकूल रहे और यूपी में मुलायम ने 4 दिसंबर 1993 को सपा–बसपा गठबंधन की सरकार बना ली। ये गठबंधन 2 जून 1995 तक चला। मगर मुलायम थमे नहीं और एक साल में ही केंद्र सरकार में भागीदारी हासिल करके रक्षामंत्री के पद तक पहुंचे थे।
अखिलेश को एक जनवरी 2017 को सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव को पद से हटाकर अध्यक्ष बनाया गया था। हालांकि, इस बार भी मुलायम मौजूद नहीं थे लेकिन अखिलेश ने अपने भाषण में जिक्र किया कि नेताजी (मुलायम) का आशीर्वाद हमेशा हमारे साथ है।
सपा के पास चुनौतियां भी कम नहीं
विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कई ऐसे नेता सपा में शामिल हुए हैं, जो मुलायम सिंह के कार्यकाल में उनके खिलाफ रहे हैं। सामाजिक समीकरण के हिसाब से वे फिट हैं। मगर पार्टी के मूल कैडर के साथ दूसरे दल के कैडर का समायोजन चुनौतीपूर्ण हैं। कमेटियों के गठन में भी इसका ध्यान रखा जाएगा।
जनवरी 2017 में राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे अखिलेश
एक जनवरी 2017 को लखनऊ में अखिलेश यादव राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए। फिर 5 अक्तूबर को आगरा के राष्ट्रीय सम्मेलन में विधिवत इस पर मुहर लग गई। पहले सम्मेलन दो वर्ष बाद होता था फिर 2017 से इसे पांच साल बाद कर दिया गया।
सपा को दलित चेहरे की भी तलाश है
पार्टी की स्थापना से प्रदेश अध्यक्ष रामशरण दास रहे। 2006 में शिवपाल सिंह यादव बनाए गए। इस पद पर 2010 से अक्तूबर 2016 तक अखिलेश यादव रहे। इसके बाद से नरेश उत्तम हैं। सूत्रों का कहना है कि सम्मलेन में अखिलेश यादव का ही राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना जाना तय है, लेकिन कार्यकारिणी में नई हवा है, नई सपा है का असर दिखेगा। इसमें ऊर्जावान चेहरों को तवज्जो मिलेगी।
नरेश उत्तम को प्रदेश अध्यक्ष पद पर दोबारा मौका मिल सकता है। उनके राष्ट्रीय कमेटी में जाने पर पार्टी पिछड़े वर्ग के अन्य नेताओं पर दांव लगा सकती है। हालांकि अंदरखाने दलित चेहरे की तलाश है। दूसरे दल से आए नेताओं का नाम भी हैं, पर हाईकमान समाजवादी संघर्ष से निकले चेहरे पर दांव लगाने पर विचार कर रहा है।
पार्टी बनाने वाले कई दिग्गज अब नहीं रहे
मुलायम ने नई पार्टी पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर से उनकी पार्टी समाजवादी जनता पार्टी से अलग होकर बनाई थी। तब उनके साथ जनेश्वर मिश्र‚ कपिल देव सिंह (बिहार)‚ किरनमय नंदा (पश्चिम बंगाल)‚ बेनी प्रसाद वर्मा‚ राजेन्द्र चौधरी‚ रामशरण दास‚ प्रभु नारायण सिंह के साथ ही डॉ. राम मनोहर लोहिया को मनाने वाले कई नेता एक मंच पर जुटे। इनमें से आज कई दिग्गज नेता दुनिया में नहीं हैं।
‘उम्मीद की साइकिल’ का नारा दिया तो अपने बूते बना ली सरकार
उसके बाद से सपा का प्रभाव ऐसा बढ़ा कि मुलायम के नेतृत्व में 2003 में फिर सरकार बनी। इसी दौर में मुलायम ने साल 2000 में फौरन ही विवाह बंधन में बंधे ‘इंजीनियर’ बेटे अखिलेश को कन्नौज लोकसभा सीट से राजनीति में प्रवेश कराया। राजनीति करवट बदल रही थी। मुलायम से सत्ता छिनी और राज्य में 2007 में मायावती की सरकार बन गई।
साल 2012 के चुनाव आते सपा ने ‘उम्मीद की साइकिल’ का नारा दिया और बाजी पलट दी। सपा को पूर्ण बहुमत मिला। मुलायम ने सत्ता की कमान अखिलेश के हाथ दे दी। अखिलेश ने राजनीति में पिता के कदम से कदम मिलाकर चलने वाले नेताओं के ‘अनुभव’ से सरकार चलाई। मगर पांच साल बाद अखिलेश सत्ता नहीं बचा सके। भविष्य की राजनीति को अखिलेश ने बसपा प्रमुख मायावती से हाथ मिलाया। मगर सफल नहीं हुए।
अब अखिलेश खुद फैसले ले रहे
अखिलेश नये दौर में नये तरीके से ‘नई हवा है नई सपा है, बड़ों का हाथ युवाओं का साथ’ नारे संग राजनीति में खुद फैसले ले रहे हैं। एक जनवरी 2017 को विशेष अधिवेशन में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने अखिलेश उसी साल 5 अक्टूबर को आगरा में हुए राष्ट्रीय अधिवेशन में अध्यक्ष चुने गये। अब एक बार फिर 29 सितंबर को लखनऊ में राष्ट्रीय अधिवेशन हो रहा है और अखिलेश को फिर अध्यक्ष चुना जाना तय है। मुलायम सिंह यादव और शिवपाल सिंह यादव को छोड़कर साल 2017 में हुए अधिवेशन के राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में सपा के राष्ट्रीय महासचिव आजम खान की उपस्थिति ने भी सवाल खड़े किए लेकिन गुरुवार को अधिवेशन में उनकी मौजूदगी से सभी को जवाब मिल गया। खुद आजम ने अखिलेश के नाम का प्रस्ताव राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए रखा था। इस बार आजम खान का अधिवेशन में शामिल होना मुश्किल बताया जा रहा हुआ। ये तस्वीर 2017 की है।
सपा की स्थापना से अब तक हुए सम्मेलन पर एक नजर
4 अक्टूबर 1992 : सपा की स्थापना हुई। मुलायम सिंह संस्थापक अध्यक्ष बने।
5 अक्टूबर 1992 : बेगम हजरत महल पार्क लखनऊ में पहला सम्मेलन।
11-12 अक्टूबर 1994 : लखनऊ में दूसरा सम्मेलन।
27-28 जुलाई 1996 : लखनऊ में तीसरा सम्मेलन।
29,30,31 जनवरी 1999 : भोपाल के लोहिया नगर चौथा सम्मेलन।
3-4 जनवरी 2002 : कानपुर में पांचवां सम्मेलन।
21, 22, 23 अप्रैल 2005 : पटना में छठा सम्मेलन।
26, 27, 28 मार्च 2008 : जबलपुर में सातवां सम्मेलन।
7-8 जून 2011 : आगरा में आठवां सम्मेलन। सपा का संविधान बदला गया।
8,9,10 अक्टूबर 2014 : लखनऊ के जनेश्वर मिश्र पार्क में नौवां सम्मेलन।
05 अक्टूबर 2017 : आगरा में 10वां सम्मेलन।