‘मेरे पापा भूखे-प्यासे हैं। मेरे खोड़ा में पानी नहीं आ रहा। अगर आप मेरे पापा का साथ दोगे तो मेरे पापा जल्द से जल्द आएंगे। मैं योगी जी से प्रार्थना करती हूं कि हमारे खोड़ा में जल्द से जल्द पानी लाइए। तभी मेरे पापा घर आ पाएंगे।’
ये विनती उस मासूम बच्ची गायत्री जोशी की है, जिसके पिता दीपक जोशी 13 दिन से स्वच्छ पानी के लिए भूख हड़ताल पर बैठे हैं। देश की आजादी के 76 साल बाद भी एक इलाका ऐसा है, जहां स्वच्छ पेयजल नहीं है। हम बात कर रहे हैं गाजियाबाद जिले के कस्बा खोड़ा की।
आपको ये जानकर ताज्जुब होगा कि 12 लाख से ज्यादा की आबादी वाले खोड़ा नगर पालिका क्षेत्र में लोग भूमिगत जल से नहाते तो हैं, लेकिन पीने के लिए डिब्बाबंद पानी खरीदते हैं। भूजल स्तर 600 फुट से भी नीचे पहुंच चुका है। पूरा इलाका डार्क जोन में है।
जमीन से जो पानी आता है, वो पीने लायक नहीं है। यहां के लोग चाहते हैं कि पाइप लाइन बिछे और सबको स्वच्छ पानी मिले। इसी मांग को लेकर दीपक जोशी सहित तीन लोग 9 नवंबर से कस्बा खोड़ा में भूख हड़ताल पर बैठे हुए हैं। खोड़ा दिल्ली से 18 KM दूर से भी कम दूरी पर है।
‘पाइप लाइन बिछाने के लिए 2018 में 127 करोड़ की DPR बनी थी, अब हो गई 600 करोड़ की’
खोड़ा रेजिडेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष दीपक जोशी इस पूरे आंदोलन की अगुवाई कर रहे हैं। वे बताते हैं, ‘कस्बा खोड़ा में मुख्य समस्या पेयजल की है। इस समस्या को 20 साल से ज्यादा हो गया है। कई वार्डों में वाटर लेबल एक हजार फुट से नीचे पहुंच गया है तो कई वार्डों में ग्राउंड वाटर बिल्कुल सूख चुका है।
12 अक्टूबर 2018 से लगातार इस समस्या को लेकर हम आंदोलन कर रहे हैं। साल-2018 में जल निगम ने 127 करोड़ रुपए की डिस्ट्रिक्ट प्रपोजल रिपोर्ट (DPR) बनाई थी। इसके तहत पाइप लाइन बिछाकर कस्बा खोड़ा तक स्वच्छ पेयजल लाना था। लेकिन उस DPR पर कोई अमल नहीं हुआ और प्रस्ताव ठंडे बस्ते में चला गया।
हमने दोबारा आंदोलन किया तो साल-2020 में फिर एक नई DPR बनी। इस बार इसकी लागत 127 करोड़ रुपए से बढ़कर 600 करोड़ रुपए पहुंच गई। इस योजना के तहत गाजियाबाद में सिद्धार्थ विहार स्थित गंगाजल प्लांट से लेकर कस्बा खोड़ा एक पाइप लाइन बिछनी थी। अब ये DPR भी लागत ज्यादा होने की वजह से अधर में लटक गई है।
अगर साल-2018 में ही सरकार पाइप लाइन बिछा देती तो करीब 350 करोड़ रुपए बच सकते थे। क्षेत्र के सभासद से लेकर राष्ट्रपति तक हम अपनी मांग रख चुके हैं, लेकिन दुर्भाग्य है कि इस क्षेत्र में पानी सहित मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं।’