सामान्य वर्ग में आर्थिक रूप से कमजोर तबके को 10% आरक्षण दिए जाने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने भी सही ठहराया है। 5 न्यायाधीशों में से 3 ने EWS आरक्षण के सरकार के फैसले को संवैधानिक ढांचे का उल्लंघन नहीं माना है। यानी यह आरक्षण जारी रहेगा। चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस रवींद्र भट्ट ने EWS के खिलाफ फैसला सुनाया है, जबकि जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने पक्ष में फैसला सुनाया है।
फैसले में किस जज ने क्या कहा, पढ़िए…
1. जस्टिस दिनेश माहेश्वरी- EWS आरक्षण मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं है। 50% का जो बैरियर है, उसमें से सवर्ण आरक्षण नहीं दिया गया है।
2. जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी- संसद के इस फैसले को सकरात्मक रुप से देखा जाना चाहिए। संविधान ने समानता का अधिकार दिया है। इस फैसले को उसी रूप से देखिए।
3. जस्टिस जेबी पारदीवाला- आरक्षण अनंतकाल तक जारी नहीं रखा जा सकता है। इसे निजी स्वार्थ के लिए इस्तेमाल नहीं होने देना चाहिए। मैं जस्टिस माहेश्वरी और जस्टिस त्रिवेदी से सहमत हूं।
4. जस्टिस रवींद्र भट्ट- आर्थिक आधार पर आरक्षण सभी वर्गों मिलना चाहिए। इसमें SC-ST को शामिल नहीं किया गया है। मैं EWS रिजर्वेशन देने के पक्ष में नहीं हूं।1
जनवरी 2019 में 103वें संविधान संशोधन के तहत शिक्षा और सरकारी नौकरियों में EWS आरक्षण लागू हुआ। तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी DMK सहित कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर इसे चुनौती दी।
हमने 50% का बैरियर नहीं तोड़ा- केंद्र की दलील
केंद्र की ओर से पेश तत्कालीन अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुनवाई के दौरान कहा था कि आरक्षण के 50% बैरियर को सरकार ने नहीं तोड़ा। उन्होंने कहा था- 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने ही फैसला दिया था कि 50% से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए ताकि बाकी 50% जगह सामान्य वर्ग के लोगों के लिए बची रहे। यह आरक्षण 50% में आने वाले सामान्य वर्ग के लोगों के लिए ही है। यह बाकी के 50% वाले ब्लॉक को डिस्टर्ब नहीं करता है।
27 सितंबर को कोर्ट ने सुरक्षित रखा था फैसला
बेंच ने मामले की साढ़े छह दिन तक सुनवाई के बाद 27 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। CJI ललित 8 नवंबर यानी मंगलवार को रिटायर हो रहे हैं। इसके पहले 5 अगस्त 2020 को तत्कालीन CJI एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने मामला संविधान पीठ को सौंपा था। CJI यूयू ललित की अध्यक्षता वाली बेंच ने कुछ अन्य अहम मामलों के साथ इस केस की सुनवाई की।
सवर्णों को आरक्षण संविधान के सीने में छुरा घोंपने जैसा