विमेन ओरिएंटेड फिल्में करना पसंद करती हैं रवीना टंडन:कहा- मेरी फिल्म देखकर पांच लोग भी महिलाओं का सम्मान करें तो मेरा काम करना सफल

रवीना टंडन का कहना है कि साउथ की फिल्में इसलिए बेहतर कर रही हैं क्योंकि वो अपने कल्चर से जुड़ी हुई होती हैं। वहीं हिंदी फिल्मों में अक्सर वेस्टर्न कल्चर देखने को मिलता है। हालांकि रवीना का मानना है हिंदी फिल्म इंडस्ट्री भी अच्छा काम करती है। रवीना का कहना है कि वो हमेशा से ही विमेन ओरिएंटेड फिल्में करना पसंद करती है।

रवीना का मानना है कि अगर उनकी फिल्मों से प्रभावित होकर पांच लोग भी महिलाओं की इज्जत करनी शुरू कर दें तो वो काम सफल मानती हैं। रवीना इन दिनों अपनी अपकमिंग फिल्म ‘पटना शुक्ला’ की शूटिंग में बिजी हैं। हाल ही में उन्होंने अपनी प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ को लेकर दैनिक भास्कर से खास बातचीत की है..

फिल्म ‘केजीएफ 2’ को लेकर आपका एक्सपीरियंस कैसा रहा?

कमाई के मामले में ‘बाहुबली’ के बाद ‘केजीएफ 2’ साउथ सिनेमा की दूसरी सबसे बड़ी फिल्म रही। मेरे लिए बहुत ही खुशी की बात है, मैंने पहले भी साउथ की फिल्में की हैं। साउथ की फिल्में अक्सर अपनी कल्चर से गहरी जुड़ी होती हैं, यही इनकी खासियत है। यही वजह है कि साउथ की ऑडियंस वहां की फिल्म से अपने आप को जोड़ पाती है।

वहीं अगर हिंदी फिल्मों की बात करें तो वो ज्यादातर वेस्टर्न कल्चर से प्रभावित रहती है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हमारी फिल्में कामयाब नहीं होती। साउथ में काफी फिल्में रिलीज होती हैं लेकिन हम सुनते सिर्फ एक दो फिल्मों के बारे में ही हैं। अगर ग्लोबल लेवल के लिहाज से बात करें तो हमें सभी फिल्म इंडस्ट्रीज को एक ही मानना चाहिए। इसमें भेदभाव नहीं करना चाहिए।

अब खुद में क्या बदलाव महसूस करती हैं?

मैं जैसी पहले थी आज भी वैसी ही हूं। बस विश्वास कम लोगों पर ही करती हूं। पहले लोगों की बातों पर जल्दी विश्वास कर लेती थी, लेकिन अब मैं चीजों और किसी समस्या पर गंभीरता से विचार करके और बहुत ही सोच-समझकर ही बोलती हूं।

रुद्रा फाउंडेशन के बारे में जरा बताइए?

मैं काफी अरसे से सोशल वर्क करती आ रही थी, लेकिन ऐसा कोई स्ट्रांग बेस नहीं था, जिसके जरिए यह काम कर सकूं। लेकिन फिर इस संस्था रुद्रा फाउंडेशन को हमने बनाया ताकि ज्यादातर लोगों के पास मेरा पहुंचना आसान हो जाए। हमारे फाउंडेशन ने कोविड के टाइम पर भी सक्रियता से काम किया है। दिल्ली में हमने जरूरतमंदों के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर्स के दो से तीन ट्रक्स भेजे थे।

पहले के मुकाबले अब आप कैसी स्क्रिप्ट चुनती हैं ?

1995-96 के दौरान भी मैं उस तरह की फिल्म करना पसंद करती थी, जो मुझे लगता था वुमन ओरिएंटेड हो। जैसे अंदाज अपना अपना, मोहरा और इम्तिहान को ले लीजिए। ये सभी फिल्में वुमन ओरिएंटेड ही थीं। इन सभी फिल्मों में मैं सेंटर कैरेक्टर थी।

मैंने फिल्मों के बारे में सोचना शुरू कर दिया कि मेरे अंदर जो बात चल रही है, उसे बाहर कैसे लाऊं? इसलिए मैं मानती हूं कि अगर मेरी वजह से 5 लोगों ने भी इस तरह की फिल्में देखीं और फिल्में देखने के बाद उन्हें लगा कि महिलाओं के लिए सम्मान होना चाहिए और अगर ऐसे 5 लोग भी दूसरे 5 लोगों को ये बात सिखा दें तो मेरे लिए ये सारी फिल्में सफल हैं।

आज महिलाएं हर फील्ड में आगे आ रही हैं, क्या ऐसे में महिलाओं को लेकर समाज में सोच बदली है?

हां बिल्कुल मेरे हिसाब से आज महिलाओं को लेकर समाज में सोच तो जरूर बदली है। आज महिलाएं हर फील्ड में तेजी से आगे बढ़ रही हैं और देश का नाम रोशन कर रही हैं। अब हमारे ही सेट पर देख लीजिए, हमारे फिल्म की डीओपी (डायरेक्टर ऑफ फोटोग्राफी) एक महिला ही हैं और वे इस फील्ड में शानदार काम कर रही हैं। यह बात बिल्कुल सही है कि हर क्षेत्र में महिलाएं उभर कर आगे आ रही हैं, जो मेरे हिसाब से हमारे देश के लिए ये बहुत ही बढ़िया बात है।

आज महिलाएं हर फील्ड में आगे आ रही हैं, क्या ऐसे में महिलाओं को लेकर समाज में सोच बदली है?

हां बिल्कुल मेरे हिसाब से आज महिलाओं को लेकर समाज में सोच तो जरूर बदली है। आज महिलाएं हर फील्ड में तेजी से आगे बढ़ रही हैं और देश का नाम रोशन कर रही हैं। अब हमारे ही सेट पर देख लीजिए, हमारे फिल्म की डीओपी (डायरेक्टर ऑफ फोटोग्राफी) एक महिला ही हैं और वे इस फील्ड में शानदार काम कर रही हैं। यह बात बिल्कुल सही है कि हर क्षेत्र में महिलाएं उभर कर आगे आ रही हैं, जो मेरे हिसाब से हमारे देश के लिए ये बहुत ही बढ़िया बात है।