मकानों पर पुताई करते थे, कबाड़ी का काम करते थे, दिहाड़ी मजदूर थे, छोटी सी दुकान चलाते थे। नोएडा, दिल्ली, ओडिशा और पंजाब में अपने घरों से दूर मजदूर थे, घर में शादी थी तो आए थे। कुछ ने 12 और बाकी ने 13 दिसंबर को शराब पी। घर लौटे तो आंखों में जलन होने लगी, तबीयत बिगड़ी तो घर वाले अस्पताल ले गए, लेकिन बचे नहीं।
सरकार कह रही है 38 थे, लेकिन कुल 73 लोगों की लिस्ट हमारे पास है। करीब 30 लोग ऐसे भी हैं, जो अंधे हो गए हैं, छपरा सदर अस्पताल और इलाके के दूसरे अस्पतालों में भर्ती हैं। ये वो लोग हैं, जिनके लिए विधानसभा में कहा गया- ‘पिएंगे तो मरेंगे ही।’ इनके परिवारों की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया गया।
अब सवाल ये है कि क्या CM नीतीश कुमार और डिप्टी CM तेजस्वी यादव में इतनी हिम्मत है कि वे उसी विधानसभा में खड़े होकर ऐलान करें कि शराब पीने वाले और उनके परिवार वाले हमें वोट भी न दें? साथ ही मुआवजा मरने वालों को नहीं, मदद के तौर पर उनके परिवार वालों को दिया जाता है, क्या मदद न देकर सरकार उन्हें भी कानूनन दोषी मान रही है?
मौतों को 10 दिन बीत चुके हैं, 23 दिसंबर को जब हम इन गांवों में पहुंचे तो पिता-भाई को अग्नि दे चुके लोग हिंदू रीति-रिवाजों के मुताबिक सिर मुंडवा रहे थे। सैकड़ों बच्चे अनाथ हो गए हैं, औरतें विधवा हो गई हैं, लेकिन इस मुश्किल वक्त में जिस सरकार को उन्होंने चुना था, वो गायब है।
सरकार ने उन्हें उस गुनाह के लिए दोषी ठहरा दिया है, जो उन्होंने किया ही नहीं। इन बच्चों के पिता नहीं रहे और अब सरकार ने इनके अनाथ होने को भी गैरकानूनी करार दे दिया है।
डोइला गांव की पुष्पा के पति संजय सिंह भी मरने वालों में हैं। वो सवाल करती हैं- 2 बेटियों और 2 बेटों को कैसे पालूंगी? क्या सरकार ने हमें मरने के लिए छोड़ दिया है? यही सवाल बहरौली की सविता का है। गोद में 20 दिन की बेटी लिए वो पूछती है, हम कैसे जिएंगे? सरकार नहीं, तो किससे मदद मांगे? जहरीली शराब मिल रही है, बार-बार लोग मर रहे हैं, ये कौन रोकेगा?
शराब पियोगे तो मरोगे, क्या सरकार से पूछकर पीते हैं
उधर, शराबबंदी पर फिर सवाल उठे, तो CM नीतीश कुमार ने 16 दिसंबर को विधानसभा में खड़े होकर कह दिया- ‘जो शराब पिएगा, वो मरेगा। मुआवजा भी नहीं देंगे।’ खूब आलोचना हुई तो 22 दिसंबर को कहा कि शराब बेचने के मामले में पकड़े गए अपराधियों की संपत्ति से वसूल कर मुआवजा देंगे।
उधर कुछ ही महीनों पहले तक नीतीश पर शराब माफिया को संरक्षण देने का आरोप लगाने वाले डिप्टी CM तेजस्वी यादव भी पीछे नहीं रहे। तेजस्वी ने दो अलग-अलग मौकों पर कहा- ‘बिहार में जब शराबबंदी नहीं थी, तब भी लोग जहरीली शराब पीकर मरते थे। शराब पीने वाला सरकार को बताकर नहीं जाता।’
सारण-छपरा वो लोकसभा सीट है, जहां से साल 1977 में पहली बार लोकसभा चुनाव जीतकर RJD चीफ लालू प्रसाद यादव लोकसभा पहुंचे थे। लालू 1989, 2004 और 2009 में भी जीते। 2014 में राबड़ी देवी यहां से हार गई थीं।
ये इलाका आज भी RJD का गढ़ माना जाता है और मरने वाले लोगों की आर्थिक, सामजिक स्थिति के अलावा जहरीली शराब पीने से मारे गए लोगों के परिवार भी इस बात की तस्दीक करते हैं कि वे ‘लालू जी’ के वोटर हैं। मरने वाले परिवारों में से कई ने खुद को BJP और JDU का वोटर भी बताया।