एक नैशनल लेवल की फिल्म बनाएंगे प्रोसेनजीत चटर्जी:कहा- 350 फिल्मो में एक्टिंग की अब डायरेक्शन की बारी है

बांग्ला फिल्मों के सुपरस्टार प्रोसेनजीत चटर्जी हाल के दिनों में अपनी हिंदी वेब सीरीज ‘ जुबली ’ के लिए खासी सुर्खियां बटोर रहे हैं। उन्होंने अपनी खुशी दैनिक भास्कर के साथ साझा की है। पेश हैं उनसे हाल में हुई बातचीत के प्रमुख अंश:-

– आपने इंडस्ट्री में 40 साल बिताए हैं। क्या नए बदलाव दिखे ?

स्टोरी तो नहीं, मगर हां स्क्रिप्ट में चेंज तो काफी आए हैं। किरदारों के इमोशन और रिलेशन खासकर बड़े रियलिस्टिक हो गए हैं। पहले के जमाने से मेरे सौ से ज्यादा गाने हैं, जहां मैं अपनी हीरोइन को किस कर रहा हूं, पर स्क्रीन पर सामने एक फूल आ गया। या पेड़ आ गया और कैमरा पैन हो गया। अब की फिल्मों में वह नहीं हो सकता। हम असल जिंदगी में जिस तरह लाइफ के साथ डील कर रहे, वैसा अब की फिल्मों में भी हो गया है। हालांकि बेशक लार्जर दैन लाइफ फिल्में भी बन रहीं हैं। वो तो रहेगा।

– एक्टिंग के अलावा फिल्ममेकिंग का कौन सा हिस्सा आप ज्यादा इंजॉय करते हैं ?

मैं पहले टेक्नीशियन हूं, फिर एक्टर हूं। मैं कोशिश करूंगा, एक डेढ़, दो साल के अंदर एक नेशनल लेवल की फिल्म बनाऊं। बंगाल में मैंने तो किया। 300-350 पिक्चर मैंने बतौर एक्टर किया। अब हमारा टाइम भी आ गया न कि पिक्चर बनाएं भी। जैसा कि अजय देवगन कर रहे। इतने लंबे समय जो हम इंडस्ट्री में रहे हैं। तो हमारा समय भी आ गया न कि हम अपना एक्सपीरिएंस साझा करें।

– क्या जुबली का अगला पार्ट भी आएगा?

इसे काफी प्यार मिला है। इससे जुड़े हम सारे कलाकार बड़े खुश हैं। अब तो हालांकि हम सब अपने अपने कामों में बेहद बिजी हैं, मगर जब कभी हमें फुरसत मिलती है, हम सभी के टच में रहते हैं। मैं मुंबई में रहा तो मैं सबसे मिलने की कोशिश करता हूं। अगर ये कोलकाता आते हैं तो वहां हम साथ में ग्रेट टाइम स्पेंड करते हैं। हम सभी ने एक दूसरे से कमिटमेंट की है कि हम जुबली को आगे कायम रखेंगे।

– उस किरदार में आपने अपने रंग क्या भरे थे?

दरअसल विक्रमादित्य मोटवाणी इतने अच्छे डायरेक्टर हैं कि किरदार के लिए महज एक दिन दो से तीन घंटे की ही डिसकशन उनके साथ हुआ। मैं भी चूंकि इतने सालों से काम कर रहा हूं तो मैंने पकड़ लिया कि वो क्या चाहते हैं? गौर से देखिएगा तो आप पाएंगे कि श्रीकांत रॉय में हर जगह गॉडफादर का रैफरेंस तो आ रहा है। विक्रम की ओर से हालांकि वैसा कुछ नहीं था कि उन्हें वही चाहिए। उनका बस कहना था कि उन्हें वही फॉर्मेट चाहिए। बाकी जो मेरे ‘ चोखेरबाली ’ जैसे काम का आर्टवर्क रहा है, उसका भी एक्सपीरिएंस काम आया। यकीनन, उस दौरान मैंने फिर और कोई काम नहीं किया। डेढ़ साल तक कुछ नहीं किया।

– साउथ के मुकाबले बांग्ला सिनेमा कैसा परफॉर्म कर रहा ?
मैं आपसे पूछना चाहूंगा। साउथ की फिल्मों को लेकर इन दिनों चल तो रहा है वो पैन इंडिया टर्म। ये नया लैंग्वेज है। मुझे एक चीज बताइए जब रोजा आई थी या तो चोखेरबाली बनी थी, वो क्या थी? उनके डायरेक्टर्स का नाम मैं लेना चाहूंगा। मणिरत्नम और ऋतुपर्णो घोष। उन लोगों ने फिल्म बनाई थी। हर रीजनल सिनेमा में एक अलग एंबिएंस है। चोखेरबाली को हर लैंग्वेज की ऑडियंस ने देखा था। कांतारा मुझे नहीं पता था कि वो ये कमाल करेगा। उसमें कोई पैकेज नहीं है।

-श्रीकांत रॉय के किरदार को लेकर क्या चैलेंज रहे ?

वो तो हमेशा रहेंगे। मैं आज भी कैमरा रोल होता है तो मेरा दिल धक- धक करने लगता है। यहां पेचीदगी यह थी कि सीन में तो श्रीकांत रॉय लोगों को नेगेटिव लगता है, मगर वह सारे गुणा भाग अपने एंपायर को बचाने में लगा हुआ है। यहां तक कि सुमित्रा कुमारी भी कह देती है कि उस इंसान के बारे में बाकी कुछ भी कहो, मगर सिनेमा को लेकर उसकी निष्ठा के बारे में कुछ नहीं कह सकते।जैसी मेरी एक फिल्म ऋतुपर्णा घोष के साथ थी। जहां मेरा किरदार गलती करता है। उसकी पत्नी वह पकड़ लेती है। मेरे किरदार का हादसा होता है। फिर आखिर में उस इंसान को लेकर क्या धारणा बनती है, वह अपने आप में बड़ा पेचीदा था।