पाक PM की मोदी से गुहार मजबूरी, लेकिन पलटना रणनीति:5 वजहें जिनके चलते भारत के बिना गुजारा मुश्किल, अगस्त में चुनाव से मुश्किल बढ़ी

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने पहली बार खुलकर ये माना है कि उनके मुल्क को भारत के साथ कश्मीर समेत तमाम मुद्दों पर बातचीत की जरूरत है। शाहबाज के मुताबिक- पाकिस्तान ने भारत के साथ तीन युद्ध लड़े और इनसे सिर्फ गरीबी और भुखमरी मिली।

अब से सिर्फ 9 महीने पहले इमरान खान वजीर-ए-आजम थे। खान साढ़े तीन साल के टेन्योर में सिर्फ एक राग अलापते रहे कि अगर भारत कश्मीर में आर्टिकल 370 और धारा 35A बहाल कर दे तो ही बातचीत हो सकती है। तब शाहबाज भी इसी लाइन पर चल रहे थे।

सवाल ये है कि 9 महीने में ऐसा क्या हुआ कि दुनिया की इकलौती मुस्लिम एटमी ताकत को भारत के सामने घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। यहां हम ऐसी 5 वजहें बता रहे हैं, जिनके चलते शरीफ और उनका मुल्क भारत के रहम की भीख मांग रहा है। आखिर में हम ये भी जानेंगे कि आखिर क्यों चंद घंटे बाद अपनी कही बातों से पलट गए।

दिवालिया होने का खतरा
शुक्रवार को पाकिस्तान के फेडरल रिजर्व ब्यूरो ने बताया कि मुल्क के पास 4.4 अरब डॉलर का फॉरेक्स रिजर्व यानी विदेशी मुद्रा भंडार है। इससे तीन हफ्ते के इम्पोर्ट्स भी नहीं किए जा सकते। इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (IMF) ने साफ कर दिया है कि जब तक उसकी शर्तें नहीं मानी जातीं तब तक पाकिस्तान को 1.6 अरब डॉलर के कर्ज की किश्त नहीं मिलेगी। समझौता 6 किश्तों में 9 अरब डॉलर देने का हुआ था। अब तक 3 अरब डॉलर की 2 किश्तें ही जारी की गईं हैं और यह पैसा कर्जों की किश्तें और फौज की सैलरी पर ही खर्च हो चुका है।

रोचक बात यह है कि पाकिस्तान IMF से सबसे ज्यादा बेलआउट पैकेज हासिल करने वाला देश है। यह 23वीं बार है जब पाकिस्तान को IMF की सख्त शर्तों पर कर्ज के लिए हाथ फैलाना पड़ रहा है। इसके बावजूद वो दिवालिया होने से बच पाएगा, इसमें शक है और इस शक की वजह भी वाजिब है।

दरअसल, ऑयल और गैस के साथ ही पाकिस्तान को खाने का तेल और गेहूं भी इम्पोर्ट करना पड़ रहा है। इसके लिए फंड्स कहां से आएंगे? यही सबसे बड़ा सवाल है, क्योंकि सऊदी अरब और UAE भी अब सख्त शर्तें थोप रहे हैं।

पिछले दिनों पाकिस्तान के मशहूर पत्रकार हामिद मीर ने एक टीवी शो में कहा था- अगर भारत सरकार श्रीलंका को अरबों डॉलर कैश, फ्यूल, दवाइयां और गेहूं-चावल देकर मदद कर सकती है तो हम उससे रिश्ते सुधारकर अपनी मुश्किलें कम क्यों नहीं कर सकते।

भुखमरी की कगार पर
पाकिस्तान भी भारत की तरह एग्रीकल्चर बेस्ड इकोनॉमी है। ‘डॉन न्यूज’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक- 2009 से पाकिस्तान को गेहूं, चावल, शकर और खाने का तेल (डालडा भी) इम्पोर्ट करना पड़ रहा है। इसकी दो वजहें हैं। पहली- खेती की जमीन बहुत तेजी से कम होती जा रही है। दूसरी- सिंचाई की नाममात्र सुविधा नहीं है। इस साल 40% फसल बाढ़ से तबाह हो गई।

पाकिस्तान सरकार रूस और यूक्रेन से गेहूं-चावल इम्पोर्ट करती रही है। इस बार जंग की वजह ये मुश्किल साबित हो रहा है। इसके विकल्प तलाशे तो वो ट्रांसपोर्टेशन की वजह से बेहद महंगे साबित हो रहे हैं। महंगाई दर 25% हो चुकी है। सरकार गरीब अवाम को सस्ता आटा तक मुहैया नहीं करा पा रही।

भारत क्यों जरूरी : भारत के पास सरप्लस फूड आयटम्स हैं और वो आसानी से और किफायती दाम पर पाकिस्तान को गेहूं-चावल और सब्जियां मुहैया करा सकता है। ट्रांसपोर्टेशन का खर्च भी बेहद कम है, क्योंकि ये काम वाघा बॉर्डर के जरिए किया जा सकता है। आखिर अफगानिस्तान को 50 हजार टन गेहूं की मदद भारत ने इसी रास्ते से पहुंचाई थी।

मुस्लिम बिरादरी ने दूरी बनाई

  • सऊदी अरब और UAE दो ऐसे मुस्लिम मुल्क हैं, जिन्होंने 1950 से अब तक पाकिस्तान की हर मुश्किल में मदद की है। अब जबकि पाकिस्तान दिवालिया होने की कगार पर है तो इन मुल्कों को अपना कर्ज वापस मिलना मुश्किल लग रहा है।
  • सितंबर 2022 में सऊदी और UAE ने साफ कर दिया था कि जब तक IMF पाकिस्तान को बेलआउट पैकेज नहीं देता, तब तक वो उसे नया कर्ज नहीं देंगे। हाल ही में सऊदी ने 3 और UAE ने 1 अरब डॉलर देने का वादा किया है, लेकिन ये सिर्फ बाढ़ से हुई तबाही से उबरने के लिए दिए जाने वाला कर्ज है। अब IMF ने प्रोग्राम रोक दिया है तो ये पैसा भी मिलना नामुमकिन सा लग रहा है।
  • फिलहाल, पाकिस्तान के खजाने में जो 4.4 अरब डॉलर हैं, उनमें से 3 अरब डॉलर सऊदी और 1 अरब डॉलर UAE के हैं। बतौर मुल्क पाकिस्तान के लिए शर्मिंदगी की बात यह है कि ये पैसा सिर्फ गारंटी डिपॉजिट है। दूसरे शब्दों में यह पैसा सिर्फ दिखावे के लिए है। शरीफ सरकार इसे खर्च नहीं कर सकती।
  • भारत क्यों जरूरी : एशियन डेवलपमेंट बैंक और एशिया इन्फ्रास्ट्रक्चर बैंक जैसे कई फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन ऐसे हैं, जिनमें भारत का तगड़ा दखल है और भारत चाहे तो पाकिस्तान को यहां से लचीली शर्तों पर लोन दिलाने में मदद कर सकता है। खुद मोदी सरकार भी उसे कर्ज दे सकती है।

चीन का कर्ज बनाम अमेरिकी सहायता

  • चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) पाकिस्तान सरकार के गले की फांस बन गया है। चीन इस पर करीब 40 अरब डॉलर खर्च कर चुका है और इसमें से ज्यादातर गुप्त शर्तों पर दिया गया लोन है। इमरान खान ने 2019 में संसद में साफ तौर पर कहा था- हम मुल्क को ये नहीं बता सकते कि चीन से कर्ज किन शर्तों और कितनी ब्याज दर पर लिया गया है। ये दोनों देशों का सीक्रेट पैक्ट है।
  • अब पाकिस्तान के पूर्व फाइनेंस मिनिस्टर मिफ्ताह इस्माइल समेत कई लोग आरोप लगा रहे हैं कि पाकिस्तान भी चीन के कर्ज जाल में फंस गया है। इस्माइल ने पिछले दिनों कहा था- क्या ये सच नहीं है कि अमेरिका ने हमेशा पाकिस्तान को ग्रांट यानी मदद दी और चीन ने हमेशा लोन या कर्ज। अब अमेरिका ने अफगानिस्तान छोड़ दिया है तो अमेरिका को हमारी मदद की जरूरत नहीं रही। लिहाजा, हम भी अफ्रीका के गरीब मुल्कों की तर्ज पर चीन के कर्ज जाल में फंस चुके हैं।
  • भारत क्यों जरूरी : 2006 में अमेरिका-भारत के बीच सिविल न्यूक्लियर डील हुई थी। पाकिस्तान भी ऐसी ही डील चाहता है, लेकिन अमेरिका तैयार नहीं। अब अमेरिका और भारत स्ट्रैटेजिक अलायंस कर चुके हैं। ऐसे कई प्रोजेक्ट हैं जो अमेरिका इसलिए पाकिस्तान को नहीं देता कि कहीं इससे भारत के साथ रिश्तों पर असर न पड़े। अगर आज पाकिस्तान सरकार भारत से रिश्ते सुधार लेती है तो मोदी सरकार अमेरिका के जरिए भी उसकी मदद कर सकती है।

सियासत सबसे बड़ी दिक्कत

  • पाकिस्तान के पूर्व तानाशाह जिया-उल-हक ने कश्मीर को गले की नस बताया था। जुल्फिकार अली भुट्टो के दौर से ही पाकिस्तान में सियासी बुनियाद भारत से दुश्मनी रही। नवाज शरीफ ने जब मोदी सरकार से रिश्ते सुधारने की कोशिश की तो उन्हें इमरान खान ने गद्दार करार दिया। मोदी खुद नवाज की पोती की शादी में अचानक पाकिस्तान पहुंच गए थे। बहरहाल, ये सारी कोशिशें नाकाम रहीं।
  • 2022 की शुरुआत में तब के आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा ने इमरान के सामने खुले तौर पर कहा था- पाकिस्तान की बेहतरी के लिए एक ही जरूरी शर्त है। हमें भारत से ट्रेड रिलेशन बहाल करने होंगे। कुछ साल के लिए मतभेद दूर रखना होंगे।
  • हैरानी की बात यह है कि इमरान जो बाजवा की बदौलत ही प्रधानमंत्री बने थे, वो पाकिस्तान की इकलौती ताकत फौज की सलाह नहीं मान पाए। इसकी वजह सियासत थी। उन्हें डर था कि कहीं भारत से दोस्ती उन्हें सियासी तौर पर तबाह न कर दे।
  • बहरहाल, मंगलवार को शरीफ भी भारत से दोस्ती की बात कहकर चंद घंटे बाद पलट गए। उनके ऑफिस की तरफ से इस पर सफाई पेश की गई। बहुत सीधे तौर पर देखें तो शाहबाज को सियासी खामियाजा भुगतने का डर सताने लगा होगा। शाहबाज को लगा कि इमरान और तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (TLP) जैसे कट्टरपंथी धड़े उनका वही हश्र कर सकते हैं जो उनके भाई नवाज शरीफ का हुआ था। शाहबाज अपने बेटे हमजा को फिर पंजाब राज्य का CM का मुख्यमंत्री बनाने का सपना देख रहे हैं। जाहिर है वो भारत से दोस्ती का हाथ बढ़ाकर सियासी खुदकुशी करने का रिस्क नहीं लेना चाहते।
  • भारत क्यों जरूरी : अगर शाहबाज शरीफ भारत के सामने दोस्ती का हाथ बढ़ाते हैं, ट्रेड बहाल होता है तो इसका फायदा सीधे तौर पर और बहुत जल्द पाकिस्तान की जनता को होगा। ये इसलिए भी जरूरी क्योंकि पाकिस्तान में अगस्त में होने वाले चुनाव के बाद भले ही कोई भी सरकार आए, उसके सामने खस्ताहाल मुल्क और परेशान अवाम ही होगी। इसलिए शरीफ कदम आगे बढ़ा पाए और भारत ने माकूल जवाब दिया तो शायद हालात बदल जाएं। खुद जनरल बाजवा ने कहा था- अगर सीजफायर कामयाब हो सकता है तो सियासी मजबूरियां छोड़कर हम भारत के साथ नॉर्मल रिलेशन भी बना सकते हैं। बहरहाल, शाहबाज ने अपने कहे को खुद नकार दिया है। लिहाजा, फिलहाल तो दोनों देशों के रिश्तों में सुधार की कोई उम्मीद नजर नहीं आती।