हरियाणा में ‘गांव की सरकार’ चुनने के लिए सिर्फ 70% ही मतदान हुआ। 2015 में हुए पंचायत चुनाव में 86% वोटिंग हुई थी। इस बार 16% कम मतदान के अब कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। जिसकी बड़ी वजह आदमपुर उपचुनाव को भी माना जा रहा है।
जिला परिषद और पंचायत समिति मेंबर चुनाव में कल हुए कम मतदान से राजनीतिक दलों की टेंशन भी बढ़ी हुई है। राज्य चुनाव आयोग भी इसकी समीक्षा में जुट गया है। हालांकि उन्हें उम्मीद है कि कल होने वाले पंच-सरपंच के मतदान में वोटिंग बढ़ेगी।
आदमपुर उपचुनाव : पंचायत चुनाव में कम वोटिंग की वजह आमदपुर उपचुनाव काे माना जा रहा है। राज्य के सभी राजनीतिक दलों ने इसी उपचुनाव में अपनी ताकत झोंक रखी है। सरकार के मंत्री, सांसद, विधायकों के साथ ही विपक्षी दलों के भी स्टार प्रचारक आदमपुर में ही डेरा डाले हुए हैं। पंचायत चुनाव के मैदान से इनके नदारद होने से लोगों ने भी मतदान से दूरी बना ली।
पंच-सरपंच के साथ नहीं हुआ मतदान : चुनाव आयोग ने पंचायत चुनाव में नई रणनीति अपनाई। जिला परिषद व पंचायत समिति मेंबर और पंच-सरपंच का मतदान अलग-अलग दिन तय कर दिया। माना जाता है कि पंच-सरपंच के मतदान में लोगों की दिलचस्पी ज्यादा रहती है। चूंकि कल की वोटिंग में पंच-सरपंच नहीं चुनना था, इसलिए ग्रामीणों ने ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई। सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या आयोग इस फैक्ट को समझने में चूक गया?।
पंचायत चुनाव के पहले चरण का मतदान होने के साथ ही सूबे के 3 मंत्री, 7 सांसद और कई विधायकों की साख दांव पर लग गई है। इन दिग्गजों में भिवानी से सांसद धर्मबीर सिंह, कैबिनेट मंत्री ओपी दलाल, झज्जर ओपी धनखड़, सांसद अरविंद शर्मा, जींद विधायक, सांसद रमेश चंद कौशिक, पानीपत से सांसद संजय भाटिया, विधायक प्रमोद विज, महिपाल ढांडा, कैथल से मंत्री कमलेश ढांडा, विधायक लीला राम गुर्जर, सांसद नायब सैनी, शिक्षा मंत्री कंवर पाल गुर्जर, सांसद रतन लाल कटारिया शामिल हैं।