भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक समीक्षा नीति की बैठक आज यानी 28 सितंबर से शुरू हो चुकी है जो 30 सितंबर तक चलेगी। इसके खत्म होने के बाद RBI 30 सितंबर को क्रेडिट पॉलिसी का ऐलान करेगी। जानकारों के अनुसार RBI मौद्रिक समीक्षा नीति की बैठक में रेपो रेट में बढ़ोतरी का ऐलान हो सकता है। उम्मीद है कि RBI रेपो रेट में 0.50% तक का इजाफा कर सकता है। फिलहाल रेपो रेट 5.40% है।
इस साल 3 बार बढ़ चुका हैं रेपो रेट
बढ़ती महंगाई से चिंतित RBI ने मई में 0.40%, जून में 0.50% और अगस्त में 0.50% रेपो रेट बढ़ाया था। यानी RBI ने रेपो दर में मई से लेकर अब तक 1.40% की वृद्धि की है।
क्या है रेपो और रिवर्स रेपो रेट?
रेपो रेट वह दर है जिस पर RBI द्वारा बैंकों को कर्ज दिया जाता है। बैंक इसी कर्ज से ग्राहकों को लोन देते हैं। रेपो रेट कम होने का अर्थ होता है कि बैंक से मिलने वाले कई तरह के लोन सस्ते हो जाएंगे, जबकि रिवर्स रेपो रेट, रेपो रेट से ठीक विपरीत होता है।
रिवर्स रेट वह दर है, जिस पर बैंकों की ओर से जमा राशि पर RBI से ब्याज मिलता है। रिवर्स रेपो रेट के जरिए बाजारों में लिक्विडिटी, यानी नगदी को नियंत्रित किया जाता है। रेपो रेट स्थिर होने का मतलब है कि बैंकों से मिलने वाले लोन की दरें भी स्थिर रहेंगी।,
रेपो रेट बढ़ने से महंगा हो जाता है लोन
जब RBI रेपो रेट घटाता है, तो बैंक भी ज्यादातर समय ब्याज दरों को कम करते हैं। यानी ग्राहकों को दिए जाने वाले लोन की ब्याज दरें कम होती हैं, साथ ही EMI भी घटती है। इसी तरह जब रेपो रेट में बढ़ोतरी होती है, तो ब्याज दरों में बढ़ोतरी के कारण ग्राहक के लिए कर्ज महंगा हो जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि कॉमर्शियल बैंक को RBI से ज्यादा कीमतों पर पैसा मिलता है, जो उन्हें दरों को बढ़ाने के लिए मजबूर करता है।