वाबी-साबी’ अप्रोच से करें एग्जाम की तैयारी:जिस सब्जेक्ट में आप स्ट्रॉन्ग हैं, उसे और मजबूत करें

वाबी-साबी

बहुत प्रसिद्ध जापानी फिलॉसफी रही है वाबी-साबी। अर्थ समझाने के लिए ढेरों किताबें लिखी जा सकती है।

एक लाइन में समझना है तो जो नेचुरली जैसा है उसे वैसा ही स्वीकार करना, फिर चाहे वह कोई व्यक्ति हो, कोई वस्तु हो, आपकी कोई कमी हो; उसी में ब्यूटी और शक्ति को देखना और उसे परफेक्ट बनाना।

एक कहानी से समझिए

A) एक छोटा और सुखी परिवार था: माता, पिता और उनका 4 वर्षीय बेटा।

B) दुर्भाग्य से परिवार एक बार कार दुर्घटना का शिकार हो गया। माता-पिता को कोई बड़ी चोट नहीं आई लेकिन प्यारे बेटे का सीधा हाथ काटना पड़ा। माता-पिता ने बड़ी मुश्किल से इसे नियति मान स्वीकार किया।

C) लेकिन पिता तब दुविधा में पड़ गए जब बेटे ने जूडो सीखने की इच्छा जताई। पिता की चिंता एक हाथ के साथ जूडो सीखने को लेकर थी। फिर भी, पिता ने कहा, ओके अपने लिए कोई जूडो मास्टर ढूंढ लीजिए, जो आपको सिखा सके।

D) अगले कुछ दिन बेटा शहर के कई मास्टर्स के पास गया लेकिन उसका एक हाथ न देख कर किसी ने भी उसे सिखाना स्वीकार नहीं किया।

E) एक दिन बहुत आग्रह करने पर एक मास्टर इस शर्त पर बेटे को जूडो सिखाने पर राजी हुआ कि वह पूरी ट्रेनिंग के दौरान उससे जैसा बोला जाएगा वैसा ही करेगा और कोई प्रश्न नहीं करेगा।

F) जूडो ट्रेनिंग शुरू हो गई, मास्टर ने बेटे को एक दांव सिखाया और कहा इसकी प्रैक्टिस करो, दिन हफ्तों में बदले और हफ्ते महीनों में जब भी बेटा मास्टर के पास जाता, मास्टर उसे उसी दांव की प्रैक्टिस करने को कह देता।

G) बेटा अंदर से निराश ही था क्योंकि वो समझने लगा की मास्टर बला टाल रहे हैं, लेकिन प्रश्न ना करने की शर्त के कारण वह कुछ भी नहीं बोल पाया।

H) खैर, करीब दो साल बाद प्रतियोगिता का दिन आया और मास्टर की टीम में एक खिलाडी कम था तो उन्होंने बेटे को भी प्रतियोगिता में उतारा। बेटा बहुत घबराया और उसे अंदर ही अंदर मास्टर पर बहुत गुस्सा आया कि सिखाया तो कुछ है नहीं।

I) प्रतियोगिता शुरू हुई और पहले राउंड में बेटे को बुरी तरह हार मिली।

J) मास्टर ने बेटे को जो दांव सिखाया था उसे उपयोग करने की सलाह दी। अगले राउंड में बेटे ने वही दांव चलना शुरू किया जिसमें वह अत्यधिक फोकस्ड प्रैक्टिस के कारण सबसे अधिक पारगंत बन चुका था, और आश्चर्यजनक रूप से वह जीतने लगा।

K) प्रतियोगिता जीतने के बाद बेटा मास्टर के पास गया, और पूछा कि ये बताइए की क्या मुझे मेरे प्रतिद्वंदी ने मेरे अपाहिज होने के कारण दया खाकर जीतने दिया?

L) इस पर मास्टर फाइनली मौन तोड़ते हैं और बेटे को बताते हैं नहीं यदि ऐसा होता तो पहले राउंड में उसकी इतनी पिटाई नहीं होती।

M) दरअसल बात यह थी कि मास्टर ने बेटे को जो दांव सिखाया था उसको तोड़ने का काउंटर दांव यह था कि प्रतिद्वंदी को उसका सीधा हाथ पकड़ कर पटकनी खिलाई जाए, लेकिन क्योंकि बेटे का सीधा हाथ था ही नहीं ऐसा संभव नहीं हो पा रहा था और वह राउंड पर राउंड जीतता गया।

परफेक्टली इम्परफेक्ट बनिए

यदि आप के अंदर दुनिया के स्थापित मानदंडों के अनुसार कोई कथित इम्परफेक्शन है, तो हो सकता है उसमें कुछ शक्ति छुपी हो, उसे पहचानिए, और अपनी उस इम्परफेक्शन को ही परफेक्ट बनाइए, सफलता आप के कदम चूमेगी।

आप को लगान फिल्म का ‘कचरा’ याद होगा जिसकी उंगलियां ‘पोलियो’ के कारण टेढ़ी-मेढ़ी थीं (या स्थापित मानदंडों के अनुसार इम्परफेक्ट), लेकिन गेंद को आश्चर्यजनक रूप से घुमाने के लिए परफेक्ट।

फिल्म में यह कैरेक्टर भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा रहे प्रसिद्द स्पिनर ‘बी चंद्रशेखर’ से प्रेरित था, उनकी उंगलियों में भी पोलियो के कारण समस्या थी।

इसका उपयोग कॉम्पिटिटिव एग्जाम्स की तैयारी में कैसे

1) SWOT: स्ट्रेंथ, वीकनेस, अपॉर्चुनिटी एंड थ्रेट एनॅलिसिस करे। मतलब अपनी कमजोरियों और ताकत का पता लगाएं।

2) फिर वाबी-साबी फिलॉसफी के अनुसार अपने आप को ज्यादा बदले बिना, अपनी कमजोरियों को मैनेज करें और ताकत वाले क्षेत्र को बहुत अच्छा बना ले।

3) उदाहरण के लिए आप का मैथ्स अच्छा और इंग्लिश खराब, तो आप इंग्लिश को पास होने के स्तर तक ठीक कर लें और उससे होने वाले अंकों की कमी को मैथ्स में बहुत अच्छा बनकर पूरा करें।

4) ऐसा करने से आप कम समय और ऊर्जा से अधिक रिजल्ट पा सकेंगे।

5) सभी क्षेत्रों में परफेक्ट बनने की कोशिश न करें।