कुमावत-सैनी वोटर साधने के लिए रश्मि को टिकट:विधायकों की पसंद थी रश्मि, गुर्जर नेता को टिकट देने के पक्ष में नहीं थे सीनियर नेता

2023 विधानसभा चुनाव से पहले अपने कोर ओबीसी वोटर को साधने के लिए बीजेपी ने जयपुर ग्रेटर नगर निगम में सैनी कार्ड खेला है। जयपुर ग्रेटर नगर निगम के मेयर प्रत्याशी के लिए कई नामों पर चर्चा थी। इनमें से रश्मि सैनी को टिकट देकर बीजेपी ने ग्रेटर क्षेत्र में आने वाली 5 विधानसभाओं के सैनी-कुमावत वोटर को साधने की कोशिश की है। रश्मि सैनी को टिकट मिलने के बाद कार्यवाहक मेयर शील धाभाई और उनकी बेटी के हंगामे से बीजेपी का टिकट वितरण चर्चा में आ गया। बीजेपी के इस फैसले का जब हमने एनालिसिस किया तो इसके कई कारण सामने आए।

सैनी-कुमावत बड़ा वोटर, पहली बार मिला टिकट

मालवीय नगर, झोटवाड़ा, सांगानेर, विद्याधर नगर और बगरू विधानसभा का हिस्सा जयपुर ग्रेटर नगर निगम के अधीन आता है। इन विधानसभाओं में अच्छी संख्या में सैनी और कुमावत वोटर है। ये सैनी और कुमावत जयपुर में बीजेपी का समर्थित वोटबैंक रहा है। मगर 1994 में जयपुर के नगर निगम बनने और निकाय चुनाव शुरू होने की प्रक्रिया के बाद से एक बार भी इस समाज के प्रत्याशी को बीजेपी ने टिकट नहीं दिया था। ऐसे में ओबीसी के इस बड़े वर्ग को साधने के लिए बीजेपी ने रश्मि सैनी को टिकट दिया है। इससे पहले 1960 के दशक में सैनी समाज से राघव मोहनलाल नगर परिषद जयपुर के सभापति बने थे।

गुर्जर समाज को पहले दे चुके थे टिकट

रश्मि सैनी के पक्ष में निर्णय होने का बड़ा कारण यह भी रहा कि उनके सामने मजबूत प्रत्याशी मानी जा रही शील धाभाई गुर्जर समाज से हैं। बीजेपी ग्रेटर के चुनाव में सौम्या गुर्जर को टिकट देकर पहले ही गुर्जर समाज को साध चुकी थी। इसके अलावा शील धाभाई भी गुर्जर समाज से ही आती हैं। शील धाभाई वर्तमान कार्यकाल में कार्यवाहक मेयर भी रहीं। साथ ही 1999 से 2004 के नगर निगम बोर्ड में तत्कालीन महापौर निर्मला वर्मा के निधन के बाद भी लगभग 3 साल शील धाभाई ही महापौर रही थी।

पार्षदों की प्रायोरिटी में रश्मि का नाम

बीजेपी ने महापौर के प्रत्याशी के लिए सभी बीजेपी पार्षदों से 1 से 3 की प्रायोरिटी में शील धाभाई, रश्मि सैनी और सुखप्रीत बंसल के नाम पर राय मांगी थी। इनमें अच्छी संख्या में पार्षदों ने पहले और दूसरे नम्बर पर रश्मि सैनी का नाम दिया। रश्मि के नाम पर मुहर लगने में इस फैक्टर को भी ध्यान में रखा गया।

विधायकों, प्रत्याशियों और सीनियर नेताओं का भी समर्थन

बीजेपी के जयपुर से जुड़े विधायकाें, विधायक का चुनाव लड़े प्रत्याशियों और सीनियर नेताओं से बातचीत में भी रश्मि सैनी का ही नाम सबसे ऊपर रहा। ज्यादातर नेताओं ने कुमावत-सैनी समाज को साधने के चलते रश्मि के नाम पर मंजूरी दी।

संगठन से पुराना जुड़ाव

रश्मि सैनी और उनके परिवार का संगठन के तौर पर बीजेपी से पुराना नाता रहा है। रश्मि सैनी के प्रति राजेंद्र सैनी का संगठन में अच्छा दखल है। ऐसे में संगठन के पुराने सम्पर्क होने का फायदा भी रश्मि सैनी को मिलता दिखा। राजेंद्र सैनी बीजेपी में अहम पदों पर रह चुके हैं।

राजेंद्र राठौड़ का था सुखप्रीत को समर्थन

मेयर पद के लिए तीसरी दावेदार सुखप्रीत बंसल को उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ का समर्थन था। इसके चलते कई बार उनका नाम चर्चा में आया। मगर जातिगत गणित और सीनियर नेताओं और पार्षदों के समर्थन के चलते सुखप्रीत को टिकट नहीं मिल सका।

बीजेपी का सर्वे : हर वार्ड में सैनी-कुमावत वोटर

रश्मि के टिकट के पीछे बीजेपी के आंतरिक सर्वे का बड़ा रोल है। विधानसभा चुनावों को लेकर बीजेपी के पूर्व सीनियर नेताओं के किए सर्वे में यह सामने आया था कि जयपुर की 8 विधानसभाओं से जुड़े दोनों निगमों के लगभग हर वार्ड में सैनी-कुमावत वोटर है। इसी को ध्यान में रखते हुए ग्रेटर निगम की 5 सहित जयपुर शहर से जुड़ने वाली 8 विधानसभाओं पर बीजेपी ने सैनी कार्ड खेला है।

बीजेपी के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष, पूर्व मंत्री और बीजेपी के टिकट वितरण में अहम रोल रखने वाले डॉ. अरूण चतुर्वेदी ने कहा कि संगठन की मर्जी से यह फैसला हुआ है। विधायक, विधायक प्रत्याशी और पार्षदों की राय और सलाह पर यह निर्णय किया गया है। कार्यवाहर मेयर शील धाभाई और उनकी बेटी के हंगामे और रिएक्शन को लेकर डॉ. चतुर्वेदी ने कहा कि शील धाभाई पुरानी वर्कर हैं। ऐसे मौकों पर परिवार की ओर से इमोशनल रिएक्शन आ जाते हैं। हम सब मिलकर चुनाव लड़ेंगे।

चार महिला मेयर सहित 10 मेयर रहे, पहली बार सैनी समाज से

1994 से अबतक 4 महिला मेयर सहित 10 मेयर रह चुके हैं। इनमें सिर्फ एक बार कांग्रेस का मेयर बना है। 1994 में जयपुर नगर निगम के पहले महापौर मोहनलाल गुप्ता थे। इसके बाद 1999 में निर्मला वर्मा मेयर बनीं। उनके निधन के बाद शील धाभाई को मेयर बनाया गया। इसके बाद 2004 में अशोक परनामी मेयर बने। मगर 2008 में उनके विधायक बनने के बाद खाली हुई सीट पर पंकज जोशी को मेयर बनाया गया। इसके बाद 2009 में कांग्रेस से ज्योति खंडेलवाल मेयर बनीं। ये कांग्रेस के टिकट पर बनने वाली एकमात्र मेयर थी।

इसके बाद 2014 में निर्मल नाहटा और फिर अशाेक लाहोटी मेयर बने। मगर 2018 में विधायक का चुनाव जीतने के बाद खाली हुई सीट पर विष्णु लाटा मेयर बने। विष्णु लाटा ने चुनाव बीजेपी के टिकट पर लड़ा था। मगर कांग्रेस के समर्थन से मेयर बने। इसके बाद जयपुर निगम निगम के दो भाग में बंटने पर जयपुर ग्रेटर की मेयर सौम्या गुर्जर बनी। उनके विवाद के दौरान शील धाभाई को कार्यवाहक मेयर बनाया गया था।