असहमति से संबंध, एडल्ट्री पर सुझाव दे सकती है कमेटी:IPC-CrPC को बदलने वाले विधेयक मंजूर नहीं, विपक्षी सदस्यों ने पढ़ने के लिए समय मांगा

संसदीय कमेटी शादीशुदा महिला के किसी पुरुष से संबंध बनाने (एडल्ट्री) और धारा 377 को फिर से अपराध के श्रेणी में रखने की सिफारिश कर सकती है। साथ ही कमेटी आजीवन कारावास जैसे शब्दों के लिए दूसरे शब्द इस्तेमाल करने का सुझाव दे सकती है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कमेटी इससे जुड़ी रिपोर्ट जल्द ही गृह मंत्रालय के सामने रखेगी, हालांकि, मंत्रालय इन प्रस्तावों को मानने के लिए बाध्य नहीं है।

यह कमेटी भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) और एविडेंस एक्ट की जगह लेने वाले तीन विधेयकों पर विचार कर रही है। 27 अक्टूबर को संसदीय समिति की बैठक हुई, लेकिन ड्राफ्ट रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया। कुछ विपक्षी सदस्यों की दलीलों को ध्यान में रखते हुए समिति ने ड्राफ्ट पर और अध्ययन के लिए समय मांगा है।

कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम समेत कुछ विपक्षी सदस्यों ने कमेटी के अध्यक्ष बृज लाल से डॉफ्ट पर फैसला लेने के लिए दिए गए समय को तीन महीने बढ़ाने का आग्रह किया। सदस्यों ने कहा कि चुनावी लाभ के लिए इन विधेयकों को उछालना सही नहीं है। अब ड्राफ्ट पर विचार के लिए अगली बैठक 6 नवंबर को होगी।

ये विधेयक 11 अगस्त को संसद में पेश किए गए थे। अगस्त में ही इससे जुड़ा ड्राफ्ट गृह मामलों की स्थायी समिति को भेजा गया था। कमेटी को यह ड्राफ्ट स्वीकार करने के लिए तीन महीने का समय दिया गया है।

अब एडल्ट्री कानून के बारे में जान लीजिए…
अगर कोई शादीशुदा महिला किसी अन्य पुरुष से संबंध बनाती है। ऐसी स्थिति में एडल्ट्री कानून के तहत पति उस शख्स के खिलाफ केस कर सकता था। यह भारतीय दंड संहिता की धारा 497 के तहत क्राइम था, जिसमें आरोपी को पांच साल की सजा और जुर्माना लगाने का प्रावधान था। ऐसे मामलों में महिला के खिलाफ न तो केस दर्ज होता था और न ही उसे सजा देने का प्रावधान था।

2018 में सुप्रीम कोर्ट ने एडल्ट्री कानून को रद्द कर दिया गया। तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने इस कानून को असंवैधानिक बताया था। उन्होंने कहा कि एडल्ट्री को क्राइम नहीं माना जा सकता। जोसेफ शाइनी की जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने ये फैसला सुनाया था। एडल्ट्री कानून को लेकर कमेटी जो सुझाव दे सकती है, उसमें ऐसे मामलों में महिला और पुरुष दोनों को सजा देने की बात कही जा सकती है।

धारा 377 को लेकर कमेटी के सुझाव
कमेटी ने धारा 377 पर भी चर्चा की, जो समलैंगिक संबंधों को अपराध मानता है। पांच साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने इसे भी रद्द कर दिया था। कमेटी सिफारिश करेगी कि IPC की धारा 377 को फिर से लागू करना और बनाए रखना अनिवार्य है।

कमेटी का कहना है कि कोर्ट के फैसले के बाद भी गैर-सहमति वाले यौन संबंध के मामलों में धारा 377 के प्रावधान लागू हैं, लेकिन भारतीय न्याय संहिता की ओर से धारा 377 के किसी भी संदर्भ को हटाने के बाद पुरुषों, महिलाओं, ट्रांसजेडर्स से जुड़े यौन अपराधों के लिए कोई प्रावधान नहीं था। इसलिए पैनल सरकार को IPC की धारा 377 को शामिल करने के लिए कह सकता है।

कमेटी की अन्य सिफारिशें
इसके अलावा कमेटी ने लापरवाही के कारण होने वाली मौत के मामलों में सजा को छह महीने से बढ़ाकर पांच साल करने और अनऑथराइज्ड विरोध प्रदर्शनों के लिए सजा को दो साल से घटाकर 12 महीने करने की सिफारिश कर सकती है।

अमित शाह ने तीन कानूनों में बदलाव के बिल पेश किए
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 11 अगस्त 163 साल पुराने 3 मूलभूत कानूनों में बदलाव के बिल लोकसभा में पेश किए थे। सबसे बड़ा बदलाव राजद्रोह कानून को लेकर है, जिसे नए स्वरूप में लाया जाएगा। ये बिल इंडियन पीनल कोड (IPC), कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर (CrPC) और एविडेंस एक्ट हैं।