टीनएज बच्चों और पेरेंट्स के बीच अनबन के 3 कारण:हार्मोनल चेंज, प्राइवेसी की मांग

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अचानक से बदलाव

मेरे एक परिचित का किशोरवय लड़का अचानक कुछ महीनों से बहुत अधिक गुस्सा करने लग गया। पेरेंट्स कुछ भी बोलते वह भड़क जाता। एक बार तो गुस्से में घर छोड़ कर चला गया। क्या आपने भी अपने परिवार में या आसपास इस तरह की स्थिति देखी है?

ऐसा क्यों होता है कि तेरह, चौदह वर्ष की उम्र तक मां-पिता की आंखों का तारा, उनकी हर बात मानने वाला बच्चा अचानक क्रांतिकारी हो जाता है? उसकी प्यारी शरारतें गुस्से और बहस में बदल जाती है, वे मां-पिता का साथ पसंद नहीं करते, उनके साथ घूमने जाना उन्हें पसंद नहीं आता, माता-पिता द्वारा पूछे गए सीधे सच्चे सवाल भी उन्हें रोका-टोकी लगने लगते हैं, उनके द्वारा दी गई राय उन्हें पसंद नहीं आती और वे मां-पिता की बताई हुई बात को करने के अलावा दुनिया का कुछ भी काम करने को तैयार होते हैं!

3 बड़े कारण

1) यहां के हम सिकंदर: स्वतंत्र पहचान

किशोर विद्रोह एक चिरकालिक कहानी है, हालांकि उसके स्वरुप अलग रहे हैं।

अगली जेनरेशन कई मायनों में पिछली जनरेशन से अलग होती है, इसे ही जनरेशन गैप भी कहा जाता है। जब बच्चे किशोरावस्था में प्रवेश करते हैं तो वे धीरे-धीरे माता-पिता पर अपनी आत्मनिर्भरता को भी छोड़ रहे होते हैं, जो उनके एक व्यस्क व्यक्ति बनने के विकास के लिए आवशयक कदम है। स्वतंत्र पहचान इसी प्रक्रिया की एक कड़ी है। अब क्योंकि किशोर अपनी स्वतंत्र पहचान के लिए प्रयासरत है और पेरेंट्स उससे अपने प्रभाव का उपयोग करने, या किशोर की स्वत्रन्त्र पहचान को दबाने की कोशिश करें तो उन्हें बुरा तो लगेगा ही।

यही कारण है कि दोस्तों के सामने ओवरप्रोटेक्टिव या सिम्पली कन्सर्नड मां भी बच्चों को शर्मिंदगी जैसी लगती है। पिता को तो खैर किशोरवय बच्चे उतना शामिल नहीं ही करते हैं। कुछ माता-पिता अपने अधिकार को बनाए रखने के लिए किशोर विद्रोह पर रोक लगाने की कोशिश करते हैं और कुछ बच्चों से दूरियां बना लेते हैं, दोनो ही सही नहीं हैं। पहले तरीके से जहां किशोरों में असंतुष्टि बढ़ती है वहीं दूसरी से दूरियां। जरूरत किशोरों की दुनियां को समझ कर पॉजिटिव कम्युनिकेशन बनाने की है।

2) पहला नशा, पहला खुमार: हार्मोनल परिवर्तन

यही वह समय होता है जब बच्चे में हॉर्मोन्स संबंधी परिवर्तन भी होते हैं जो निश्चित रूप से बच्चे के व्यवहार को प्रभावित करते हैं।

सेलिब्रिटी रोल मॉडल की ख्वाहिश में, लड़कियां खुद को पतला होने के लिए और लड़कों को अधिक मस्कुलर होने के लिए प्रेरित होते हैं। तो लड़कियां हेल्थ क्लब और ब्यूटी पार्लर जाने की मांग कर सकती है और लड़के जिम ज्वाइन करने की। दोनों नए, अधिक फैशनेबल कपड़े पहनने का दबाव महसूस कर सकते हैं।

माता-पिता को इसे गंभीरता से लेना चाहिए और भले ही आप इन मांगों को पूरा ना करें उनकी इन बातों का मजाक या इस पर उपदेश हरगिज ना दें। अच्‍छा ना दिखने की नेगेटिव फीलिंग, आमतौर पर किशोरों को उनकी सुंदरता और आत्म-संदेह करने का कारण बनती हैं।

पिता ये समझें कि मेल हॉर्मोन टेस्टोस्टेरोन के रिलीज के साथ अब आपका बेटा डेफिनेटली वैसा नहीं रहने वाला जैसा इसकी रिलीज के पहले था। यही बात किशोरियों में फीमेल हॉर्मोन एस्ट्रोजेन के रिलीक के कारण सत्य है। बेचारे बच्चों को खुद अंदाजा नहीं होता की उनकी दुनिया बदल गई है। इसी कारण बच्चों के मूड स्विंग्स की वजह से छोटी-छोटी बातों पर उनका बदला हुआ व्यवहार कई बार पेरेंट्स को परेशान कर के रख देता है।

3) कुछ राज है, कुछ खास है: प्राइवेसी की दरकार

किशोर अक्सर माता-पिता से अलग रहने और करने की मांग करते हैं, वे घर में एक अलग कमरे की मांग कर सकते हैं, फॅमिली फंक्शन्स या फॅमिली आउटिंग्स पर जाने के बजाय घर पर अकेले रहना पसंद कर सकते हैं।

किशोरों के लिए यह एकांत अपने समय को स्वायत्तता के साथ प्रयोग करने, आत्मनिरीक्षण के लिए समय निकालने, उनके मूड को नियंत्रित करने और उनकी पहचान विकसित करने की अनुमति देता है।

किशोरों द्वारा, किसी पार्टी में जाने की अनुमति से माता-पिता के इनकार को भरोसे की कमी के रूप में और माता-पिता द्वारा होमवर्क की जांच को उनकी परिपक्वता (मेच्योरिटी) को चुनौती देने के रूप में देखा जाता है। इसी प्रकार जब किशोर माता-पिता से सवाल सुनते हैं, तो उनमें आत्म-संदेह (अपने आप के कमजोर होने का अहसास) पैदा होता हैं, जिस कारण वे गुस्से में प्रतिक्रिया देते हैं।

पेरेंट्स इस स्थिति को कैसे संभाले 4 फायदेमंद टिप

1) प्रायवेसी मेन्टेन करने दें: यदि संभव हो तो बच्चों की प्राइवेसी सम्बन्धी जरूरतों को पूरा करें जैसे यदि वे घर में अलग कमरे की मांग कर रहे हैं तो दे, यदि ऐसा करना संभव ना हो तो शांतिपूर्वक कारणों के साथ वैसा ना कर पाने की मजबूरी समझाएं।

2) भरोसे का रिश्ता बनाएं: माता-पिता के लिए सिम्बॉलिक रूप से कहा जाता है की जब पिता का जूता बच्चे को आने लगे तो उसके साथ दोस्त की तरह व्यवहार करना शुरू कर देना चाहिए। बच्चों के साथ बातचीत में बोले कम उन्हें सुनें ज्यादा।

3) अपनी उम्मीदों को बच्चों से शेयर करें: जब बच्चे आपके वैल्यू जानते हैं, परिवार के नियमों और उन्हें तोड़ने के परिणामों के बारे में जानते हैं, तो वे हेल्दी रिलेशन बनाने को उत्सुक होते हैं। इस लिए अपने बच्चों से यह शेयर करें कि बतौर पेरेंट्स आपकी क्या और कैसी उम्मीदें हैं?

4) उनके कार्यों की सराहना करें, उनकी पसंद को अपनाएं: जब वे कुछ अच्छा करें तो उनके कामों की सराहना करें। जरूरी नहीं बच्चे की सभी पसंद गलत ही होगी, अपने अनुभव की कसौटी पर उसे कसे और यदि सही पाएं तो ना केवल उसे अपनाएं, बल्कि बच्चे को उसका क्रेडिट भी दें।

उम्मीद करता हूं दिए गए सुझाव आपके लिए उपयोगी साबित होंगे।