साउथ अफ्रीका में मौजूद अमेरिकी एम्बेसडर रूबेन ब्रिगेटी ने वहां की सरकार से बिना शर्त माफी मांगी है। दरअसल ब्रिगेटी ने 11 मई को एक बयान जारी करते हुए साउथ अफ्रीका पर रूस को हथियार देने का आरोप लगाया था। ब्रिगेटी ने दावा किया था- पिछले साल 6-8 दिसंबर के दौरान केप टाउन में एक रूसी जहाज पर हथियार और बारूद लोड किए गए थे।
इस पर साउथ अफ्रीका ने US एम्बेसडर को तलब करते हुए कहा था कि उसके पास रूस को हथियार बेचने का कोई रिकॉर्ड नहीं है। राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा ने मामले में निष्पक्ष जांच के आदेश भी दिए थे। इसके बाद राष्ट्रपति कार्यालय से जारी एक बयान में अमेरिकी राजदूत के आरोपों को खारिज कर दिया गया था। साथ ही कहा गया था कि इन आरोपों की पुष्टि के लिए अमेरिका ने अभी तक कोई पर सबूत पेश नहीं किया है।
ब्रिगेटी ने शुक्रवार को विदेश मंत्री से मुलाकात की। इसके बाद उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा- मेरे बयान के चलते कुछ गलत जानकारी फैल गई थी। मुझे इसे सुधारने का मौका मिला जिसके लिए मैं आभारी हूं। दोनों देशों के बीच ऐसे ही मजबूत साझेदारी बनी रहेगी। वहीं साउथ अफ्रीका के कैबिनेट मंत्री खुम्बुद्जो नत्शावेनी ने कहा- अमेरिका इस तरह हमें डरा-धमका नहीं सकता है। रूस पर प्रतिबंध लगाने का फैसला उसका है। वो हमें इसमें न घसीटे।
पुतिन ने साउथ अफ्रीकी राष्ट्रपति से फोन पर की बात
इस पूरे मामले के दौरान रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने साउथ अफ्रीका के राष्ट्रपति से फोन पर बात की। उन्होंने दोनों देशों के बीच संबंधों को और गहरा करने पर चर्चा की। इससे पहले इन आरोपों पर अमेरिका का भी रिएक्शन आया था। व्हाइट हाउस के नेशनल सिक्योरिटी के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने कहा था- हम आरोपों की गहराई में फिलहाल नहीं जा रहे हैं, लेकिन ये एक गंभीर मामला है। अमेरिका ने शुरुआत से ही दूसरे देशों को यूक्रेन के खिलाफ जंग में रूस का साथ नहीं देने को कहा है।
रूस-यूक्रेन जंग पर साउथ अफ्रीका का निष्पक्ष रवैया
15 महीनों से जारी रूस-यूक्रेन जंग के बीच साउथ अफ्रीका उन चंद देशों में शामिल है जिन्होंने UN में इस मुद्दे पर वोट नहीं डाला है। साउथ अफ्रीका ने कई महीनों से इस मामले को समझौते के जरिए सुलझाने के पक्ष में बयान दिया है। ऐसे में अगर वो रूस को हथियार सप्लाई करेगा तो उसे अपने देशवासियों सहित पूरी इंटरनेशनल कम्यूनिटी को जवाब देना पड़ेगा।
BBC के मुताबिक, साउथ अफ्रीका में कई लोग रूस के पक्ष में हैं क्योंकि 20वीं सदी में व्हाइट माइनॉरिटी रूल के खिलाफ जंग में सोवियत संघ ने उनका साथ दिया था। हालांकि, एक्सपर्ट्स ये भी मानते हैं कि अगर अमेरिका के साथ रिश्तों में तनाव आया तो इसका असर उनकी इकोनॉमी पर पड़ेगा।