अफगानिस्तान की हुकूमत पर काबिज तालिबान ने सोमवार को अहम ऐलान किया। तालिबान के मुताबिक, वो अमेरिका द्वारा छोड़े गए मिलिट्री बेसेज का इस्तेमाल इकोनॉमिक जोन के तौर पर करेगा। इसका मकसद मुल्क में ट्रेड और इकोनॉमी को बढ़ावा देना है।
अमेरिकी फौज करीब 20 साल तक अफगानिस्तान में रही। ‘वॉर अगेंस्ट टेरर’ के तहत उसने अफगानिस्तान के कई हिस्सों में अपने सैनिकों की सुविधा के लिए कई मिलिट्री बेस बनाए। अमेरिकी और नाटो सैनिकों के लौटने के बाद यह बेस खाली पड़े हैं। तालिबान इस इन्फ्रास्ट्रक्चर का इस्तेमाल इकोनॉमी सुधारने के लिए करने जा रहा है।
मुल्ला बरादर ने किया ऐलान
मिलिट्री बेस का इस्तेमाल इकोनॉमिक जोन के तौर पर करने का ऐलान तालिबान के कार्यवाहक प्रधानमंत्री और फाइनेंस मिनिस्टर मुल्ला अब्दुल गनी बरादर ने किया। बरादर ने एक बयान में कहा- हमने ये फैसला किया है कि मिनिस्ट्री ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री पुराने मिलिट्री बेसेस को कंट्रोल में लेगी। पहले नाटो सैनिक इनका इस्तेमाल करते थे। अब हम इन्हें स्पेशन इकोनॉमिक जोन बनाने जा रहे हैं।
बरादर ने कहा- इसकी शुरुआत काबुल से होगी। इसके बाद बाख राज्य में इकोनॉमिक जोन बनाया जाएगा। फिलहाल, इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं दी जा सकती। हम इसका प्रॉपर प्लान तैयार कर चुके हैं।
BBC से बातचीत में सिंगापुर स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के रिसर्चर मोहम्मद फैजल बिन अब्दुल रहमान ने कहा- यह अच्छी बात है कि तालिबान का फोकस अच्छी गवर्नेंस देने पर है। अगर वो ट्रेड के लिए तैयार हो रहे हैं, तो ये अच्छी खबर है। वो बॉर्डर एरिया में इन्वेस्टमेंट को बढ़ावा देना चाहते हैं, चीन की इन पर जरूर नजर होगी।
नैचुरल रिर्सोसेज की कमी नहीं
- माना जाता है कि अफगानिस्तान की धरती पर बड़ी तादाद में नैचुरल गैस, कॉपर और कुछ दूसरे कीमती मटैरियल मौजूद हैं। इनकी कीमत करीब 1 खरब डॉलर मानी जाती है। हालांकि, ये भी सही है करीब 50 साल तक अलग-अलग तरह की जंग में उलझे रहने की वजह से कभी इनका पता नहीं लगाया जा सका।
- अगस्त 2021 में जब तालिबान ने अफगानिस्तान की हुकूमत पर कब्जा किया तो उसने इस तरफ गौर किया। हालांकि, उसके सामने अब भी कई चैलेंज हैं। अमेरिका में उसके करीब 9 अरब डॉलर के एसेट्स फ्रीज हैं।
- इस साल की शुरुआत में तालिबान ने कहा था कि वो एक चीनी कंपनी से करार पर विचार कर रही है ताकि नॉदर्न अफगानिस्तान में धरती के नीचे मौजूद कीमती धातुएं की खोज की जा सके। हालांकि, चीन ने अब तक इस बारे में कोई बयान नहीं दिया है।
- 2013 में चीन ने पाकिस्तान और अफगानिस्तान एरिया में रेल-रोड नेटवर्क बनाने के लिए बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) शुरू किया था, लेकिन पाकिस्तान में यह करीब-करीब बंद होने की कगार पर है। अफगानिस्तान में इसके शुरू होने के हालात ही नहीं बन सके हैं।
अफगानिस्तान में लीथियम
- अफगानिस्तान दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक है, लेकिन अफगानिस्तान में एक ट्रिलियन डॉलर यानी कि 74.37 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा के मिनरल्स के भंडार हैं। 2010 में अमेरिकी सैन्य अधिकारियों और जियोलॉजिकल सर्वे ने खुलासा किया था कि अफगानिस्तान के मध्य और दक्षिण क्षेत्र में लगभग एक ट्रिलियन डॉलर का मिनरल्स का भंडार है, जो कि देश की इकॉनॉमिक प्रॉसपेक्ट्स को पूरी तरह से बदल सकता है।
- साइंटिस्ट्स के मुताबिक अफगानिस्तान में लोहे, तांबे, कोबाल्ट, सोने और लीथियम के बड़े भंडार मौजूद हैं। साइंटिस्ट्स का मानना है कि अफगानिस्तान के दुर्लभ मिनरल्स संसाधन पृथ्वी पर सबसे बड़े हैं। आपको बता दें कि दुर्लभ मिनरल्स इस समय टेक्नोलॉजी की सबसे बड़ी जरूरत हैं। इनकी मदद से ही मोबाइल फोन, TV, हाईब्रिड इंजन, कंप्यूटर, लेजर और बैटरी तैयार की जाती हैं।
- US जियोलॉजिकल सर्वे के मिर्जाद ने 2010 में साइंस मैगजीन को बताया था कि अगर अफगानिस्तान में कुछ साल शांति रहती है और उसके मिनरल्स संसाधनों का विकास होता है, तो वह एक दशक के अंदर इस क्षेत्र के सबसे अमीर देशों में से एक बन सकता है।
तालिबान ही सबसे बड़ी दिक्कत भी
ईकोलॉजिकल फ्यूचर्स ग्रुप के फाउंडर साइंटिस्ट और सिक्योरिटी एक्सपर्ट रॉड शूनोवर ने कहा कि सुरक्षा चुनौतियों, इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी और सूखे ने पहले इन मिनरल्स को निकालने से रोका है। अब अफगानिस्तान में तालिबान के आने से ये हालात जल्द बदलने की संभावना नहीं है। सबसे बड़े मिनरल्स भंडार लोहे और तांबे के हैं और इनकी मात्रा काफी ज्यादा है। ये इतनी मात्रा में हैं कि अफगानिस्तान इन मिनरल्स में दुनिया का सबसे बड़ा देश बन सकता है। इसी पर तालिबान से लेकर उसके समर्थक देशों की नजरें लगी हैं, जिसमें चीन भी शामिल हैं।