गांधी जी के सपने को साकार कर रहा मध्य प्रदेश का एक गांव, सैकड़ों युवाओं को मिल रहा रोजगार

साबरमती के संत व राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने समूचे देश को चरखे से स्वरोजगार की राह दिखाई थी। उसी चरखे से आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने स्वरोजगार, स्वाभिमान और स्वदेशी का सपना देश के युवाओं को दिखाया है। पांच साल पहले उन्होंने मध्य प्रदेश में सागर जिले के बारहा गांव में चरखा और हथकरघा केंद्र की नींव रखी थी और उससे तैयार होने वाले कपड़े को श्रमदान नाम दिया था। अब यही चरखा और हथकरघा देश के 17 गांवों में सैकड़ों युवाओं के रोजगार का जरिया बन गया है। चरखे से तैयार खादी स्वदेशी होने का स्वाभिमान जगा रही है और बेरोगजारी से जूझ रहे युवाओं को आत्मनिर्भता का एहसास करा रही है। 30 जनवरी को महात्मा गांधी की पुण्यतिथि है।

दरअसल, गांधी के खादी से स्वरोजगार के मंत्र को जैन तीर्थ क्षेत्र बारहा में 2015 में आचार्यश्री विद्यासागर ने साकार किया । महाकवि पंडित भूरामल सामाजिक सहकार संस्था के नाम से हथकरघा केंद्र शुरू करवाया। शुरुआत 10 हथकरघा और 20 चरखों से की गई। गांव के युवाओं को प्रशिक्षण दिया गया और अब इस केंद्र में 120 हथकरघा संचालित हो रहे हैं। इन पर काम करने वाले प्रत्येक व्यक्ति की प्रतिदिन 300 से 700 रुपये तक की कमाई हो जाती है। गांव के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती है, लेकिन कई बेरोजगार युवाओं को इन हथकरघा केंद्र से जोड़ा गया है। इससे उनकी आय बढ़ गई है।

सफलता के बाद कई जगह विस्तार

इस केंद्र की सफलता के बाद दूसरे चरण में अक्षय तृतीया पर 2016 को मध्य प्रदेश में आठ और हथकरघा केंद्र शुरू किए गए। इसके बाद 2017 में महाराष्ट्र में छह केंद्र शुरू किए गए। इसके अगले वर्ष छत्तीसगढ़ में दो और कर्नाटक में एक केंद्र शुरू किया गया।

ब्रांड को नाम दिया श्रमदान

बारहा गांव स्थित केंद्र के ब्रह्माचारी अनमोल बताते हैं हथकरघा केंद्रों में तैयार कपड़े को ब्रांड नाम ‘श्रमदान’ दिया गया है। यह नाम भी आचार्यश्री विद्यासागर महाराज द्वारा ही दिया गया है। इसके पीछे मंशा स्वारोजगार के श्रम का दान है। इससे मानवश्रम पोषित हो और स्वदेशी की प्रेरणा मिले। हथकरघा केंद्रों में रंगीन व प्रिंटेड खादी वस्त्र भी तैयार किए जा रहे हैं। यहां चंदेरी और महेश्वरी की तरह साड़ियां भी बनाई जा रही हैं। इसके अलावा जकार्ड, डॉबी वर्क साड़ियां भी तैयार की जा रही हैं। इनकी काफी मांग रहती है। इसके अलावा सलवार सूट, शर्ट और कुर्ते भी यहां तैयार किए जाते हैं। इनकी बिक्री के लिए भोपाल, अशोकनगर, खजुराहो, कुंडलपुर व बीना में शोरूम खोले गए हैं। आनलाइन बिक्री के लिए वेबसाइट भी बनाई गई है।

बुनकर हर्षति सिंह राजपूत का कहना है कि देवरी से 2016 में 12वीं कक्षा पास की थी। उसके बाद बुनकर का प्रशिक्षण लेने आ गए। अब एक कुशल बुनकर के रूप में रोजाना न्यूनतम 500 और अधिकतम 700 रुपये कमा लेते हैं। मां आशा सिंह राजपूत भी मेरे साथ ही यहां सिलाई का काम करती हैं। वह भी रोजाना औसतन 250 रुपये कमा लेती हैं।

बारहा पंचायत के सरपंच जीवंती राजधर यादव कहते हैं कि बीना में संचालित हथकरघा केंद्र से युवाओं के हाथों में काम है। गांव में ही काम मिलने से युवाओं को सही दिशा मिल रही है।