गोली मारो’ कहने वाले आजाद:उमर खालिद के पिता बोले- बरी होकर बेटा क्यों जेल में, बहन की शादी में आना भी मुश्किल

मैं अक्सर सोचता हूं, यह अंधेरी सुरंग कितनी लंबी है? क्या कोई रोशनी नजर आ रही है? क्या मैं अंत के करीब हूं, या मैं अभी बीच में ही हूं? क्या मेरी परीक्षा अभी शुरू ही हुई है? पिछले दो साल से मैं हर रात यह घोषणा सुन रहा हूं- ‘नाम नोट करें, इन बंदी भाइयों की रिहाई है’ और मैं उस दिन का इंतजार और उम्मीद करता हूं जब मैं इस लिस्ट में अपना नाम सुनूंगा।’

12 सितंबर 2022 को जेल से लिखी गई एक चिट्ठी में उमर खालिद ने ये उम्मीद जाहिर की थी। हालांकि, 2 साल, 3 महीने पूरे होने वाले हैं और फिलहाल उसके बाहर आने की कोई संभावना नहीं है।

उमर खालिद ने अपनी बहन की शादी में शामिल होने के लिए दिल्ली की एक अदालत से दो सप्ताह की अंतरिम जमानत मांगी है, जिस पर 12 दिसंबर को फैसला सुनाया जाना है। उमर पर दिल्ली दंगों की साजिश रचने का आरोप है। इन दंगों में 53 लोगों की मौत हो गई थी और 700 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।

यही वो बयान है, जिसकी वजह से JNU के पूर्व छात्र उमर खालिद जेल में हैं। 14 सितंबर 2020 को दिल्ली दंगे से जुड़े दो मामलों में दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ने उमर को गिरफ्तार किया था। इस बयान का जिक्र गृहमंत्री अमित शाह ने संसद के अपने भाषण में भी किया। उन्होंने दावा किया कि 17 फरवरी को ये भाषण दिया गया था और 23-24 फरवरी को दंगा हो गया।

इन मामलों में से एक में उमर को 3 दिसंबर को बरी कर दिया गया है। फिलहाल दूसरे केस में UAPA (गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम) लगे होने की वजह से वे जेल में ही हैं। एडिशनल सेशन जज पुलस्त्य प्रमाचला ने बरी करने का फैसला सुनाते हुए कहा- ‘उमर के खिलाफ पुलिस के पास कोई सबूत नहीं है। सिर्फ शक के आधार पर किसी को अनंत काल के लिए जेल में नहीं रखा जा सकता।’

लोगों के लिए मैं देशद्रोही का पिता
बाटला हाउस की गलियों से गुजरते हुए मैं जाकिर नगर में दाखिल होता हूं। जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी के पास मौजूद ये इलाका पहले यमुना का रिवर बेड था। अब यहां बेहद घनी आबादी, बेहद छोटी-छोटी गलियों और छोटे-छोटे घरों में रहती है। ये इलाका 2008 में बाटला हाउस एनकाउंटर के बाद चर्चा में आया और फिर शाहीन बाग प्रोटेस्ट के लिए दुनिया भर में जाना गया।

उमर खालिद के पिता कासिम रसूल इलियास से मिलने मैं उनके घर जाना चाहता था, लेकिन घर में बेटी की शादी की तैयारियां चल रही हैं। रिश्तेदार आए हुए हैं तो वे अपने दफ्तर में मिलने बुला लेते हैं। कहते हैं- ’वहीं आराम से बात हो पाएगी।’

मैं एक छोटे से फ्लैटनुमा दफ्तर में दाखिल होता हूं। सामने रसूल इलियास बैठे हैं, चेहरे पर थकान है। उनकी सबसे पहली चिंता यही है कि क्या उमर अपनी बहन की शादी में शामिल हो पाएगा।

दिल्ली दंगे के वक्त अनुराग ठाकुर और कपिल मिश्रा जैसे नेता, जिन्होंने ‘देश के गद्दारों को, गोली मारो ** को’ जैसे नारे लगाए थे। वे आज भी खुलेआम घूम रहे हैं। उन पर FIR तक दर्ज नहीं की गई। उमर खालिद CAA के खिलाफ खुलकर बोल रहा था, इसलिए उस पर इतनी सख्त धाराओं में केस बनाया गया।’

उमर के केस की कहानी: FIR और गवाह
उमर पर लगे आरोपों को रसूल बेबुनियाद बताते हैं। मैं जब इस मामले में पुलिस की FIR देखता हूं पता चलता है कि उमर को 6 मार्च को दायर FIR संख्या 59/2020 के तहत गिरफ्तार किया गया था। उस पर दो समुदायों के बीच नफरत फैलाने, हिंसा भड़कने से हुई मौत, धन उगाहने और षडयंत्र करने के आरोप हैं।

उस पर दमनकारी गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (UAPA) की चार धाराओं, हत्या और दंगे से लेकर अतिक्रमण से संबंधित इंडियन पीनल कोड की 18 धाराओं, सार्वजनिक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम, 1984 की दो धाराओं और शस्त्र अधिनियम, 1959 की दो धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं।

उमर को एक अनाम मुखबिर के बयान के आधार पर आरोपी बनाया गया है। ये बयान क्राइम ब्रांच के नारकोटिक्स यूनिट के सब इंस्पेक्टर अरविंद कुमार को मिला था। FIR में लिखा है कि इस अनाम मुखबिर ने उमर और दानिश नाम के एक शख्स और दो अन्य लोगों की सीक्रेट मीटिंग कराईं थी।

पुलिस के दावे के अनुसार नारकोटिक्स यूनिट का एक मुखबिर इन ‘गुप्त बैठकों’ में शामिल रहा, जिनमें ‘दिल्ली में दंगा भड़काने की सोची-समझी साजिश’ रची जा रही थी। UAPA लगाने का आधार यही आरोप है। 3 दिसंबर में जिस मामले में जमानत मिली, उसमें भी इकलौता गवाह दिल्ली पुलिस का कॉन्स्टेबल है।

रसूल बताते हैं कि उमर पर दो केस हैं- पहला FIR 101, दूसरा FIR 59 है। ये दोनों ही मामले फरवरी 2020 में दिल्ली में हुए दंगों से जुड़े हैं। दूसरे केस में UAPA और आर्म्स एक्ट लगे हैं, इसलिए इसमें निचली अदालत और हाईकोर्ट दोनों जगह से बेल नहीं मिली।

उमर की रिहाई क्यों नहीं हो पा रही है, क्या उम्मीद है?
रसूल बिना रुके बोलते हैं- ’FIR 59 वाले केस में पुलिस ने 28 धाराएं लगाई हैं। इसमें UAPA के अलावा कई सख्त धाराएं हैं। आम धाराओं में तो पुलिस को साबित करना होता है कि आरोपी ने गुनाह किया है, लेकिन UAPA में आरोपी को साबित करना होता है कि वो निर्दोष है। पुलिस ने पहली चार्जशीट साढ़े 17 हजार पेज की बनाई है। इसके बाद पुलिस ने सप्लीमेंट्री चार्जशीट भी बनाई है।

पहली चार्जशीट में उमर का नाम नहीं है। उमर खालिद को दिल्ली दंगों के करीब 6 महीने बाद सितंबर 2020 में गिरफ्तार किया गया। पुलिस ने जो गवाह तैयार किया है, वह गिरफ्तारी से एक महीने पहले मिला था। जो भी गवाह पुलिस ने तैयार किए हैं, वे पूरी तरह फेक हैं। पुलिस ने अब तक उनके नाम नहीं दिए हैं। मुझे भरोसा है कि दूसरे केस में भी कोर्ट उमर को बेकसूर मानेगा, लेकिन इस सब में उमर की जिंदगी खराब हो रही है।’ ये कहते हुए रसूल को निराशा घेर लेती है, वे उठकर पानी पीने लगते हैं।

जेल में 800 किताबें पढ़ीं, कैदियों को अंग्रेजी सिखा रहा
रसूल से उमर के बारे में सवाल करता हूं तो शांति फिर भंग होती है। वे बताते हैं- ’उसकी पूरी जिंदगी संघर्ष से भरी रही है। उसने अपनी PhD झारखंड के आदिवासियों के अधिकारों और भेदभाव के मुद्दे पर की थी। भारत छोड़कर विदेश पढ़ने नहीं गया, कभी पासपोर्ट तक नहीं बनवाया।

उसे दो विदेशी यूनिवर्सिटी से स्कॉलरशिप मिली, लेकिन मना कर दिया। सरकार अगर सोचती है कि उमर को 2 साल जेल में डालकर उसे हरा देगी तो ऐसा सोचना गलत है। उमर हमेशा अपनी मां से यही कहता है- आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है।

उमर बचपन से ही ऐसा था, गलत देखता था तो मां के पास आकर उसे बताता था। 2008 में जब बाटला हाउस एनकाउंटर हुआ तो उसने उमर को हिलाकर रख दिया। उमर ने वैसे भी कभी शौकपसंद जिंदगी नहीं जी। खाने में जो दे दो, खा लेगा। जमीन पर सोने का कह दो, सो लेगा। इसलिए हमें ये पता था कि जेल की जिंदगी से उसके हौसलों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

उमर ने 2 साल के दौरान करीब 800 किताबें पढ़ ली हैं। उसने जेल में दूसरे कैदियों को इंग्लिश सिखाई और इससे कुछ कैदी उनके दोस्त बन गए हैं। उसके जेल प्रशासन में भी लोगों से अच्छे रिश्ते हैं। हम उमर को कपड़े, कंबल भेजते हैं तो वो दूसरे जरूरतमंद कैदियों को बांट देता है।’

‘एंटी नेशनल’ के परिवार के चैलेंज
रसूल बताते हैं- ’साल 2016 में जब JNU विवाद सामने आया, तब पूरा मीडिया उमर के ऊपर टूट पड़ा। उमर पर आरोप लगाया गया कि वह दो बार पाकिस्तान गया और उसके आतंकियों से रिश्ते हैं। मुझे बैन संगठन सिमी (स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया) का सरगना बता दिया। 2016 के देशद्रोह के मामले में कोई कार्रवाई आगे नहीं बढ़ी। दिल्ली दंगे वाले दूसरे केस में भी यही होगा। लोग अब मुझे कहते हैं ‘ये उमर खालिद के पिता हैं’। मुझे उसी के नाम से पहचानते हैं।’

रसूल आरोप लगाते हैं- ’उमर खालिद पर इतने सख्त केस इसलिए बनाए गए हैं, क्योंकि वो एक मुस्लिम परिवार से आता है। अगर वो मुसलमान न होता तो शायद ऐसा न होता। पूरे देश में हिंदू-मुस्लिम के बीच बंटवारा बढ़ रहा है।’

उमर खालिद के पिता को घर जाना है, घर में शादी है तो तैयारियां हैं और बेटा भी नहीं है। मैं निकलने से पहले एक आखिरी सवाल पूछता हूं, क्या उमर कभी इस्लामिक कट्टरपंथ के खिलाफ बोला? रसूल इसका कोई सीधा जवाब नहीं देते।

कहते हैं- ’घर पर जब भी बातचीत होती थी तो उसका जोर बहनों की पढ़ाई पर होता था। उमर की बहनें भी सेंट स्टीफंस जैसे टॉप कॉलेज से पढ़ी हैं। मैं प्रैक्टिसिंग मुसलमान हूं। मैं चाहता था कि उमर भी ऐसा ही बने, लेकिन वह नहीं मानता था। हालांकि, उमर ने कभी गलत काम नहीं किया।’