रक्षाबंधन पर बुधवार की रात गोरखपुर समेत देशभर में फुल मून, सुपरमून और ब्लू मून तीनों एक साथ दिखाई दिए। इस खगोलीय घटना को ‘सुपर ब्लू मून’ कहा जाता है। भारत में सुपर ब्लू मून रात 8 बजकर 37 मिनट पर दिखाई दिया। लेकिन, रात 9 बजे के बाद इसका रोमांच और बढ़ता गया।
हालांकि, इससे पहले भी एक अगस्त को ही फुल मून हुआ था और दूसरा फुल मून बुधवार रात एक बार फिर दिखाई दिया। अगली बार यह खगोलीय घटना 19/20 अगस्त, 2024 में दिखाई देगी।
तारामंडल में किया गया था खास इंतजाम चंद्र ग्रहण
वहीं, इस सुपर मून को देखने के लिए वीर बहादुर सिंह नक्षत्र शाला तारामंडल गोरखपुर में खास इंतजाम किए गए थे। खगोलविद् अमर पाल सिंह ने यहां आए दर्शकों को विशेष दूरबिंनों के जरिए इस खगोलीय घटना का दीदार कराया। साथ ही इस जुड़ी जानकारियां भी दी।
सुपर ब्लू मून के दिन चांद नीला दिखाई देगा?
यहां ब्लू मून शब्द का चांद के कलर से कोई लेना-देना नहीं है। साल 1940 से ये चलन शुरू हुआ कि अगर एक ही महीने में दो फुल मून यानी पूर्णिमा पड़ती है तो दूसरे फुल मून को ब्लू मून कहा जाएगा। चूंकि इसी दिन सुपरमून भी है तो इस दिन चांद बड़ा और चमकदार दिखाई देगा, लेकिन नीला नहीं।
क्या ब्लू मून और सुपरमून हमेशा साथ-साथ पड़ते हैं?
नहीं, ऐसा नहीं होता है। जब फुल मून धरती के सबसे करीब यानी पेरिजी पॉइंट पर होता है तब सुपरमून होता है। एक साल में ऐसा तीन से चार बार हो जाता है। यह इतना कॉमन है कि फुल मून का 25% सुपरमून होता है।
हालांकि, सुपर ब्लू मून इतना कॉमन नहीं है। फुल मून का केवल 3% ही सुपर ब्लू मून होता है। दोनों के बीच टाइम को लेकर भी फर्क है। सुपरमून साल में तीन से चार बार हो जाता है, लेकिन ब्लू सुपरमून का टाइम गैप ज्यादा होता है। यह 10 साल से लेकर 20 साल तक हो सकता है। उदाहरण के लिए अब अगला ब्लू सुपरमून साल 2024 में होगा।
क्या होता है ब्लू मून?
वीर बहादुर सिंह नक्षत्र शाला तारामंडल गोरखपुर अमर पाल सिंह ने बताया, जब किसी एक ही महीने में दो बार पूर्णिमा हो, तो दूसरे फुल मून को ब्लू मून या सुपर ब्लू मून कहा जाता है। चंद्रमा को देखते समय उसके रंग में कुछ थोड़ा सा परिवर्तन होता दिखाई देता है। वह एटमॉस्फियर में मौजूद धूल, गैस, के छोटे छोटे कणों पर पड़ने वाले प्रकाश के बदलाव के कारण होता है। यह सिर्फ एक खगोलीय घटना है, जो कुछ सालों के अंतराल पर घटित होती रहती हैं।