1000 साल पुरानी और देश की सबसे शक्तिशाली पीठ में से एक हनुमान गढ़ी पीठ…जहां खुद विराजते हैं हनुमानजी। वही अयोध्या के राजा हैं। उनसे शक्तिशाली कोई नहीं है। लेकिन हनुमानगढ़ी पीठ में वर्चस्व की लड़ाई दशकों से चली आ रही है। यहां 38 साल में 20 से ज्यादा साधु-संत और महंतों की हत्या हो चुकी है, सिर्फ इसलिए कि गद्दी, धन-दौलत और संपत्ति पर कब्जा हो सके।
अभी 5 रोज पहले भी एक नागा साधु की हत्या यहीं हनुमानगढ़ी मंदिर की सीढ़ियों पर कर दी गई। साधु का नाम- राम सहारे दास था। वह हनुमान गढ़ी के बसंतिया पट्टी के साधु थे। हत्या उन्हीं के चेलों ने की। वह पट्टी की गद्दी पर कब्जा और साधु के पैसों को हड़पना चाहते थे।
अयोध्या की प्रसिद्ध पीठ हनुमानगढ़ी का अपना संविधान है। यहां का पूरा कामकाज इसी संविधान के मुताबिक चलता है। पीठ का अपना अखाड़ा और पंचायत भी है, यह लोकतांत्रिक तरीके से फैसले लेता है। इसके बावजूद यहां गद्दी, अखाड़ा और वर्चस्व की लड़ाई दशकों से चलती चली आ रही है। यहां कद, पद और पैसे के लिए हत्याएं तक हो जाती हैं।
150 राउंड गोली चलाकर महंत को छलनी कर दिया
गद्दी पर कब्जे के लिए हत्या का पहला मामला 80 के दशक में सामने आता है। जब यहां गद्दीनशीन महंत दीन बंधु दास की हत्या कर दी जाती है। 30 सितंबर 1995 को महंत रामज्ञा दास की हत्या कर दी जाती है। यह हत्या हनुमानगढ़ी के आश्रम में ही होती है, हमलावर 150 राउंड से ज्यादा गोलियां चलाकर महंत को छलनी कर देते हैं। ये हमला सुबह तीन बजे हुआ था। तब से चला आ रहा, ये सिलसिला अभी तक नहीं थमा है।
महंत रामाज्ञा की हत्या माफियाओं के विरोध से हुई
महंत रामाज्ञा दास सरल, सुशील, भजनानंदी के साथ स्वाभिमानी संत थे। वे सिद्धांतों और पीठ की परंपराओं के प्रति अटूट श्रद्धा रखते थे। लेकिन बिहार के माफियाओं की मनमर्जी का विरोध उनके लिए भारी पड़ गया। उनके शिष्य गौरीशंकर दास आज भी अपनी जान का खतरा बताते हैं। वो कहते हैं कि हमारी सुरक्षा हनुमान जी के भरोसे है। 19 अक्टूबर को पुजारी राम सहारे दास की हत्या से वे बेहद दुखी और हनुमान गढ़ी में अपराध को लेकर चिंतित भी हैं।
गद्दीनशीन महंत दीनबंधु और राम बालक की हत्या एक साल के अंदर की गई
हनुमानगढ़ी पीठ का सर्वोच्च पद गद्दीनशीन महंत का होता है। वही पीठ की चारों पट्टी सागरिया, हरिद्वारी, बसंतिया और उज्जैनियां समेत पूरे हनुमानगढ़ी अखाड़े का प्रमुख होता है। पीठ के महंत पद पर विराजमान गद्दीनशीन महंत दीनबंधु दास की हत्या तो उनके आसन पर ही गोली मारकर कर दी गई थी।
यह घटना 1984-85 की बताई जाती है। इस घटना के साल भर के अंदर नवनियुक्त गद्दीनशीन महंत राम बालक दास की भी हत्या कर दी गई। इन घटनाओं की चर्चा आज भी दबी जुबान से अयोध्या के महंत करते हैं। लेकिन खुलकर बोलने से परहेज करते हैं। नाम के साथ लिखने पर कहते हैं कि इससे अखाड़ा और पीठ की बदनामी होगी। इसलिए नाम मत लिखिएगा।
पगला बाबा की हत्या में श्रीप्रकाश शुक्ला का नाम आया था
1997 में हनुमानगढ़ी के महंत रामकृपाल दास उर्फ पगला बाबा की हत्या कर दी जाती है। बताया जाता है कि उन्हें अयोध्या की गलियों में दौड़ाकर गोली मारी गई थी। इस हत्या में श्रीप्रकाश शुक्ला का हाथ था। अयोध्या के संत-महंत ऑफ कैमरा बोलते हैं, लेकिन कैमरे के सामने नाम नहीं लेते हैं।
नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं कि महंत रामकृपाल दास हनुमानगढ़ी में किसी नहीं डरते नहीं थे। वे खुलेआम चैलेंज दे देते थे। हनुमानगढ़ी के निर्वाणी अनी अखाड़ा के श्री महंत पद के विवाद में ही उनकी हत्या की गई थी। हनुमानगढ़ी की निर्वाणी अनी अखाड़ा के श्री महंत संत सेवक दास नासिक कुंभ मेले में गायब हो गए थे, आज तक उनका पता ही नहीं चल सका है।
इसी तरह हनुमानगढ़ी के महंत शंकर दास, महंत बजरंग दास और महंत हरिभजन दास आदि की भी सरेआम हत्या कर दी गई। इन हत्याओं के बाद पुलिस और न्यायालय की कार्यवाही हुई। मुकदमे भी हुए और लोग जेल भी गए। पर हत्याओं का दौर नहीं थम सका है।
ठकुराइन मंदिर में जमीन खोदकर 3 संतों की लाश निकाली गई थी
हनुमानगढ़ी के 52 बीघा परिसर में ही ठकुराइन मंदिर है। बात 2007 की है, इसी मंदिर के ग्राउंड फ्लोर से पुलिस ने जमीन खोदकर 3 संतों की लाश निकाली थी। गद्दी और वर्चस्व की लड़ाई में इन्हें भी मारकर गाड़ दिया गया था। इनकी हत्या किसने और क्यों किया था? इसका खुलासा आज तक नहीं हो पाया है।