पराली प्रबंधन में अब केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) भी हाथ बंटाएगा। सीपीसीबी इस दिशा में पराली निस्तारण संयंत्रों यानी पेलेटिसेशन व टारफेक्शन प्लांट को आर्थिक सहायता प्रदान करेगा। इन संयंत्रों में पराली के छोटे गट्ठर और भूसा इस तरह बनाया जाएगा कि उन्हें सीधे ईधन की तरह इस्तेमाल किया जा सकेगा। साथ ही इसे लाना-ले जाना भी आसान होगा। बता दें कि अकेले पंजाब और हरियाणा में ही लगभग 27 मिलियन टन पराली पैदा होती है। इसमें से भी 75 प्रतिशत पराली गैर बासमती फसलों की होती है।
पराली ना जलाने के लिए किए गए कई प्रयास
इसके अलावा 0.66 मिलियन टन बासमती और 0.005 मिलियन टन पराली उत्तर प्रदेश के एनसीआर जिलों में उत्पन्न होती है। यह पराली न जले, इसके लिए समय-समय पर कई प्रयास किए गए। उद्योगों में पराली का इस्तेमाल करने के लिए जागरूकता फैलाई गई और नियमों में भी बदलाव किया गया। राजधानी के 300 किलोमीटर के दायरे में स्थित 11 पावर प्लांटों को आदेश दिए गए कि वह कोयले में पांच से दस प्रतिशत पराली को ईंधन की तरह इस्तेमाल करें।
एनसीआर की इंडस्ट्री को भी निर्देश दिए गए कि या तो पीएनजी या बायोमाल फ्यूल पर स्विच करें। सीपीसीबी के अनुसार यदि दिल्ली-एनसीआर के उद्योगों और थर्मल पावर प्लांटों में पराली का इस्तेमाल ईंधन की तरह हो तो 75.5 लाख मीट्रिक टन पराली का इस्तेमाल होगी। पावर प्लांटों ने इस बाबत टेंडर भी निकाले, लेकिन सही से आपूर्ति नहीं हो सकी। यही वजह है कि पेलेटिसेशन और टारफेक्शन प्लांटों की जरूरत महसूस की जा रही है। अक्टूबर में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने इन संयंत्रों के लिए अनुदान की घोषणा की थी।
सीपीसीबी ने बोर्ड बैठक में इस आशय के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी है। नान-टारफाइड संयंत्र के लिए अधिकतम अनुदान 14 लाख रुपये प्रति टन/घंटा क्षमता और टारफाइड संयंत्र के लिए 28 लाख रुपये प्रति टन/घंटा क्षमता पर प्रदान किया जाएगा। इससे हर वर्ष एक मिलियन मीट्रिक टन से अधिक धान की पराली का निस्तारण होने की संभावना है।
सीपीसीबी के सदस्य ने कही ये बात
केंद्र सरकार की योजना थर्मल पावर प्लांटों में ईंधन के रूप में पराली का इस्तेमाल बढ़ाने और कोयले का इस्तेमाल घटाने की है। इससे प्रदूषण भी कम होगा और पराली की समस्या भी सुलझ सकेगी।
पराली प्रबंधन पर दिया जा रहा है जोर
पेलेटिसेशन प्लांट में पराली के गठ्ठर बनाए जाते हैं, जबकि टारफेक्शन प्लांट में पराली का भूसा बनाकर उसकी गिट्टियां बनाई जाती हैं। पहले प्लांट में मेहनत कम और दूसरे में ज्यादा है। इससे पराली को पावर प्लांटों में खपाना आसान हो जाएगा। सीपीसीबी के अनुसार, इन प्लांटों में सिर्फ दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान व उत्तर प्रदेश के एनसीआर जिलों की पराली के गट्ठर बनाने का काम होगा। शुरुआत में इसके लिए कुल फंडिंग लगभग 50 करोड़ रुपये की है।