क्या नेतन्याहू हैं जंग के जिम्मेदार:पूरे फिलिस्तीन पर कब्जे की चाहत, राजनीति या सत्ता की सनक बनी हमले की वजह

तारीख – 29 दिसंबर 2022। जगह – इजराइल की संसद नीसेट। यहां बेंजामिन नेतन्याहू ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और इजराइल की 37वीं सरकार बनी। एक साल पहले ही यानी 2021 में नेतन्याहू को घोटालों के आरोपों की वजह से प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था।

तब कई पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स ने कहा था कि ये उनके राजनीतिक करियर का अंत है। नेतन्याहू ने उन्हें गलत साबित किया और बहुमत नहीं मिलने के बावजूद छठी बार देश के प्रधानमंत्री बने।इजराइल में किसी एक पार्टी को बहुमत नहीं मिलना हैरानी की बात नहीं है। वहां 74 साल के इतिहास में ऐसा एक भी बार नहीं हुआ कि कोई पार्टी अपने दम पर सरकार बना पाई हो।

इस बार हैरानी की सबसे बड़ी वजह नेतन्याहू की नई सरकार में शामिल कट्टरपंथी पार्टियां थीं। दरअसल, नेतन्याहू ने सत्ता में वापसी करने के लिए शास, यूटीजे, धार्मिक जियोनिज्म, ओत्जमा येहुदित और नोआम जैसी धुर दक्षिण पंथी पार्टियों का समर्थन लिया है। इनमें कई पार्टियां तो पूरे फिलिस्तीन पर कब्जे के समर्थन में है। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक इन्हीं वजहों से इजराइल में नई सरकार बनते ही फिलिस्तीन के साथ विवाद बढ़ना तय हो गया था।

1. ऐसे शख्स को मंत्री बनाया जो फिलिस्तिनियों को इजराइल से निकालना चाहते हैं…

नेतन्याहू ने नई सरकार में तमर बेन-ग्विर को राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री बनाया है। बेन-ग्विर इजराइल के सबसे विवादित नेताओं में एक हैं। वो अति-राष्ट्रवादी मीर कुहान के कुहानिस्ट विचारधारा के अनुयायी हैं। कुहानिस्ट विचारधारा का मानना है कि इजराइल में गैर यहूदियों को मतदान तक का अधिकार नहीं होना चाहिए।

कुहान संगठन अरब लोगों और मुसलमानों को यहूदी समुदाय और इजराइल का दुश्मन मानता है। इसी वजह से कुहान संगठन पर 1994 में इजराइल ने बैन लगा दिया था, लेकिन उस विचार पर चलने वालों को न रोक सका। इसके एक समर्थक बारूक गोल्डस्टीन ने 29 मुस्लिमों की हत्या कर दी थी। बेन-ग्विर, बारूक के बड़े फैन हैं और इसकी तस्वीर घर में टांग कर रखते हैं।

बेन ग्विर उन इजराइली सैनिकों को लीगल माफी देना चाहते हैं , जो फिलिस्तीनियों को गोली मारने के दोषी पाए गए हैं। पेशे से वकील बेन ग्विर यरुशलम में अल- अक्सा मस्जिद के पास अक्सर आते जाते रहते हैं। यहां उन पर भड़काऊ बयान देने के आरोप लगते हैं। वो मस्जिद के पास अकसर कहते हैं- मैं यहां देश बचाने आया हूं, मैं जिहादियों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा हूं।

ऐसे बयान देने पर एक बार तो उन पर मस्जिद के पास किसी फिलिस्तिनी ने पत्थर मार दिया था। इस पर बेन ग्विर ने अपनी हैंडगन उठा ली और सुरक्षा कर्मियों से कहा कि वो आस-पास मौजूद सभी अरब लोगों की हत्या कर दें।

2. गठबंधन दलों के दबाव की वजह से सरकार और एजेंसियों का ध्यान वेस्ट बैंक की तरफ था…
इजराइल के PM बेंजामिन नेतन्याहू, उनके गठबंधन दल के नेता और रक्षा मंत्री बेन ग्विर वेस्ट बैंक पर कब्जे के हिमायती रहे हैं। वो नहीं चाहते कि फिलीस्तीन का वजूद भी रहे। इस लिहाज से पूरी सरकार का फोकस वेस्ट बैंक पर था। इजराइल की ज्यादातर सेना इसी इलाके में तैनात थी। हमास ने इसका फायदा उठाया और गाजा पट्टी की तरफ से इजराइल में घुसपैठ और हमला करने में कामयाब रहे।

इजराइल के अखबार हारेट्ज ने नेतन्याहू को जंग का जिम्मेदार ठहराते हुए एक कॉलम लिखा है। इसमें कहा गया है कि नेतन्याहू ने जानबूझकर गाजा में हमास की सत्ता को स्थापित कराया। नेतन्याहू ने 2019 में एक मीटिंग के दौरान खुलकर कहा था- कोई भी शख्स जो फिलिस्तीन को देश के तौर पर नहीं उभरने देना चाहता है, उसे हमास को सपोर्ट करना होगा, उसकी फंडिंग करते रहना जरूरी है। ताकि वेस्ट बैंक की फिलिस्तिनियों की सरकार मजबूत न रहे, उसे हमास से चुनौती मिलती रहे। दरअसल, 1948 में इजराइल की स्थापना के बाद फिलिस्तीनी सिर्फ गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक में सिमट कर रह गए हैं। गाजा पट्टी हमास और वेस्ट बैंक पर PLO यानी फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन ने सरकार बनाई।

3. नेतन्याहू की सरकार के खिलाफ लोगों का गुस्सा
इजराइल की मीडिया बेंजामिन नेतन्याहू पर भी सवाल उठा रही है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की ताकत कम करने के लिए एक कानून बनाया। इसके बाद पूरे देश में सरकार के खिलाफ प्रदर्शन होने लगे। सरकार ने इस प्रदर्शन को दबाने में पूरी ताकत लगा दी। इसी बीच सरकार की नजर हमास से हटी और मौका मिलते ही उसने अपना काम कर दिया।

4 पॉइंट्स में जानें प्रदर्शन हो क्यों रहे थे…

  • जनवरी में इजराइल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को लेकर एक प्रस्ताव जारी किया। इसके पास होने पर इजराइली संसद को सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को पलटने का अधिकार मिल जाएगा। इसे ‘ओवरराइड’ बिल नाम दिया गया है। अब अगर ये बिल पास हो जाता है तो संसद में जिसके पास भी बहुमत होगा, वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट सकेगा। लोगों को लगा कि इससे देश में लोकतंत्र और सुप्रीम कोर्ट कमजोर होगा।
  • BBC के मुताबिक नए बिल से निवार्चित सरकारें जजों की नियुक्ति में दखल दे सकती हैं। इससे ज्युडिशियरी की सही और निष्पक्ष फैसले लेनी की पावर कम हो जाएगी।
  • नेतन्याहू का नया बिल लागू होने से किसी कानून को रद्द करने के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट की ताकत सीमित हो जाएगी।
  • इस बिल ने इजराइल को काफी हद तक दो हिस्सों में बांट दिया। इजराइली सेना की रीढ़ माने जाने वाले रिजर्वविस्ट ( सेना को सेवा देने वाले आम नागरिक) ने कहा था कि वे सेना को अपनी सेवा देने से इनकार कर सकते हैं।

‘नेतन्याहू ने सुरक्षा का वादा किया, आंसू दिए’

द गार्जियन में इजराइल-फिलिस्तीन मामलों के जानकार साइमन टिसडाल लिखते हैं कि नेतन्याहू ने देश की जनता से सुरक्षा का वादा किया था, लेकिन उनके सत्ता में रहने की सनक ने इजराइल में आंसूओं का सैलाब ला दिया। अगर उनमें थोड़ा भी सम्मान और शर्म बाकी है तो उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए।

इजराइल की नेशनल यूनिटी पार्टी के सांसद जीव एक्लिन ने एक इंटरव्यू में बताया कि नेतन्याहू 2019 से बदल गए हैं। उन्होंने कहा- मैंने बीबी (नेतन्याहू का निक नेम) को कई मुश्किल हालातों में देखा है। वो हमेशा एक प्रतिभाशाली और अनुभवी व्यक्ति लगते हैं। हालांकि, अब फैसले लेने में उनका व्यक्तिगत विचार राष्ट्रीय विचारों पर हावी रहता है, जिसके कारण उन्होंने कई गलत नीतियां लागू की हैं।

नेतन्याहू के करीबी पत्रकारों में से एक अमित सेगल के मुताबिक, इजराइल का इतिहास हमें बताता है कि असफल युद्धों से सरकार बदली जाती है। इसी बीच गलत नीतियों से पहले ही आलोचना झेल रहे नेतन्याहू अब इस जंग को जीतने के लिए कुछ भी कर सकते हैं।