बजट बोरिंग होता है, पर इसके मोमेंट्स अब तो सोशल पर भी ट्रेंड करने लग जाते हैं। बुधवार सुबह जब हमारी वित्त मंत्री बजट के लिए मंत्रालय पहुंचींं, तो वे लाल रंग के टैब के साथ संबलपुरी सिल्क की लाल साड़ी में नजर आईं। उनकी इस साड़ी की भी चर्चा हो रही। इसे टेम्पल साड़ी भी कहा जाता है। ये रंग जीत का सिंबल है। चलिए पहले उनकी एक और वायरल तस्वीर को देख लीजिए…
हालांकि, ऐसा नहीं है कि ऐसी कहानियां अभी बनने लगी हैं। पहले भी होती थीं। मसलन, इंदिरा का सिगरेट टैक्स बेइंतहा बढ़ाने से पहले सदन को सॉरी बोलना। मनमोहन सिंह जैसी कठोर शख्सियत का शेर-ओ-शायरी पर उतर आना। और निर्मला का बजट पढ़ते-पढ़ते बीमार हो जाना।
1947 से अब तक संसद ने 73 आम बजट और 14 अंतरिम बजट देखा है। इंदिरा के बाद निर्मला दूसरी महिला हैं जिनके जिम्मे वित्त मंत्रालय है और वो चार साल से देश का बजट बना रही हैं।
2020 में 2 घंटे 41 मिनट तक बोलकर उन्होंने सबसे लंबी बजट स्पीच का रिकॉर्ड बनाया था। बीमार भी तभी पड़ी थीं।
टैबलेट से पढ़ी स्पीच, फिर पेपर भी उठाया: तीन साल हुए जब से निर्मला पेपरलेस बजट ला रही हैं। वाकया 2022 का है, निर्मला टैबलेट देखकर बजट पढ़ रही थीं। करीब 1 घंटे 20 मिनट के बाद GST के आंकड़े बताने के लिए पेपर उठाना पड़ा। उन्हीं का संकल्प टूट गया।
कोरोना के लिए नियम तो बने, पर दूरी नहीं: 2022 में कोरोना के नियम तो बने, लेकिन सदन में सोशल डिस्टेंसिंग नहीं दिखी। डेस्क के सामने फाइबर सीट लगाई गई। प्रधानमंत्री समेत सभी सांसद मास्क पहने दिखे।
बोलते-बोलते बीमार पड़ गईं वित्त मंत्री: करीब ढाई घंटे बोलने के बाद निर्मला की तबीयत बिगड़ गई। हरसिमरत कौर उनके पास मदद के लिए पहुंचीं। कुछ दवा खोलकर भी दी। बाईं ओर सबसे करीब में बैठे राजनाथ सिंह बजट पढ़ने से मना करने लगे, लेकिन निर्मला ने फिर से पढ़ना शुरू किया, लेकिन आखिरी दो पन्ने पढ़े बिना बैठ गईं। ये वाकया 2020 के बजट का है।
सांसद ऊबते दिखे, कुछ ने झपकी ली: जैसे-जैसे 2020 का भाषण लंबा होता गया, सांसद भी ऊबते नजर आए। कुछ ने झपकी ले ली, लेकिन कैमरे का ख्याल आते ही झट से जाग भी गए। किसी को पास बैठे साथी ने थपकी से जगाया।
मनमोहन का शायराना बजट में बिस्मिल और इकबाल: गंभीर और इंटेलेक्चुअल इमेज वाले मनमोहन सिंह ने भी अपने 1991 और 1992 के बजट में कविताओं और अल्लामा इकबाल की शायरी का जिक्र किया।
यूनान, मिस्र, रोम सब मिट गए जहां से,
अब तक मगर हैं बाकी, नामो निशां हमारा॥
कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी,
सदियों रहा है दुश्मन, दौर ए जहां हमारा॥
मनमोहन ने 1992 में अपनी बजट स्पीच कविता से खत्म की। बिस्मिल अज़ीमाबादी की कविता का जिक्र किया।
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है