अमेरिकी कॉलेजों में एडमिशन में नस्ल-जाति के इस्तेमाल पर रोक:सुप्रीम कोर्ट बोला- ये संविधान के खिलाफ; बाइडेन ने फैसले का विरोध किया

अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को यूनिवर्सिटी एडमिशन में रेस यानी नस्ल और जाति के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट में 9 जजों की बेंच ने ये फैसला सुनाया। अमेरिका में अफ्रीकी-अमेरिकियों (ब्लैक) और अल्पसंख्यकों को कॉलेज एडमिशन में रिजर्वेशन देने का नियम है। इसे अफर्मेटिव एक्शन यानी सकारात्मक पक्षपात कहा जाता है।

गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट एक्टिविस्ट ग्रुप स्टूडेंट्स फॉर फेयर एडमिशंस की पिटीशन पर सुनवाई कर रहा था। इस ग्रुप ने हायर एजुकेशन के सबसे पुराने प्राइवेट और सरकारी संस्थानों और खास तौर पर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और उत्तरी कैरोलिना यूनिवर्सिटी (UNC) की एडमिशन पॉलिसी के खिलाफ 2 याचिकाएं लगाई थीं। उन्होंने तर्क दिया था कि ये पॉलिसी व्हाइट और एशियन अमेरिकन लोगों के साथ भेदभाव है।

राष्ट्रपति बाइडेन बोले- फैसला गलत, देश में अब भी भेदभाव जारी
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर राष्ट्रपति बाइडेन ने आपत्ति जताई है। न्यूज एजेंसी AFP के मुताबिक, बाइडेन ने कहा- मैं सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से असहमत हूं। अमेरिका ने दशकों से दुनिया के सामने एक मिसाल पेश की है। ये फैसला उस मिसाल को खत्म कर देगा। उन्होंने कहा कि इस फैसले को आखिरी शब्द नहीं माना जाता सकता है। अमेरिका में अब भी भेदभाव बरकरार है। ये फैसला इस कड़वी सच्चाई को नहीं बदल सकता है।

सुप्रीम कोर्ट बोला- रिजर्वेशन संविधान के खिलाफ
पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इस फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा- ये शानदार दिन है। जो लोग देश के विकास के लिए मेहनत कर रहे हैं उन्हें आखिरकार इसका फल मिला है। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा- अफर्मेटिव एक्शन अमेरिका के संविधान के खिलाफ है जो सभी नागरिकों को बराबरी का हक देता है। अगर यूनिवर्सिटी में एडमिशन कुछ वर्ग के लोगों को फायदा दिया जाएगा तो ये बाकियों के साथ भेदभाव होगा, जो उनके अधिकारों के खिलाफ है।

चीफ जस्टिस बोले- रंग नहीं बल्कि स्किल्स-एक्सपीरिएंस से काबिलियत साबित होती है
चीफ जस्टिस जॉन रॉबर्ट्स ने फैसला सुनाते हुए कहा- लंबे वक्त से कई यूनिवर्सिटीज ने ये गलत धारणा बना रखी थी कि किसी व्यक्ति की काबिलियत उसके सामने आने वाली चुनौतियां, उसकी स्किल्स, एक्सपीरिएंस नहीं बल्कि उसकी त्वचा का रंग है। हावर्ड यूनिवर्सिटी की एडमिशन पॉलिसी इस सोच पर टिकी है कि एक ब्लैक स्टूडेंट में कुछ ऐसी काबिलियत है जो व्हाइट स्टूडेंट्स में नहीं है।

CJ ने कहा- इस तरह की पॉलिसी बेतुकी और संविधान के खिलाफ है। विश्वविद्यालयों के अपने नियम हो सकते हैं लेकिन इससे उन्हें नस्ल के आधार पर भेदभाव का लाइसेंस नहीं मिल सकता। जस्टिस रॉबर्ट्स ने कहा कि जिन जजों ने इस फैसले पर असहमति जताई है वो कानून के उस हिस्से को अनदेखा कर रहे हैं, जिसे वो नापसंद करते हैं।

फैसले के बाद जश्न-विरोध जारी
पिटीशन लगाने वाले ग्रुप स्टूडेंट्स फॉर फेयर एडमिशन के फाउंडर ब्लम ने जश्न मनाते हुए इस फैसले को जबरदस्त करार दिया है। उन्होंने कहा- ये कलर ब्लाइंडनेस के कानूनी पक्ष को स्थापित करता है। ये फैसला मेरिट के समर्थन में है जो अमेरिकन ड्रीम की बुनियाद है। वहीं SC के फैसला सुनाने के बाद कई संगठनों ने इसका विरोध भी किया। हार्वर्ड ब्लैक स्टूडेंट्स एसोसिएशन की अध्यक्ष एंजी गाब्यू ने कहा- हम कोर्ट के आदेश से हताश हुए हैं।

क्या है अफर्मेटिव एक्शन जिस पर 9 स्टेट्स ने लगाई रोक
अमेरिका में अफर्मेटिव एक्शन 1960s में लागू किया गया था। इसका मकसद देश में डायवर्सिटी को बढ़ावा देना और ब्लैक कम्युनिटी के लोगों के साथ भेदभाव को कम करना था। सुप्रीम कोर्ट अमेरिका की यूनिवर्सिटीज में इस पॉलिसी का 2 बार समर्थन कर चुका है। पिछली बार ऐसा 2016 में हुआ था।

हालांकि, अमेरिका की 9 स्टेट्स पहले ही नस्ल के आधार पर कॉलेजों में एडमिशन पर रोक लगा चुकी हैं। इनमें एरिजोना, कैलिफोर्निया, फ्लोरिडा, जॉर्जिया, ओकलाहोमा, न्यू हैम्पशायर, मिशिगन, नेब्रास्का और वॉशिंगटन शामिल हैं।