समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव का सोमवार को निधन हो गया। मुलायम सिंह यादव यूपी के तीन बार मुख्यमंत्री बने। केंद्र में रक्षा मंत्री भी रहे। 7 बार के लोकसभा सांसद और 9 बार के विधायक चुने गए। मुलायम सिंह कि खास बात यह रही है कि राजनीतिक कौशल में वह इतने माहिर थे कि उनके धुर विरोधी भी उनके मुरीद थे।
22 नवंबर 1939 को सैफई हुआ जन्म
22 नवंबर 1939 को सैफई में जन्मे मुलायम सिंह यादव 1967 में पहली बार विधायक बने। इसके बाद 5 दिसंबर 1989 को पहली बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। बाद में 2 बार और मुख्यमंत्री बने। मुलायम ने अपना राजनीतिक अभियान जसवंत नगर विधानसभा सीट से शुरू किया। सोशलिस्ट पार्टी, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से आगे बढ़े। मंत्री बनने के लिए मुलायम सिंह यादव को 1977 तक का इंतजार करना पड़ा।
केंद्र और यूपी में जनता पार्टी की सरकार बनी। वह राज्य सरकार में मंत्री बनाए गए। बाद में चौधरी चरण सिंह की पार्टी लोकदल के प्रदेश अध्यक्ष बने। विधायक का चुनाव लड़े और हार गए। 1967, 1974, 1977, 1985, 1989 में वह विधानसभा के सदस्य रहे। 1982-85 में विधान परिषद के सदस्य रहे। आठ बार राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे। 1992 में समाजवादी पार्टी का गठन किया।
मैनपुरी में अजेय रहे मुलायम
2014 में मोदी सुनामी में भी मैनपुरी में मुलायम धुरंधर ही साबित हुए। सपाई किले को कोई हिला भी नहीं सका। सियासत की कुश्ती में चार बार पहले जीत हासिल कर चुके मुलायम ने 2014 में पांचवी बार भी जीत हासिल की। इसके साथ ही मैनपुरी में सपा की यह लगातार नौवीं लोकसभा जीत बन गई।
इस बीच, चंद्रशेखर से भी मतभेदों के कारण उन्हें नई पार्टी बनानी पड़ी। मुलायम की नाराजगी के कारण तत्कालीन संचार मंत्री जनेश्वर मिश्र ने चंद्रशेखर के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। जनेश्वर छोटे लोहिया के नाम से जाने जाते थे। मुलायम से नजदीकियों के लिए भी। इस बीच राजीव की मृत्यु के बाद चंद्रशेखर तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव के करीब हो गए।
राव के हिमायती चंद्रशेखर अकेले पड़ गए। मुलायम ने अपना अलग रास्ता ढूंढ़ने का फैसला किया। लखनऊ के दारुलशफा स्थित भगवती सिंह के विधायक आवास पर जाकर साथियों के साथ लंबी बैठकें करते और भविष्य की रूपरेखा तैयार करते। मुलायम को साथियों ने डराया-अकेले पार्टी बनाना आसान नहीं है। बन भी गई तो चलाना आसान नहीं होगा।
पर मुलायम अपने फैसले पर अडिग रहे। उनका मानना था कि भीड़ हम उन्हें जुटाकर देते हैं और पैसा भी। फिर भी देवीलाल, चंद्रशेखर, वीपी सिंह हमें बताते हैं कि क्या करना है, क्या बोलना है। हम अपना रास्ता खुद बनाएंगे।
सितंबर 1992 में मुलायम ने सजपा से नाता तोड़ ही दिया। 4 अक्टूबर को लखनऊ में समाजवादी पार्टी बनाने की घोषणा कर दी। चार और पांच नवंबर को बेगम हजरत महल पार्क में उन्होंने पार्टी का पहला राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित किया। मुलायम सपा के अध्यक्ष, जनेश्वर मिश्र उपाध्यक्ष, कपिल देव सिंह और मोहम्मद आजम खान पार्टी के महामंत्री बने। मोहन सिंह को प्रवक्ता नियुक्त किया गया। लेकिन, बेनी प्रसाद वर्मा कोई पद न मिलने की वजह से रूठकर घर बैठ गए। सम्मेलन में नहीं आए। मुलायम सिंह ने उन्हें घर जाकर मनाया। सम्मेलन में लेकर आए। इस बीच पार्टी बनने के ठीक एक महीने बाद देश की सबसे बड़ी राजनीतिक घटना घट गई। कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद गिरा दी। पूरा देश भाजपा-मय हो गया।
मुलायम आरपीआई के उम्मीदवार को हराकर विजयी हुए थे
मुलायम सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर आरपीआई के उम्मीदवार को हराकर विजयी हुए थे। मुलायम को पहली बार मंत्री बनने के लिए 1977 तक इंतजार करना पड़ा। जब जनता सरकार बनी। मुलायम सिंह 1980 में यूपी में लोक दल के अध्यक्ष बने, जो बाद में जनता दल का हिस्सा बन गया।
मुलायम 1989 में पहली बार उत्तर प्रदेश के सीएम बने। नवंबर 1990 में केंद्र में वीपी सिंह की सरकार गिर गई तो मुलायम सिंह चंद्रशेखर की जनता दल (समाजवादी) में शामिल हो गए। कांग्रेस के समर्थन से सीएम की कुर्सी पर बने रहे। अप्रैल 1991 में कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया तो मुलायम सरकार गिर गई।
1991 में यूपी में मध्यावधि चुनाव हुए, जिसमें मुलायम सिंह की पार्टी हार गई। बीजेपी यूपी में सत्ता में आई। चार अक्टूबर, 1992 को लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में मुलायम सिंह ने समाजवादी पार्टी बनाने की घोषणा की। नवंबर 1993 में यूपी में विधानसभा के चुनाव होने थे। सपा मुखिया ने बीजेपी को दोबारा सत्ता में आने से रोकने के लिए बहुजन समाज पार्टी से गठजोड़ किया।
22 नवंबर 1939 को इटावा के सैफई में जन्मे मुलायम सिंह की पढ़ाई-लिखाई इटावा, फतेहाबाद और आगरा में हुई। मुलायम कुछ दिनों तक मैनपुरी के करहल स्थित जैन इंटर कॉलेज में प्राध्यापक भी रहे।
पांच भाई-बहनों में दूसरे नंबर पर मुलायम सिंह की दो शादियां हुईं। पहली पत्नी मालती देवी का निधन मई 2003 में हो गया था। यूपी के मौजूदा सीएम अखिलेश यादव मुलायम की पहली पत्नी के बेटे हैं।
मुलायम की दूसरी पत्नी हैं साधना गुप्ता। फरवरी 2007 में सुप्रीम कोर्ट में मुलायम ने साधना गुप्ता से अपने रिश्ते कबूल किए तो लोगों को मुलायम सिंह की दूसरी पत्नी के बारे में पता चला।
साधना गुप्ता से मुलायम के बेटे प्रतीक यादव हैं। मुलायम सिंह 1967 में 28 साल की उम्र में जसवंतनगर से पहली बार विधायक बने। जबकि उनके परिवार का कोई राजनीतिक बैकग्राउंड नहीं था।
चुनावों में 256 प्रत्याशी उतारे
1993 में उत्तर प्रदेश की 422 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव हुए थे। इनमें बसपा और सपा ने गठबंधन करके चुनाव लड़ा था। बसपा ने 164 प्रत्याशी उतारे थे, जिनमें से 67 प्रत्याशी जीते थे। सपा ने इन चुनावों में अपने 256 प्रत्याशी उतारे थे। इनमें से उसके 109 जीते थे।
बीजेपी जो 1991 में 221 सीटें जीती थीं, वह 177 सीटों तक ही पहुंच सकी। मामला विधानसभा में संख्या बल की कुश्ती तक खिंचा तो यहां सपा और बसपा ने बीजेपी को हर तरफ से मात देते हुए जोड़तोड़ कर सरकार बना ली। मुलायम सिंह दूसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हुए।
सपा-बसपा गठबंधन ने चार दिसंबर 1993 को सत्ता की बागडोर संभाल ली। बसपा इससे पहले यूपी में आठ से दस सीटें जीतीं थीं। 1993 में सपा के साथ गठबंधन करने से बसपा ने 67 सीटों पर विजय प्राप्त की।
कांशीराम ने पार्टी उपाध्यक्ष मायावती को उत्तर प्रदेश की प्रभारी क्या बनाया, वे पूरा शासन ही परोक्ष रूप से चलाने लगीं। मुलायम पर हुक्म चलाती थीं। मुलायम को यह स्वीकार नहीं था। उन्होंने पहले जनता दल, सीपीएम और सीपीआई के विधायकों को तोड़ा और फिर अपना खुद का बहुमत करने के लिए बसपा पर डोरे डाले।
1991 से शुरू हुई थी मुलायम और कांशीराम की नजदीकियां
कहा जाता है कि 1991 के आम चुनाव में इटावा में जबरदस्त हिंसा के बाद पूरे जिले के चुनाव को दोबारा कराया गया था। तब बसपा सुप्रीमो कांशीराम मैदान में उतरे। मौके को भांपते हुए मुलायम सिंह यादव ने यहां कांशीराम की मदद की। इसके एवज मे कांशीराम ने बसपा से कोई प्रत्याशी मुलायम के खिलाफ जसवंतनगर विधानसभा से नहीं उतारा।
लोकसभा के उपचुनाव में हुई थी कांशीराम की जीत
1991 में हुए लोकसभा के उपचुनाव में बसपा प्रत्याशी कांशीराम को 1 लाख 44 हजार 290 मत मिले और उनके समकक्ष बीजेपी प्रत्याशी लाल सिंह वर्मा को 1 लाख 21 हजार 824 वोट ही मिले। वहीं मुलायम सिंह की अपनी जनता पार्टी से लड़े रामसिंह शाक्य को मात्र 82,624 मत ही मिले थे।
1991 में इटावा से जीत के दौरान मुलायम का कांशीराम के प्रति यह आदर अचानक उभर कर सामने आया था, जिसमें मुलायम ने अपने खास की कोई खास मदद नहीं की।
इस हार के बाद रामसिंह शाक्य और मुलायम के बीच मनुमुटाव भी हुआ, लेकिन मामला फायदे और नुकसान के कारण शांत हो गया। कांशीराम की इस जीत के बाद उत्तर प्रदेश में मुलायम और कांशीराम की जो जुगलबंदी शुरू हुई, इसका लाभ यूपी में 1993 में मुलायम सिंह यादव की सरकार बनने के रूप में सामने आई।