डिजिटल क्रांति के इस दौर में मेंटल हेल्थ की समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। चाहे टीनएजर्स हों या बड़े सेलिब्रिटीज कोई भी मेंटल हेल्थ की समस्या से नहीं बचा है। इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन डेटा की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 5 करोड़ 60 लाख लोग डिप्रेशन की चपेट में हैं। वहीं 3 करोड़ 80 लाख के आस-पास लोग एंग्जायटी डिसऑर्डर के शिकार हैं। आज मेंटल हेल्थ डे के मौके पर जानिए उन सेलिब्रिटीज की कहानी जिन्होंने मेंटल हेल्थ की समस्या का मुकाबला किया और दुनिया को मेंटल हेल्थ की समस्या से निजात पाने का फॉर्मूला दिया।
विश्व के सबसे महान बल्लेबाज का ताज अपने नाम करने वाले विराट कोहली भी मेंटल हेल्थ की समस्या का शिकार रह चुके हें। साल 2014 में पहली बार कोहली को मेंटल हेल्थ की समस्या से जूझना पड़ा था। दरअसल 2014 का इंग्लैंड दौरा विराट के लिए एक बुरे सपने की तरह था। विराट बताते हैं कि उस वक्त उन्हें लगता था कि वे दुनिया के सबसे अकेले इंसान हैं। उस दौरान कोहली ने मेंटल हेल्थ की लड़ाई में प्रोफेशनल हेल्प की बात पर भी जोर दिया था और कहा था कि हर किसी के जीवन में कोई ऐसा इंसान होना चाहिए जिससे आप खुलकर अपने दिल की बात कर सकें।
2014 के उस कठिन दौर से निकलने के बाद इस साल विराट ने एक बार फिर मेंटल हेल्थ की समस्या पर खुलकर बात रखी। 2019 के बाद से ही अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में विराट अपना 71वां शतक नहीं लगा पा रहे थे। और एक इंटरव्यू में विराट ने माना कि वे अंदर से परेशान थे और उनकी मेंटल हेल्थ पूरी तरह सही नहीं थी। अपने आप को बेहतर करने के लिए उन्होंने 1 महीने तक क्रिकेट बैट को हाथ तक नहीं लगाया। प्रोफेशनल करियर से ब्रेक लेना और अपने करीबियों को समय देना विराट ने महत्वपूर्ण समझा। जिससे उनकी मेंटल हेल्थ बेहतर हुई और मैदान में जब वे वापस लौटे तो उनके 71वें शतक का इंतजार भी पूरा हुआ और पूरी दुनिया ने कहा कि ‘किंग इज बैक।’
ड्वेन जॉनसन: बचपन में मां को आत्महत्या की कोशिश करते देखा था जिसे कभी भुला नहीं पाए
ड्वेन जॉनसन…जिन्हें दुनिया द रॉक के नाम से जानती है। ये वर्ल्ड के चौथे सबसे अमीर सेलिब्रिटी हैं। रॉक का बचपन गरीबी में बीता था। जब रॉक 15 वर्ष के थे तो उनकी मां ने आत्महत्या की कोशिश की थी जिसे वे अपने दिमाग से कभी मिटा नहीं पाए। जब रॉक 18 के हुए तब उन्हें काफी अकेलापन महसूस होने लगा। वे बताते हैं कि उस वक्त उन्हें फिजिकल से ज्यादा मेंटल सपोर्ट की जरूरत थी। हालांकि, यह आखिरी मौका नहीं था जब रॉक डिप्रेशन में थे।
उनके जीवन में ऐसा एक और मौका आया। रॉक 4 साल से कनाडा में रहकर अमेरिकी फुटबॉल लीग खेल रहे थे, लेकिन उन्हें टीम से निकाल दिया गया। इससे रॉक टूट गए और घर में कैद हो गए। अगले 6 हफ्तों तक उन्होंने सिर्फ घर की सफाई की। उन्हें जो मिलता उसे वे साफ करने लगते। 6 हफ्ते बाद जब रॉक के कोच ने उन्हें फुटबॉल टीम में वापस आने की सलाह दी तो रॉक ने बोला अब मैं फुटबॉल नहीं रेसलिंग करूंगा। उनके कोच ने रॉक को कहा कि इससे तुम्हारा करियर खत्म हो जाएगा, लेकिन रॉक नहीं माने और उसके बाद जो हुआ उसकी दुनिया गवाह है। हालांकि, रॉक फुटबॉल के अलावा रग्बी भी खेला करते थे मगर इस घटना के बाद उन्होंने रेसलिंग को ही अपना करियर बना लिया। डिप्रेशन को हराने में रॉक का सबसे महत्वपूर्ण फार्मूला था कि ‘दुनिया को नहीं, अपने आप को बदलिए।’
मशहूर टेनिस खिलाड़ी, नाओमी ओसाका: 3 साल तक अपने अंदर के डर को छुपाए रखा, मेंटल हेल्थ के लिए ग्रैंड स्लैम को छोड़ा
ग्रैंड स्लैम चैंपियन रह चुकीं नाओमी ओसाका भी डिप्रेशन से लड़ाई लड़ चुकी हैं। जब 2021 में नाओमी ने फ्रेंच ओपन में हिस्सा न लेने का फैसला लिया तो दुनिया चौंक गई। नाओमी ने फैसले की पीछे की वजह डिप्रेशन बताई। इस फैसले के बाद फ्रेंच ओपन के आयोजकों ने नाओमी पर भारी- भरकम पेनल्टी भी लगाई थी। नाओमी अपने फैसले से पीछे नहीं हटीं। नाओमी 2018 से ही डिप्रेशन से लड़ रही थीं। तीन साल तक उन्होंने अपनी एंग्जाइटी को दबाए रखा, मीडिया के सामने न आना ही बेहतर समझा।
माइकल फेल्प्स: कभी डिप्रेशन की वजह से आत्महत्या करने वाले थे फेल्प्स, अब टीनएजर्स को देते हैं डिप्रेशन को हराने का फॉर्मूला
ओलंपिक इतिहास में 28 मेडल जीत चुके महान तैराक माइकल फेल्प्स डिप्रेशन का शिकार रहे हैं। माइकल फेल्प्स के कॅरिअर में एक ऐसा समय भी आया था जब वे अपनी जिंदगी तक खत्म करना चाहते थे। फेल्प्स बता चुके हैं कि 2012 लंदन ओलंपिक में 6 मेडल जीतने के चार दिन बाद उन्होंने खुद को कमरे में बंद कर लिया था। वो स्विमिंग छोड़ना चाहते थे और जिंदा रहने की उनके अंदर कोई भी इच्छा नहीं बची थी। डिप्रेशन से निजात पाने के लिए उन्होंने शराब और ड्रग्स का उपयोग करना शुरू कर दिया था।
साल 2014 में माइकल ने डिप्रेशन के खिलाफ अपना ट्रीटमेंट शुरू किया। उन्होंने 45 दिन ट्रीटमेंट सेंटर में थेरेपी ली, जिसके बाद उन्हें आराम मिला। फेल्प्स का मानना है कि दिमागी बीमारी को कमजोरी की निशानी के तौर पर नहीं देखना चाहिए। इस पर ज्यादा से ज्यादा बात होनी चाहिए। आज माइकल फेल्प्स मेंटल हेल्थ फाउंडेशन तक संचालित करते हैं। यहां पर माइकल युवाओं को मेंटल हेल्थ और इससे संबंधी बीमारियों पर जागरूक करते हैं।