गोला के बाद BJP का मिशन मैनपुरी-रामपुर:मुलायम के गढ़ में सेंध लगाएगी भाजपा, यहां मोदी और योगी की आंधी में भी नहीं हारी सपा

गोला गोकर्णनाथ सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने जीत हासिल कर ली है। इससे उत्साहित भाजपा अब मिशन मैनपुरी लोकसभा और रामपुर सीट पर होने वाले उपचुनावों पर जुट गई है। इन दोनों ही सीटों पर 5 दिसंबर को चुनाव होने हैं। मैनपुरी सीट जहां मुलायम के निधन के बाद खाली हुई तो वहीं रामपुर सीट आजम की विधानसभा सदस्यता निरस्त होने के बाद खाली हुई है।

  • अब पढ़िए दोनों पार्टियों की क्या है रणनीति? पहले सपा की…

1- सपा को सिर्फ परिवार पर भरोसा

समाजवादी पार्टी को परिवार पर भरोसा है। यह रणनीति वह मैनपुरी और रामपुर में भी लागू करेगी। सपा की यह रणनीति पूर्व में कामयाब हो चुकी है। पहले मैनपुरी लोकसभा सीट की बात करते हैं। 2014 में मुलायम ने जब मैनपुरी सीट छोड़कर आजमगढ़ की सीट संभाली थी। तब भी उपचुनाव में परिवार के तेजप्रताप यादव को मैनपुरी से उतारा था। तेज प्रताप ने तब 3 लाख से अधिक वोटों से चुनाव जीता था। इससे पहले 2004 उपचुनाव में धर्मेंद्र यादव भी मैनपुरी लोकसभा सीट से चुनाव लड़कर जीत चुके हैं। तब भी मुलायम ने यह सीट खाली की थी। यानी इस बार भी सपा इसी पर भरोसा कर रही है। 2019 में जब मुलायम आजमगढ़ लोकसभा सीट छोड़ मैनपुरी गए तो आजमगढ़ से अखिलेश यादव लोकसभा पहुंचे। हालांकि, 2022 में वह यह सीट छोड़ करहल से विधायक बने। धर्मेंद्र यादव को आजमगढ़ उपचुनाव लड़ाया तो लेकिन वह हार गए। बहरहाल, इसके बावजूद मैनपुरी में परिस्थितियां अलग हैं।

अब रामपुर की ओर चलतें हैं। रामपुर विधानसभा सीट से आजम खान 2017 का चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचे थे। 2019 लोकसभा चुनाव में वह खड़े हुए और जीत दर्ज की। रामपुर उपचुनाव 2022 में ही हुए। सपा ने आजम खान की पत्नी तंजीन फातिमा पर दांव लगाया। भाजपा ने भी घेरेबंदी की। लेकिन, इसके बावजूद वह कामयाब नहीं हो सकी। तंजीन फातिमा तब 79043 वोट पाई और भाजपा प्रत्याशी को 7716 वोटों से हराया।

2- दोनों ही सीटों पर सहानुभूति का सहारा
मैनपुरी लोकसभा सीट हो या फिर रामपुर विधानसभा सीट दोनों ही जगह सपा सहानुभूति को कैश कराना चाहती है। मैनपुरी से मुलायम का जुड़ाव ऐसा है कि यहां सहानुभूति वोट सपा को मिलने की प्रबल संभावना है। ऐसा ही अभी एक दिन पहले गोला उपचुनाव में भी देखा गया था। जहां अरविंद गिरी की मौत के बाद उनके बेटे अमन गिरी को रिकॉर्ड जीत मिली।

इसी तरह रामपुर में भी एकाएक आजम की विधानसभा सदस्यता निरस्त होने के बाद उनका वोटबैंक निराशा है। इसका ठीकरा भी वह भाजपा पर फोड़ते हैं।

अब भाजपा ने क्या तैयारी की, इसे देखते हैं…

1-भाजपा मैनपुरी में लगाएगी जोर
भाजपा के रणनीतिकार भी मानते हैं कि गोला विधानसभा सीट का रिजल्ट मैनपुरी और रामपुर सीट पर बहुत असर नहीं डाल पाएगा। यहां के हालात गोला से अलग हैं। रामपुर विधानसभा सीट मुस्लिम बाहुल्य है। यहां करीब पौने चार लाख वोटर हैं। इसमें से सबसे ज्यादा 80 हजार वोट मुस्लिम हैं। जिनका फायदा सपा को मिल सकता है। इससे पहले 2022 में भी ऐसा हुआ था। भाजपा लाख कोशिशों के बावजूद आजम की पत्नी को विधायक बनने से नहीं रोक पाई थी। इसीलिए भाजपा के रणनीतिकार मानते हैं कि रामपुर की अपेक्षा मैनपुरी में जोर लगाना उचित होगा।

2-यादव परिवार में सेंध लगाने की तैयारी में भाजपा

मैनपुरी में भाजपा यादव परिवार में ही सेंध लगाने की फिराक में है। भाजपा की नजर शिवपाल यादव पर है। वह अगर मान गए तो भाजपा से वह या उनके समर्थन से कोई पिछड़ी जाति का कद्दावर कैंडिडेट वहां सपा को चुनौती दे सकता है। अपर्णा यादव के भाजपा से उतरने पर संशय है। क्योंकि यह सीट मुलायम की है। पूर्व में अपर्णा के पति प्रतीक यादव भी इस सीट पर राजनीति से इनकार कर चुके हैं। ऐसे में अपर्णा यादव के इस सीट से उतरने के चांस कम हैं। इसके बावजूद राजनीति में कुछ कहा नहीं जा सकता है। दरअसल, मैनपुरी लोकसभा में सबसे ज्यादा यादव मतदाता है। इनकी संख्या 4 लाख से भी ज्यादा की है। इसके बाद शाक्य मतदाता लगभग 2.25 लाख के आसपास हैं। ऐसे में यहां भी सपा का पलड़ा भारी है।

3-योगी समेत बड़े नेता मैनपुरी में घेरेंगे अखिलेश को
2019 रामपुर के उपचुनाव में आजम की पत्नी तंजीन की जीत का दायरा इसलिए कम हो गया था कि भाजपा ने घेरेबंदी खूब की थी। खुद सीएम योगी समेत भाजपा के स्टार प्रचारकों ने अपनी ताकत झोंक दी थी। इसके बावजूद आजम के दम पर तंजीन फातिमा ने भाजपा को पटकनी दी थी। यही वजह है कि अबकी बार मैनपुरी में भाजपा अपना जोर लगाएगी।

4-मनो-वैज्ञानिक असर डालेगी मैनपुरी की जीत
दरअसल, सपा के पास मैनपुरी इकलौता गढ़ बचा है। इससे पहले आजमगढ़, इटावा, बदायूं, फिरोजाबाद और कन्नौज पर भाजपा अपना झंडा फहरा चुकी है। इस सीट पर जीत का फायदा भाजपा को 2024 लोकसभा चुनाव में होता दिख रहा है। यही वजह है कि भाजपा इस सीट को जीत कर सपा पर मनो-वैज्ञानिक दबाव बनाना चाह रही है।

गोला विधानसभा उपचुनाव का मैनपुरी में नहीं है असर
गोला विधानसभा उपचुनाव के नतीजों का असर मैनपुरी में नहीं दिखाई दे रहा है। मैनपुरी अभी भी नेताजी के निधन से दुखी दिखाई पड़ रहा है। सपा जिलाध्यक्ष देवेंद्र यादव ने कहा, “मैनपुरी का चुनाव नेताजी के नाम पर ही लड़ा जाएगा। यहां नेताजी के अलावा कोई नहीं जीतता है। जो भी कैंडिडेट सपा से खड़ा होगा। वह उनके आशीर्वाद से जीत ही जाएगा। जब सवाल हुआ कि अब तो नेता जी नहीं रहे तो देवेंद्र यादव ने कहा कि उनका नाम ही काफी है। कार्यकर्ता अभी से तैयारियों में जुट गए हैं।

देशभर में मुलायम नेता जी के नाम से मशहूर रहे, लेकिन मैनपुरी में उनको सभी दद्दा कहते थे। उसकी वजह थी, यहां से 30 किमी दूर उनका गांव सैफई। मुलायम का जुड़ाव शुरू से मैनपुरी से रहा है। 1989 से 2022 तक मैनपुरी से मुलायम ने जिसे भी लोकसभा सीट पर लड़ाया। वह जीता ही है। सपा का गठन होने के बाद मुलायम खुद 1996 में पहली बार मैनपुरी लोकसभा सीट से चुनाव लड़े। तब वह रिकॉर्ड मतों से जीते थे। यह सिलसिला अभी तक जारी रहा है। अब मुलायम के निधन के बाद उनका उत्तराधिकारी कौन होगा। इसका फैसला 5 दिसंबर को होगा?

रामपुर में आजम ने 1977 से चुनाव लड़ने की शुरुआत की थी। पहला चुनाव तो वह हार गए। लेकिन 1980 में पहली बार चुनाव जीते। इसके बाद वह किसी न किसी सदन के सदस्य जरूर रहें। सपा के टिकट पर वह 1996 का चुनाव हारे तो सपा ने उन्हें राज्यसभा का सदस्य बना दिया। वह लगातार रामपुर से चुनाव जीते। 2019 में वह लोकसभा जीत कर संसद पहुंचे लेकिन 2022 चुनाव में वह फिर रामपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़े और विधायक बने। हालांकि, हेट स्पीच मामले में सजा मिलने के बाद ही उनकी विधानसभा सदस्यता को रद्द कर दिया गया।