भारत जोड़ो यात्रा में आपको कई बार राहुल गांधी आम लोगों से मिलते दिख रहे हैं। कभी वे किसी बच्चे के साथ होते हैं, कभी किसी स्टूडेंट के साथ, तो कभी सफाईकर्मी के साथ। दरअसल, यात्रा में जो दिख रहा है, वैसा सब कुछ इतना ईजी नहीं है। जैसा दिखता है, वैसा होता बिल्कुल नहीं है। राहुल अचानक किसी से नहीं मिलते और न ही रास्ते में खड़े किसी व्यक्ति को मिलने बुलाते हैं।
यात्रा के दौरान कौन, कब मिलेगा, कैसे मिलेगा और कहां खड़ा होगा? ये सब पहले से तय होता है। मिलने वालों की पूरी जांच होती है। यह सब तय करती है राहुल गांधी की मैनेजमेंट टीम। राहुल से मिलने वाले व्यक्ति एक दिन पहले ही तय हो जाते हैं।
मेडिकल स्टूडेंट्स को 2 दिन पहले मिला अप्रूवल
29 नवंबर को उज्जैन पहुंचने से पहले निनोरा में मेडिकल स्टूडेंट्स राहुल के साथ चले। इन्हें राहुल की टीम से 2 दिन पहले ही अप्रूवल मिला था। पहले सुबह 6 बजे से 8 बजे तक सिर्फ चलते रहे। थोड़ी देर के लिए निराश भी हो गए। इन्हें लगा कि पता नहीं राहुल को हम लोग याद हैं भी या नहीं। 2 घंटे बाद इन तक खबर आई कि अब टी ब्रेक के बाद ये राहुल के साथ चल सकते हैं। उन्हें राहुल के सुरक्षा घेरे में पहले से बुलवा लिया गया।
इन स्टूडेंट्स ने राहुल को बताया कि मेडिकल एजुकेशन की पढ़ाई के क्या हाल हैं? वे एक साल की पढ़ाई पूरी कर चुके होते हैं, लेकिन एग्जाम नहीं होते। जब दूसरे साल की पढ़ाई कर रहे होते हैं, तब फर्स्ट ईयर के पेपर होते हैं। कभी पेपर लीक हो जाते हैं, तो कभी उनकी आंसरशीट टॉयलेट में मिलती है।
किसी नेता की नहीं, बस राहुल की चलती है
इंदौर में राहुल के कैंप में अपने पापा के साथ पहुंची तनवी भी राहुल से मिलने की जिद कर रही थी, लेकिन केजी टू में पढ़ने वाली इस बच्ची को ये पता नहीं था कि राहुल से मिल पाना इतना आसान भी नहीं है। तनवी के पापा कैंप के बाहर नेताओं से सिफारिश करते रहे, लेकिन कोई उन्हें राहुल से मिलाने का पक्का भरोसा नहीं दिला पा रहा था। फिर राहुल के कानों तक बात पहुंचाई गई। राहुल ने हामी भरी। यात्रा कुछ कदम आगे बढ़ी ही थी कि राहुल ने हाथों में गुल्लक लिए तनवी को देखा और उसे गोद में उठा लिया। इस फोटो को सबने देखा है।
सेल्फी लेने की मनाही, फोटो भी मैनेजमेंट टीम जारी करती है
राहुल के नजदीक पहुंचने के लिए हर किसी को सुरक्षा जांच से होकर गुजरना पड़ता है। राहुल की सुरक्षा में लगे CRPF के जवान मिलने वाले से उसके मोबाइल फोन और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस ले लेते हैं। यहां तक कि राहुल के साथ कोई सेल्फी भी नहीं ले सकता। राहुल के साथ फोटो भी उनकी टीम ही शूट करती है। फिर राहुल उन्हें एक स्कैनर प्रिंट देते हैं, ताकि वे राहुल के साथ ली गई फोटो उसमें से अपलोड कर सकें। अब तक की 83 दिन की यात्रा में डिवाइस साथ ले जाने की परमिशन कुछ चुनिंदा सोशल मीडिया हैंडलर को मिली है।
ऐसा नहीं है कि राहुल मीडिया पर्सन से मिल नहीं रहे हैं। उन्होंने मीडिया के साथियों को अपने साथ पैदल चलने के लिए कहा है, लेकिन वे किसी चैनल की ID पर बात नहीं कर रहे हैं। वे पत्रकारों से बात कर रहे हैं। उनके मन की थाह ले रहे हैं, लेकिन रिकॉर्डेड बयान नहीं दे रहे हैं। इसके लिए उन्होंने रणनीति बनाई है कि वे जिस भी प्रदेश में जाएंगे, वहां एक बार व्यवस्थित ढंग से प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे।
राहुल टी ब्रेक कहां लेंगे, पहले से तय होता है
दैनिक भास्कर की टीम ने राहुल की यात्रा को बहुत करीब से देखा है। उनके साथ, उनकी यात्रा के आगे और पीछे भी चले हैं। राहुल हमें तेज कदमों से चलते हुए दिखाई देते हैं, लेकिन उन्हें और उनके सुरक्षाकर्मियों और यात्रा मैनेजमेंट टीम को पता होता है कि अगला ब्रेक कहां होना है। राहुल के पहुंचने से पहले ही वहां एक मिनी पिकअप वैन रुकती है। उसमें कुर्सियां, सेंटर टेबल, नाश्ता और डिस्पोजल प्लेट्स रखी होती हैं।
बाकायदा एक गैस स्टोव भी होता है, ताकि राहुल के लिए चाय या कॉफी बन सके। कुछ थर्मस भी होते हैं, ताकि राहुल बातचीत में ज्यादा समय लगाएं, तो भी उन्हें गर्म कॉफी सर्व की जा सके। राहुल मीठी कॉफी नहीं पीते। राहुल के साथ भीतर जाने वालों को भी यदि मीठी चाय या कॉफी पीनी है, तो अलग से शुगर ऐड करनी पड़ती है। राहुल के लिए यहां भी नाश्ता उनकी टीम लेकर पहुंचती है।
नाश्ते वाली जगह पर टेंट भी लगाया जाता है
सोमवार को उज्जैन पहुंचने से पहले रास्ते में राहुल नौशाद खान के फार्म हाउस पर ठहरे थे। यहां भी वही हुआ। राहुल की टीम के लोग एक मिनी पिकअप में कुर्सियां और नाश्ते का पूरा सामान लेकर पहुंचे थे। राहुल के लिए एक अलग टेंट भी लगाया गया था, लेकिन राहुल ने खुले में दिग्विजय सिंह और अनिल सदगोपाल के साथ नौशाद से बात की और वहीं पर नाश्ता किया।
राहुल की यात्रा प्रबंधन देखने वाली इस टीम के पास गहरे रंग की फाइबर की कुर्सियों का पूरा सेट है। यही कुर्सिंयां हर जगह लगती हैं। हालांकि, राहुल की टीम इस इंटरनल मैनेजमेंट का कभी खुलासा नहीं करती।
बताया यही जाता है कि राहुल यहां टी ब्रेक के लिए रुके हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है, ताकि जहां राहुल ठहरने वाले हैं। उन घर मालिकों को इतने सारे लोगों के एक साथ आने से व्यवस्था करने में दिक्कत न हो। दूसरी बड़ी वजह राहुल की सुरक्षा का प्रोटोकाॅल होता है।
बड़े मंच देखकर भी नहीं अट्रैक्ट होते राहुल
कई बार कई लोग निराश भी हो जाते हैं। राहुल से मुलाकात के लिए लोग कई तरह की तरकीब भिड़ाते हैं। बड़े-बड़े मंच बना लेते हैं। कई तरह की झांकियां बनाकर उन्हें रिझाते हैं। बीते दिनों एक गांव में ग्रामीणों ने सड़क किनारे एक टेबल पर स्व. राजीव गांधी की फोटो पर माला डालकर रखी थी। उन्हें उम्मीद थी कि राहुल पिता की फोटो देखकर जरूर रुकेंगे, लेकिन राहुल की तेज चाल, भीड़ और सुरक्षा के घेरे में उन्हें ये कुछ नजर नहीं आया।
इंदौर के रास्ते में बड़वानी से आए आदिवासी कलाकार पारंपरिक वेशभूषा में निराश खड़े थे। उन्हें उम्मीद थी कि राहुल आएंगे। उनके साथ डांस करेंगे, लेकिन ऐसा संभव नहीं हुआ। एक महिला ने हमसे कहा कि वे सिर्फ हाथ हिलाकर आगे बढ़ गए।
यदि वे रुकते तो उन्हें ज्यादा अच्छा लगता। खंडवा से इंदौर मार्ग पर निमाड़ी कलाकारों ने मंच पर गणगौर नृत्य की प्रस्तुति रखी थी, लेकिन राहुल यहां भी नहीं पहुंचे। कलाकारों का कहना था कि यदि राहुल वहां आए तो ठीक, नहीं भी आए तो उन्हें कोई गम नहीं।
इस यात्रा में राहुल सिर्फ लोगों की बात सुनने के लिए निकले हैं…
राहुल से कौन मिल सकता है और कौन नहीं? ये रिपोर्ट बनाने के लिए हमने उनके साथ केरल से चल रहे कुछ पत्रकारों से भी बात की। शुरुआती दो दिनों में उनसे न मिल पाने वालों की निराशा देखकर लगा कि राहुल से मिलना टेढ़ी खीर है। राहुल अब भी VIP सिंड्रोम के शिकार हैं। मैंने कुछ पत्रकारों का मन टटोलने की कोशिश की।
नेशनल न्यूज चैनल की पत्रकार से जवाब मिला कि यदि आप ऐसा सोच रहे हैं, तो इसका मतलब ये है कि आप कभी यात्रा में शामिल ही नहीं हुए हैं। राहुल खुद भी कहते हैं कि इस यात्रा में राहुल गांधी बहुत पीछे छूट चुका है। अब तो वे सिर्फ लोगों की बात सुनते हैं। हां, सुनने और समझने का तरीका जरूर बदल गया है