सपा प्रमुख अखिलेश यादव पत्नी डिंपल के साथ उत्तराखंड में नवरात्रि का महापर्व मना रहे हैं। दशहरे की शाम अखिलेश ने अलकनंदा-भागीरथी नदी के संगम देवप्रयाग में मां गंगा की पूजा-अर्चना की। सोशल मीडिया पर उन्होंने तीन तस्वीरें पोस्ट की। इसमें पहली तस्वीर में अखिलेश मां गंगा की आरती कर रहे हैं। दूसरी तस्वीर में उनके साथ तीर्थ पुरोहित मंत्रोच्चार के बीच गंगा की पूजा करवा रहे हैं। तीसरी तस्वीर में स्नान के बाद तीर्थ पुरोहित अखिलेश के माथे पर तिलक लगा रहे हैं।
वहीं, अखिलेश के उत्तराखंड के दौरे और पूजा-अर्चना करने के पीछे की वजह राजनीतिक जानकार 2024 के चुनाव से जोड़ते हुए देख रहे हैं। जानकार बताते हैं कि अखिलेश यादव बीजेपी के हिंदुत्व पावर गेम पर खुद की मौजूदगी ज्यादा होने का मैसेज जनता में देना चाहते हैं।
भाजपा ने अखिलेश को बताया था हिंदुत्व विरोधी
साल 2017 में भाजपा ने अखिलेश को हिंदुत्व विरोधी और मुसलमान का पक्षधर बताया था। भाजपा ने विधानसभा चुनाव में कहा था कि अखिलेश यादव हिंदुओं के त्योहार और उनके पर्व पर रोक लगाते हैं। जबकि मुसलमान के त्योहार पर वह खुली छूट देते हैं। अखिलेश की कई ऐसी तस्वीरों को बीजेपी की तरफ से सोशल मीडिया के माध्यम से सामने लाया गया। जिससे वह हिंदुओं के कार्यक्रमों में शामिल होने में संकोच करते हुए दिखाई देने साफ मैसेज तक दिया गया।
फिलहाल, साल 2017- 2019 से लेकर अब तक हुए सभी चुनाव के परिणाम के बाद कहीं ना कहीं अखिलेश यादव अब खुलकर पूजा- अर्चना करते हुए दिखाई देते हैं। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि अब वह खुलकर पूजा अर्चना के कार्यक्रम में शामिल हो रहे हैं। यही नहीं राजनीतिक कार्यक्रमों में भी वह पहले धार्मिक पूजन आयोजन करने के बाद ही आगे के कार्यक्रम तय करते हैं। इसी क्रम में उत्तराखंड के दौरे को भी देखा जा रहा है। वह परिवार के साथ केदारनाथ-बद्रीनाथ और गंगा आरती समेत कई कार्यक्रमों में पूजा कर रहे हैं।
शुभ दिन पर शुभ कार्य और राजनीति पर फैसला
साल 2017 की विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद अखिलेश यादव ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले चित्रकूट के धार्मिक मंदिरों से अपनी चुनावी यात्रा शुरू की थी। इस यात्रा में भी अखिलेश यादव ने शुभ दिन और कृष्णा जन्मोत्सव के आसपास का दिन चुना था। हालांकि नवरात्रि में वीआईपी सीटों पर प्रत्याशी उतारने का ऐलान करने वाले अखिलेश यादव अभी तक उस पर फैसला नहीं कर पाए। लेकिन वह हर शुभ कार्य करने के पीछे शुभ दिन की तलाश जरूर करते हुए देखे जा रहे हैं।
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि अखिलेश यादव ने अपने कार्यशैली में हिंदू धार्मिक समय को ज्यादा तवज्जो देने और उसका प्रचार प्रसार करने कभी तरीका बदला है। पूजन आयोजन के विशेष कार्यक्रमों के साथ राजनीतिक फैसले पर भी अखिलेश यादव अच्छे दिनों और शुभ दिनों की तलाश में रहते हैं। सपा के प्रशिक्षण शिविर की शुरुआत उन्होंने ऋषियों की नगरी कहे जाने वाले नैमिषारण्य धाम से की थी।
हिंदुत्व को बचाने की बात से सियासत हुई थी तेज
अखिलेश यादव का अगस्त के महीने में दिया गया हिंदुत्व बचाने का बयान बहुत ही चर्चा में रहा। अखिलेश ने कहा था कि बीजेपी से हिंदुत्व को बचाना है। सच्चे हिंदुत्व को बचाए रखने के लिए लोगों को आगे आना चाहिए। अखिलेश यादव ने हाल ही में कहा था कि भाजपा ने संचार माध्यमों का ‘दुरुपयोग’ किया और हर दिन ‘नए झूठ’ गढ़ती रही। डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा बनाए गए संविधान को बचाने के लिए यह जरूरी है कि भाजपा सत्ता में न आए।
उन्होंने कहा कि उनका (भाजपा) ‘हिंदुत्व’ समाज को बांटना है और सच्चे हिंदुओं को ‘सच्चे हिंदुत्व’ को बचाने की जरूरत है। हम लोगों को ‘फर्जी हिंदुओं’ से बचाना है। जिन्होंने सत्ता हासिल करने के लिए हिंदुत्व का दुरुपयोग किया। हिंदू मुसलमान का बंटवारा कर यह समाज को बांटना चाहते हैं।
अखिलेश की रणनीति हुई फेल, बीजेपी की पिच पर खेलना आसान नहीं
अखिलेश यादव पर हमेशा ही मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगता रहा है, लेकिन बदले राजनीतिक हालात में वे यह जान चुके हैं कि सपा के परंपरागत M-Y (मुस्लिम-यादव) समीकरण के सहारे बीजेपी को नहीं हरा सकते। यही नहीं वे पहले कांग्रेस और फिर बसपा से गठबंधन करके भी देख चुके हैं। इसके अलावा अखिलेश जातीय आधार वाले छोटे दलों के साथ भी मिलकर बीजेपी का मुकाबला नहीं कर सके हैं। ऐसे में अब 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए नई रणनीति के साथ उतरने की तैयारी में है।
वहीं, राजनीतिक विश्वलेषकों की मानें तो देश की सियासत अब बदल चुकी है। 2014 के बाद से जिस तरह हिंदू मतदाताओं पर बीजेपी की पकड़ मजबूत होती जा रही है। उससे अखिलेश को मंदिर और प्रतीकों की राजनीति करने के लिए मजबूर कर दिया है। इस तरह सपा अपने सियासी एजेंडे पर बीजेपी को लाने के बजाय खुद बीजेपी की बिछाई सियासी बिसात पर उतर रही है। बीजेपी हिंदू समुदाय को अपना वोट बैंक मानती है, इसलिए उसकी पिच पर उतरकर मुकाबला करना सपा के लिए आसान नहीं है।