अटल बिहारी वाजपेयी को हिंदी से बेहद लगाव था। उन्होंने वैश्विक स्तर पर हिंदी का डंका बजाया। वो पहले नेता थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण दिया। पहली बार भारत की राजभाषा अंतर्राष्ट्रीय मंच पर आधिकारिक रूप से गूंजी। उनके भाषण के बाद देश-दुनिया के प्रतिनिधियों ने तालियों से स्वागत किया था बता दें कि 1977 में आज ही के दिन भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में पहली बार हिंदी में अपना संबोधन दिया था। अपने भाषण में वाजपेयी जी ने परमाणु निरस्त्रीकरण, आतंकवाद जैसे कई गंभीर मुद्दे उठाए थे। हिंदी की वजह से ही उनका यह भाषण ऐतिहासिक हो गया।
संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में पहला संबोधन
45 साल पहले 4 अक्टूबर 1977 वह ऐतिहासिक दिन था जब संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देकर अटल बिहारी वाजपेयी ने इतिहास रचा था। उस समय देश में मोरारजी देसाई की अगुवाई में जनता पार्टी की सरकार थी और वाजपेयी विदेश मंत्री के रूप में काम कर रहे थे। संयुक्त राष्ट्र महासभा में उनका पहला संबोधन था और उन्होंने इस ऐतिहासिक संबोधन को हिंदी में देने का फैसला किया था। उस दिन संयुक्त राष्ट्र महासभा में इतिहास रचा गया क्योंकि पहली बार वैश्विक नेताओं के सामने हिंदी गूंजी थी।
मैं भारत की जनता की ओर से राष्ट्रसंघ के लिए शुभकामनाओं का संदेश लाया हूं। महासभा के इस 32 वें अधिवेशन के अवसर पर मैं राष्ट्रसंघ में भारत की दृढ़ आस्था को पुन: व्यक्त करना चाहता हूं। जनता सरकार को शासन की बागडोर संभाले केवल 6 मास हुए हैं। फिर भी इतने अल्प समय में हमारी उपलब्धियां उल्लेखनीय हैं। भारत में मूलभूत मानव अधिकार पुन: प्रतिष्ठित हो गए हैं, जिस भय और आतंक के वातावरण ने हमारे लोगों को घेर लिया था वह अब दूर हो गया है। ऐसे संवैधानिक कदम उठाए जा रहे हैं जिनसे ये सुनिश्चित हो जाए कि लोकतंत्र और बुनियादी आजादी का अब फिर कभी हनन नहीं होगा।’
इतिहास में दर्ज हुआ अटल का नाम
अटल बिहारी वाजपेयी मातृभाषा हिंदी थी और उन्होंने वैश्विक मंच पर हिंदी में भाषण देने में संकोच नहीं किया। वैसे पहले उनका भाषण अंग्रेजी में लिखा गया था मगर वाजपेयी ने बड़े ही गर्व के साथ इस भाषण का हिंदी अनुवाद पढ़ा। हिंदी में दिया गया उनका भाषण सुनकर यूएन तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा था। संयुक्त राष्ट्र महासभा में पहली बार हिंदी में भाषण देकर अटल ने अपना नाम इतिहास में दर्ज करा लिया।
वैश्विक समस्याओं का जिक्र
1977 में आपातकाल के बाद देश में जनता पार्टी की नई सरकार का गठन हुआ था और अटल ने इस बात का जिक्र करते हुए कहा था कि छह महीने के अंत समय में भी हमने उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं। उनका कहना था कि भारत में मूलभूत मानवाधिकार फिर प्रतिष्ठित किए जा चुके हैं और भय और आतंक के जिस माहौल ने हमें घेर लिया था वह पूरी तरह समाप्त हो गया है। अफ्रीका के रंगभेद का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा था कि लोगों को स्वतंत्रता और सम्मान के साथ जीवन जीने का अधिकार है।
संयुक्त राष्ट्र में वसुधैव कुटुंबकम का जिक्र
संयुक्त राष्ट्र महासभा में संबोधन के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा- अध्यक्ष महोदय, ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की परिकल्पना बहुत पुरानी है। भारत में सदा से हमारा इस धारणा में विश्वास रहा है कि सारा संसार एक परिवार है। अनेकानेक प्रयत्नों और कष्टों के बाद संयुक्त राष्ट्र के रूप में इस स्वप्न के अब साकार होने की संभावना है। यहां मैं राष्ट्रों की सत्ता और महत्ता के बारे में नहीं सोच रहा हूं। आम आदमी की प्रतिष्ठा और प्रगति मेरे लिए कहीं अधिक महत्व रखती है। अंतत: हमारी सफलताएं और असफलताएं केवल एक ही मापदंड से नापी जानी चाहिए कि क्या हम पूरे मानव समाज वस्तुत: हर नर-नारी और बालक के लिए न्याय और गरिमा के प्रति प्रयत्नशील हैं।