मुलायम 25,000 रुपए न देते तो मैं पढ़ न पाती:उन रुपयों से मैंने पढ़ाई की, सिलाई मशीन खरीदी; अब सिलाई करके घर चलाती हूं

प्रतापगढ़ की नेहा मिश्रा जब 11वीं में थी, तब उनके पिता का एक्सीडेंट हो गया। परिवार की आर्थिक स्थिति खराब हो गई। पिता ने कह दिया कि 12वीं तक किसी तरह से पढ़ लो, उसके बाद नहीं पढ़ा पाऊंगा। उसी वक्त नेहा को पता चला कि मुलायम सिंह द्वारा चलाई गई कन्या विद्या धन स्कीम के तहत 12वीं पास करने के बाद 25 हजार रुपए मिलेंगे। नेहा के सपनों में जैसे पंख लग गया हो। उन्होंने पूरी शिद्दत से मेहनत की और 12वीं की परीक्षा 78% नंबरों के साथ पास कर ली।

नेहा को 25 हजार रुपए मिले। उन्होंने सबसे पहले अपना एडमिशन इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में करवाया। इसके बाद सिलाई मशीन खरीदी। सुबह साइकिल से कॉलेज जाती और शाम को सिलाई का काम करती। खुद की पढ़ाई पूरी की और परिवार की आर्थिक स्थिति बेहतर की। अब कहती हैं कि मुलायम सिंह की वह स्कीम नहीं होती तो शायद मैं बाकी बहनों की तरह पढ़ नहीं पाती।

आज मुलायम सिंह की पुण्यतिथि है। आपको उनकी बहुत सारी कहानियां पता हैं, आज हम आपको उनकी स्कीम के बारे में बताएंगे। उस स्कीम से मिले लाभ और बदली जिंदगी के बारे में बताएंगे। आइए सब कुछ एकदम शुरू से जानते हैं…

दो कमरों का घर…पढ़ने वाली चार बेटियां
प्रयागराज में घनश्याम पांडेय का दो कमरों का एक घर था। घर में वो, उनकी पत्नी, चार बेटियां और घनश्याम के छोटे भाई का परिवार रहता था। छोटे भाई प्राइवेट नौकरी करते थे और पूरे परिवार का खर्चा वही उठाते थे। घनश्याम की सबसे बड़ी बेटी 10वीं तक पढ़ी थी। अब आगे पढ़ाने के पैसे नहीं थे, इसलिए उनकी शादी कर दी।

अब घनश्याम के भाई की भी जिम्मेदारियां बढ़ने लगी थीं। इसलिए उन्होंने घनश्याम को अपना परिवार खुद संभालने के लिए कहा। उन्होंने भाई की मदद से एक ऑटो खरीदा। अब ऑटो चलाकर जो भी पैसा आता उससे अपना घर चलाते। वो दिन का करीब 200-300 रुपए कमा लेते थे। उनकी दूसरी बेटी जैसे-तैसे 12वीं तक पढ़ पाई और उन्होंने उसकी भी शादी करा दी।

पापा का एक्सीडेंट हो गया तो जो पैसे आते थे वो भी बंद हो गए

नेहा बताती हैं, ”जब बहन की शादी हुई तो वो 11वीं में थी। आगे ग्रेजुएशन करके नौकरी करना चाहती थीं। लेकिन तभी पापा का एक्सीडेंट हो गया। डॉक्टर ने उन्हें कुछ महीने ऑटो चलाने के लिए मना कर दिया। जो ऑटो चलाने से थोड़ी कमाई होती थी अब वो भी बंद हो चुकी थी।

इसलिए पापा ने मुझसे कहा कि 12वीं तक पढ़ लो हमारे पास आगे पढ़ाने के पैसे नहीं हैं। हम तुम्हारी शादी कर देंगे। फिर अगर ससुराल वाले चाहें तो आगे पढ़ना। यह सुनकर मैं मायूस हो गई। मैं आगे पढ़ना चाहती थी लेकिन कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था।”

11वीं में थी तक मुलायम सिंह की स्कीम के बारे में पता चला
नेहा बताती हैं कि मेरी 11वीं की परीक्षा चल रही थी। मैं पढ़ने में ठीक थी लेकिन इस बार मेरा पढ़ाई में मन नहीं लग रहा था। दिमाग में हर वक्त यही चलता कि बस एक साल और फिर मैं आगे नहीं पढ़ पाउंगी। परीक्षा का वक्त आने वाला था तभी 12वीं की कुछ लड़कियां कॉलेज में एक फॉर्म भर रहीं थीं।

टीचर्स ने हमें बताया कि ये कन्या विद्या धन स्कीम का फॉर्म है। इसे मुलायम सिंह में शुरू किया था। इसमें वो बच्चियां जिनके परिवार आर्थिक रूप से कमजोर थे उन्हें 12वीं पास करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए 25 हजार रुपए दिए जाने थे। जिसका इस्तेमाल बच्चियां अपनी पढ़ाई के लिए कर सकती थीं। नेहा बताती हैं कि यह सुनकर मुझे एक उम्मीद नजर आई। लगा कि अगर यह पैसे मुझे मिल जाएं तो अपनी आगे की पढ़ाई पूरी कर सकती हूं।

पापा ने कहा 25 हजार में ग्रेजुएशन नहीं हो पाएगा
नेहा बताती हैं कि मैंने यह बात पापा को बताई तब भी वो खुश नहीं थे। उन्होंने मुझे समझाया कि हमारे पास पैसे नहीं बचे हैं। इन 25 हजार से तुम एक साल तो पढ़ सकती हो लेकिन 3 साल का ग्रेजुएशन कैसे होगा। मैंने पापा को समझाया कि मैं इन्हीं पैसों से अपनी पढ़ाई पूरी कर लूंगी। मैंने 12वीं की पढ़ाई पूरी की। रिजल्ट आया। मेरे 78.6% मार्क्स आए। मैंने 12वीं पास कर ली थी। इसके बाद कन्या विद्या धन स्कीम का जो फॉर्म भरा था उसके पैसे भी खाते में आ गए।

15 किलोमीटर साइकिल चलाकर जाती थी ताकि पैसे बचें
नेहा बताती हैं कि जब मुझे 25 हजार रुपए मिले तो मैंने तुरंत उन पैसों से अपनी ग्रेजुएशन की फीस जमा कर दी। मैंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया था लेकिन वो मेरे घर से 25 किलोमीटर दूर थी। हर रोज वहां जाने के लिए मेरे पास पैसे नहीं थे। इसलिए मैं यूनिवर्सिटी की दूसरी शाखा में जाकर क्लास करने लगी। वो कॉलेज भी मेरे घर से 15 किलोमीटर दूर था।

मैं हर रोज साइकिल चलाकर कॉलेज जाती थी। इसके साथ ही उन 25 हजार रुपयों में से ही मैंने एक सिलाई मशीन खरीदी। पढ़ाई के साथ ही मैंने सिलाई सीखी और उस मशीन से आस-पास की महिलाओं के कपड़े सिलने शुरू कर दिए। इससे जितने पैसे आते मैं अपनी पढ़ाई में लगा देती। मैं हर महीने पैसे बचाकर घर पर भी देती थी। इससे मेरी छोटी बहन की पढ़ाई में भी मदद हो गई।

अब भी उसी सिलाई मशीन से पैसे कमा रही
अब प्रतापगढ़ में नेहा की शादी हो चुकी है। दो बच्चे हैं। उन्होंने अब उस एक सिलाई मशीन से पैसे कमाकर तीन मशीन और ले ली है। वो आस-पास की लड़कियों को सिलाई सिखाती हैं। साथ ही महिलाओं के कपड़े सिलने का काम करती हैं। नेहा कहती हैं कि उन 25 हजार रुपयों की वजह से ही वो इतना पढ़ पाईं और आज अपने पैरों पर खड़ी हैं। साथ ही पैसे कमाकर अपने परिवार की मदद कर रही हैं।

लड़कियों की छूटती पढ़ाई मुलायम को बेचैन करती थी

मुलायम सिंह 1963 में बतौर सहायक अध्यापक करहल के जैन इंटर कॉलेज में पढ़ाने लगे। वह विद्यार्थियों को अंग्रेजी पढ़ाते थे। पढ़ाते वक्त वह देखते थे कि उनकी क्लास में लड़कों की संख्या के मुकाबले लड़कियों की संख्या 10% भी नहीं है। बतौर टीचर उन्हें यह बात खटकती थी। वह चाहते थे कि लड़कियां सिर्फ 5वीं या फिर 8वीं के बाद स्कूल छोड़ें नहीं, बल्कि आगे पढ़ाई करें। इसके लिए उन्होंने कैंपेन चलाया। गांव में गए। लेकिन लोगों पर बहुत प्रभाव नहीं पड़ा।

11 साल की नौकरी के बाद मुलायम सिंह राजनीति शास्त्र के प्रवक्ता के पद पर पहुंच गए। उन्होंने टीचिंग करियर को छोड़ दिया और राजनीति में उतर आए। टीचर थे इसलिए बेरोजगारी और महिलाओं की शिक्षा में भागीदारी को समझते थे। सदन पहुंचे तो इस मुद्दे को उठाया। सत्ता में आए तो इसके लिए काम शुरू किया।