सचिन पायलट का मौन टूटने के साथ ही एक बार फिर राजस्थान में सियासी तूफान ने दस्तक दे दी है। वैसे, पिछले तीन-चार दिन से बगावती हवा चलनी शुरू हो गई थी। पायलट के बयान के साथ ही बवंडर आ गया है।
ये तूफान क्या करेगा? क्या हवा के झोंके की तरह होगा? या तबाही मचाएगा? हालांकि, राजनीतिक पंडित तो इसे चक्रवाती तूफान मानने से इनकार कर रहे हैं।
हां, लेकिन इतना तय है कि नवंबर का महीना शुरू हो गया है और मौसम में ज्यों-ज्यों सर्दी बढ़ेगी, त्यों-त्यों राजनीतिक पारा चढ़ेगा। किसी को गर्मी के मारे पसीने छूटेंगे, तो कई बदहजमी के शिकार होंगे।
आखिरकार पायलट की राजनीतिक चुप्पी टूटने के पीछे की कहानी क्या है?
क्या हैं हिमाचल और गुजरात के चुनाव के बीच सीधे गहलोत पर प्रहार के मायने?
ऐसे कई सवाल हैं, जो पायलट के बयान के बाद उठ खड़े हुए हैं।
सवाल : पायलट अचानक इतने अग्रेसिव क्यों हो गए, जबकि वे लगातार चुप्पी साधे हुए थे?
जवाब : पायलट 25 सितंबर के बाद से चुप थे। उन्होंने पहले वेणुगोपाल, फिर कांग्रेस अध्यक्ष के बनने और इसके बाद उनके कार्यभार संभालने का इंतजार किया। पायलट इसके बाद खड़गे से मिले। मुलाकात के बाद फिर आश्वासन मिला। इसके तुरंत बाद पायलट गुट ने मौन को तोड़ने की रणनीति बनाई। मुलाकात के सप्ताह भर बाद इनके समर्थक परबतसर विधायक रामनिवास गवाड़िया ने अशोक गहलोत के सबसे खास माने जाने वाले और RTDC के चेयरमैन धर्मेंद्र राठौड़ को ‘जूते चप्पल उठाने’ वाला बताते हुए मंत्री बनाने पर कटाक्ष किया। इसके बाद मंत्री गुढ़ा ने CM पर सवाल उठाए और अब पायलट ने सीधा प्रहार किया। इस अग्रेशन के मायने ये ही हैं कि पायलट गुट अब शांति से नहीं बैठने वाला। इसके अलावा जिस तरह से गहलोत लगातार कह रहे थे कि सब ठीक है और वे ही CM रहेंगे तो कहीं न कहीं पायलट ने अपने बयान से तेवर भी दिखा दिए हैं कि पार्टी में न सब कुछ ठीक है और न ही वे गहलोत को CM बने रहने देने के समर्थन में हैं।
जवाब : इस बार तेवर काफी अलग हैं। हर बार सचिन पायलट ने खुद को डिफेंस किया है। गहलोत ने जो आरोप लगाए, उनका जवाब दिया, लेकिन इस बार वे अटैक मोड में हैं। सचिन ने पहली बार इस तरह से सीधे तौर पर गहलोत पर हमला बोला है। आज तक उन्होंने कभी ऐसी भाषा का प्रयोग नहीं किया। 25 सितंबर की घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए एक तरह से मुख्यमंत्री को सीधे तौर पर जिम्मेदार बता दिया। उनके समर्थक विधायक मुख्यमंत्री और उनके करीबी मंत्रियों को जिस तरह टारगेट कर रहे हैं, ये सब नए तेवरों को दर्शाता है। ये भी क्लियर है कि गुट का सब्र टूट गया है। खाचरियावास से कुछ दिन पहले मिलना और आज CM को घेरना भी कुछ नए समीकरणों का इशारा करता है।
सवाल : क्या ये प्रेशर पॉलिटिक्स है या पायलट को हाईकमान से इशारा किया गया है?
जवाब : अभी के हालात में प्रेशर पॉलिटिक्स ज्यादा लग रही है, क्योंकि गुजरात और हिमाचल के चुनाव होने हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को गुजरात में अहम जिम्मेदारी दी गई है। पायलट खुद स्टार प्रचारक हैं। ऐसे में पार्टी गहलोत को लेकर अभी कोई फैसला कर रही होगी, इसकी संभावना नहीं दिख रही। वैसे भी राजनीति में इशारों के नहीं, एक्शन के मायने होते हैं। अभी सिर्फ बयानों में तेवर और एक्शन दिख रहे है।
जवाब : पायलट के पास खोने के लिए कुछ नहीं है। वे किसी न किसी बहाने मुख्यमंत्री गहलोत के लिए चुनौतियां कम नहीं होने देना चाहते। साथ ही, हाईकमान ने इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया था तो उन्होंने अपना मौन तोड़कर इस मुद्दे को वापस जिंदा कर दिया।
सवाल : क्या तीनों नेताओं पर कार्रवाई के लिए हाईकमान पर दबाव बनाया जा रहा है?
जवाब : पायलट और गहलोत गुट के बीच ये लड़ाई अब पद से ज्यादा प्रतिष्ठा की हो चुकी हैं। पायलट गुट की बगावत के वक्त पायलट और अन्य मंत्रियों को पद से हटा दिया गया था। पायलट के पास अब तक पद नहीं है। ऐसे में अनुशासनहीनता के मामले में 3 नेताओं पर अब तक कार्रवाई नहीं होना पायलट की झल्लाहट की एक वजह है। कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के बाद खड़गे की टीम नहीं बनी है। सेंट्रल लेवल पर अभी काम चलाऊ कमेटी है। ऐसे में नए अध्यक्ष की जिम्मेदारी सेंट्रल लेवल पर पदाधिकारियों की नियुक्ति करना है। ऐसे में इस प्रोसेस में कुछ वक्त लग रहा है। राजस्थान में नए प्रभारी की नियुक्ति होनी है। संगठन स्तर की नियुक्तियों के बाद ही तय होगा कि क्या कार्रवाई होती है।
जवाब : हाईकमान को मैसेज देना कि वे भले चुनाव प्रचार में लगे हैं, लेकिन मुद्दा शांत नहीं हुआ है। वे और उनके समर्थक अब आर-पार की लड़ाई लड़ेंगे। अब सब्र नहीं करेंगे।
जवाब : पिछले राजनीतिक विश्लेषण में बताया था कि राजस्थान में इस ड्रामे का पार्ट-3 जल्दी आएगा और ये तूफान से पहले की शांति है। इसका कारण ये था कि सरकार बनने के बाद दोनों गुटों में जिस तरह की अदावत चल रही है और 25 सितंबर का जो घटनाक्रम हुआ उससे तय था कि पार्ट -3 आएगा। अब ये ड्रामा शुरू हो चुका है। फिलहाल गहलोत के सामने दो चुनौतियां हैं- राजस्थान में सरकार बचाना और गुजरात में पार्टी ने जो जिम्मेदारी दी है, उसे पूरा करना।
सवाल : पायलट गुट जिस तरह मुखर हो रहा है, हाईकमान के पास डैमेज कंट्रोल के लिए क्या रास्ते हैं?
जवाब : ये तय है कि पायलट को पार्टी या सत्ता या संगठन में बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है। जिम्मेदारी क्या होगी, ये कहना अभी जल्दबाजी होगा। पहली संभावना जो दिख रही है कि पायलट को प्रदेशाध्यक्ष बना दिया जाए और गहलोत ही मुख्यमंत्री रहें, लेकिन पायलट पहले भी प्रदेशाध्यक्ष थे, ऐसे में वे राजी होंगे इसमें संदेह है। दूसरी संभावना मुख्यमंत्री बनाने की है, लेकिन गहलोत समर्थक विधायकों के इस्तीफे स्पीकर के पास जस के तस हैं। अगर बात ज्यादा बिगड़ी तो गहलोत समर्थक विधायक सरकार गिरा भी सकते हैं। तीसरी संभावना है कि राष्ट्रीय स्तर पर बड़ा पद दे दिया जाए, लेकिन पायलट राजस्थान छोड़ने से इनकार कर चुके हैं।
- हालांकि, इस बीच कुछ बड़े कांग्रेसी नेता नाम न छापने की शर्त पर ये भी दावा कर रहे हैं कि मामले में अध्यक्ष खड़गे CLP बैठक बुला सकते हैं। पिछली बार हुई CLP का विरोध हुआ था, इसलिए हाईकमान अतिरिक्त सावधानी बरत रहा है। दावा है कि इस बार बैठक हुई तो प्रस्ताव की औपचारिकता नहीं, सीधा फैसला होगा।
सवाल : सबसे बड़ा सवाल क्या गहलोत CM रहेंगे?
जवाब : पहले दो विश्लेषण में बताया था 2023 तक गहलोत ही सीएम रहेंगे। महीना दिसंबर होगा या फरवरी ये नहीं कह सकते। ऐसा इसलिए क्योंकि गहलोत ये संकेत दे चुके हैं कि वे बजट पेश करेंगे। बजट 2023 में पेश होना है। इसके बाद कोई समीकरण बदले तो कह नहीं सकते।
इन सवालों और जवाबों के जरिए आप राजस्थान के सियासी घटनाक्रम को आसानी से समझ गए होंगे, ऐसे में इस खबर पर नीचे दिए गए पोल में हिस्सा लेकर अपनी राय जाहिर कर सकते हैं।